समाचार पत्र पर निबंध (Essay on newspaper)

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समाचार पत्र पर निबंध

भूमिका : मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है क्योंकि उसमें बुद्धि और ज्ञान है। जितना ज्ञान मनुष्य में रहता है वह उससे और अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहता है और इसके लिए तरह-तरह के साधनों का आविष्कार करता है। विज्ञान ने संसार को बहुत छोटा बना दिया है। आवागमन के साधनों की वजह से स्थानीय दूरियां खत्म हो गयी हैं।

रेडियों, दूरदर्शन और समाचार पत्रों ने संसार को एक परिवार के बंधन में बांध दिया है। इन साधनों की मदद से हम घर पर बैठकर दूर के देशों की खबर पढ़ लेते हैं और सुन भी लेते हैं। इन साधनों की मदद की वजह से हमें दूसरे देशों में जाना नहीं पड़ता है।

कहाँ पर क्या घटित हुआ है किस देश की गतिविधियाँ क्या है यह बात हमें घर बैठे समाचार पत्रों से ही प्राप्त हो जाती है। मनुष्य के जीवन में जितना महत्व रोटी और पानी का होता है उतना ही समाचार पत्रों का भी होता है। आज के समय में समाचार पत्र जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। समाचार पत्र की शक्ति असीम होती है।

प्रजातंत्र शासन में इसका बहुत अधिक महत्व होता है। देश की उन्नति और अवनति दोनों समाचार पत्रों पर निर्भर करती है। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में भी समाचार पत्रों और उनके संपादकों का विशेष योगदान रहा है। सुबह-सुबह जब हम उठते हैं तो हमारा ध्यान सबसे पहले समाचार पत्रों पर जाता है।

जिस दिन भी हम समाचार नहीं पढ़ते हैं, हमारा वह दिन सूना-सूना प्रतीत होता है। आज के समय में संसार के किसी भी कोने का समाचार सारे संसार में कुछ ही पलों में बिजली की तरह फैल जाता है। मुद्रण कला के विकास के साथ समाचार पहुँचने के लिए समाचार-पत्रों का प्रादुर्भाव हुआ। आज के समय में रोज पूरे संसार में समाचार-पत्रों द्वारा समाचारों का विस्तृत वर्णन पहुंच रहा है। वर्तमान समय में संसार के किसी भी कोने में कोई भी घटना घटित हो जाए दूसरे दिन उसकी खबर हमारे पास आ जाती है।

भारत में समाचार पत्र का आरंभ : भारत में अंग्रेजों के आने से पहले समाचार पत्रों का प्रचलन नहीं था। अंग्रेजों ने ही भारत में समाचार पत्रों का विकास किया था। सन् 1780 में कोलकाता में भारत का सबसे पहला समाचार पत्र प्रकाशित किया गया जिसका नाम दी बंगाल गैजेट था और इसका संपादन जेम्स हिक्की ने किया था। यही वो पल था जिसके बाद से समाचार पत्रों का विकास हुआ था।

भारत में सबसे पहले समाचार दर्पण का प्रकाशन आरंभ हुआ था। समाचार दर्पण के बाद उदंत मार्तंड का प्रकाशन भी आरंभ हुआ था। उसके तुरंत बाद, 1850 में राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद ने बनारस अखबार को प्रकाशित किया था। इसके बाद भारत में बहुत सी पत्रिकाओं का संपादन किया गया था।

जिस तरह से मुद्रण कला का विकास होने लगा उसी तरह से समाचार पत्रों की भी संख्या बढने लगी थी। आज देश के प्रत्येक भाग में समाचार पत्रों का प्रकाशन हो रहा है। कुछ ऐसे राष्ट्रिय स्तर के समाचार भी होते हैं जिनका प्रकाशन नियमित रूप से होता है।

दैनिक हिंदुस्तान, नवभारत टाईम्स, दैनिक ट्रिब्यून, पंजाब केसरी हिंदी भाषा में प्रकाशित कुछ प्रसिद्ध समाचार पत्र होते हैं। इसी तरह से अंग्रेजी में बहुत से ऐसे प्रसिद्ध समाचार पत्र हैं जो पूरे भारतवर्ष में पढ़े जाते हैं। आज के समय में समाचार पत्रों का उद्योग एक स्थानीय उद्योग बन चुका है क्योंकि इससे लाखों लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं।

समाचार-पत्रों का उद्भव और विकास : प्राचीन काल में समाचार पाने और भेजने के बहुत से साधन थे जैसे- कबूतर, घोडा, बाज, संदेशवाहक, भ्रमणकारी, पंडित तथा फकीर आदि। देवताओं के संदेशों को एक जगह से दूसरी जगह पर पहुँचाने का काम भी नारद जी करते थे। वे तीनों लोकों में समाचारों को फैलाते थे। वर्तमान समय के नारद हैं समाचार पत्र।

छापाखाना के आविष्कार के बाद समाचार पत्र छपने लगे। मुगलों के जमाने में भारत का पहला समाचार पत्र अखबार इ मुअल्ले निकला था जो हाथ से लिखा जाता था। समाचार-पत्रों का उद्भव 16 वीं शताब्दी में चीन में हुआ था। संसार का सबसे पहला समाचार पत्र पेकिंग गजट है, लेकिन यह समाचार पत्र का नितांत प्रारंभिक और प्राचीन रूप है। लेकिन समाचार पत्र के आधुनिक और परिष्कृत रूप का सबसे पहले प्रयोग मुद्रण के रूप में 17 वीं शताब्दी में इटली के बेसिन प्रांत में हुआ था।

उसके समाचारों को दूसरे स्थानों तक भी पहुंचाया गया था। फिर धीरे-धीरे यूरोप के अन्य देशों में भी इसका विकास बढ़ता गया था। समाचार पत्र का मुद्रण के साथ घनिष्ट संबंध होता है। जिस तरह से मुद्रण यंत्रों का विकास होता गया उसी तरह से समाचार पत्रों का भी विकास उत्तरोतर होता है। आज समाचार पत्र राष्ट्रिय स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संसार में प्रयोग में लाये जाते हैं।

समाचार पत्रों के भेद : समाचार पत्र कई प्रकार के होते हैं। समाचार पत्रों को दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, वार्षिक आदि भागों में बांटा जाता है। दैनिक समाचार पत्रों में हर तरह के समाचार को प्रमुखता दी जाती है। अन्य पत्रिकाओं में समसामयिक विषयों पर विभिन्न लेखकों के लेख, किसी भी घटना की समीक्षा, किसी भी गणमान्य जन का साक्षात्कार प्रकाशित होता है। बहुत सी पत्रिकाएँ साल में एक बार विशेषांक निकालती हैं जिसमें साहित्यिक, राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक, पौराणिक विषयों पर ज्ञानवर्धक, सारगर्भित सामग्रियों का वृहंद संग्रह होता है।

जनप्रतिनिधि : आज के समय में समाचार पत्र जनता के विचारों के प्रसार का सबसे बड़ा साधन सिद्ध हो रहा है। समाचार पत्र धनिकों की वस्तु न होकर जनता की आवाज है। समाचार पत्र शोषितों और दलितों की पुकार होते हैं। आज के समय में समाचार पत्र माता-पिता, स्कूल-कॉलेज, शिक्षक, थियेटर के आदर्श और उत्प्रेरक हैं।

समाचार पत्र हमारे परामर्शदाता और साथी सब कुछ होते हैं। इसी वजह से समाचार पत्र सच्चे अर्थों में जनता के विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। समाचार पत्र बीते हुए कुछ घंटों पहले का ताजा और अच्छा चित्रण करते हैं। इसी वजह से समाचार पत्रों के लिए कहा जाता है कि सुबह के समाचार से ताजा कुछ नहीं और शाम के समाचार से बासी कुछ नहीं।

जन जागरण का माध्यम : समाचार पत्रों से हमें केवल समाचार ही प्राप्त नहीं होते हैं बल्कि जन-जागरण का भी माध्यम होता है। समाचार पत्र मानव जाति को समीप लाने का भी काम करते हैं। जिन देशों में लोकतंत्र की स्थापना हो चुकी है वहां पर उनका विशेष महत्व होता है। समाचार पत्र लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों से परिचित कराते हैं।

समाचार पत्र सरकार के उन कामों की कड़ी आलोचना करते हैं जो देश के लिए या जनसाधारण के लिए लाभकारी नहीं है। खुशी की बात यह है कि दो-चार समाचार पत्रों को छोडकर शेष सभी अपने दायित्व को अच्छी तरह से निभा रहे हैं। आपातकालीन स्थिति में हमारे देश के समाचार पत्रों ने अच्छी भूमिका निभाई और अन्याय तथा अत्याचार का डटकर विरोध किया।

विविधता : आखिर दो-तीन रुपए के समाचार पत्र में क्या नहीं होता है ? कार्टून, देश भर के महत्वपूर्ण और मनोरंजक समाचार, संपादकीय लेख, विद्वानों के लेख, नेताओं के भाषण की रिपोर्ट, व्यापार और मेलों की सूचना, विशेष संस्करणों में स्त्रियों और बच्चों के उपयोग की सामग्री, पुस्तकों की आलोचना, नाटक, कहानी, धारावाहिक, उपन्यास, हास्य व्यंग्यात्मक लेख आदि विशेष सामग्री शामिल होती है।

समाज सुधार : समाचार पत्र सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में सहायता करते हैं। समाचार पत्रों से बड़ों-बड़ों के मिजाज ठीक हो जाते हैं। समाचार पत्र सरकारी नीति के प्रकाश और खंडन का सुंदर साधन होता है। इसके द्वारा शासन में भी सुधार किया जा सकता है।

समाचार पत्रों के लाभ : समाचार पत्र समाज के लिए बहुत लाभकारी होते हैं। समाचार पत्र विश्व में आपसी भाईचारे और मानवता की भावना उत्पन्न करते हैं और साथ-ही-साथ सामाजिक रुढियों, कुरीतियों, अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाते हैं। यही नहीं, ये लोगों में देशप्रेम की भावना भी उत्पन्न करते हैं। ये व्यक्ति की स्वाधीनता और उसके अधिकारों की भी रक्षा करते हैं।

चुनाव के दिनों में समाचार-पत्रों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होती जाती है। आज के समय में किसी भी प्रकार की शासन पद्धति ही क्यों न हो लेकिन समाचार पत्र ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन के विरुद्ध समाचार पत्रों ने ही तो जनमत तैयार किया था। इसी तरह से समाचार-पत्रों के संपादकों और पत्रकारों ने अन्याय का विरोध करने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था।

समाचार पत्र विविध क्षेत्रों में घटित घटनाओं के समाचारों को चारों ओर प्रसारित करने के सशक्त माध्यम हैं। प्रत्येक देश के शासकों के विभिन्न कार्यक्रमों को समाचार पत्र यत्र-तत्र-सर्वत्र प्रसारित करते हैं। संसार में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे विश्व संगठनों की विभिन्न गतिविधियों को समाचार पत्रों द्वारा ही दूर-दूर तक पहुंचाया जाता है।

हमारे देश में कई प्रमुख राष्ट्रिय स्तर के समाचार पत्र हैं जिनके संवाददाता हर क्षेत्र में विद्यमान रहते हैं जो अपने-अपने क्षेत्र की घटनाओं को मुख्य कार्यालय को प्रेषित करते हैं। समाचार पत्रों से ही हमें नवीन ज्ञान मिलता है। नए अनुसंधान, नई खोजों की जानकारी हमें समाचार पत्रों से ही मिलती है।

समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाली सरकारी सूचनाओं, आज्ञाओं और विज्ञापनों से हमें आवश्यक और महत्वपूर्ण जानकारी मिल जाती है। समाचार पत्र एक व्यवसाय बन गया है जिससे हजारों संपादकों, लेखकों, रिपोर्टरों व अन्य कर्मचारियों को जीविका का साधन भी मिलता है। समाचार पत्रों से पाठक का मानसिक विकास होता है।

उनकी जिज्ञासा शांत होती है और साथ-ही-साथ ज्ञान पिप्सा भी बढ़ जाती है। समाचार पत्र एक व्यक्ति से लेकर सारे देश की आवाज होते हैं जो अन्य देशों में पहुंचती है। समाचार पत्रों से भावना एवं चिंतन के क्षेत्र का विकास होता है।

समाचार पत्रों में रिक्त स्थानों की सूचना, सिनेमा जगत के समाचार, क्रीडा जगत की गतिविधियाँ, परीक्षाओं के परिणाम, वैज्ञानिक उपलब्धियाँ, वस्तुओं के भावों के उतार-चढ़ाव, उत्कृष्ट कविताएँ चित्र, कहानियाँ, धारावाहिक, उपन्यास आदि प्रकाशित होते हैं। समाचार पत्रों के विशेषांक बहुत उपयोगी होते हैं। इनमें महान व्यक्तियों की जीवन गाथा, धार्मिक, सामाजिक आदि उत्सवों का बड़े विस्तार से परिचय रहता है।

व्यापार वृद्धि : समाचार पत्र व्यापार के सर्वसुलभ साधन होते हैं। क्रय करने वाले और विक्रय करने वाले दोनों ही अपनी सूचना का माध्यम समाचार पत्रों को बनाते हैं। समाचार पत्रों से जितना अधिक लाभ साधारण जनता को होता है उतना ही लाभ व्यापारियों को भी होता है। बाजारों का उतार-चढ़ाव भी इन समाचार पत्रों की सूचनाओं पर चलता है। सभी व्यापारी बड़ी उत्कंठा से समाचार पत्रों को पढ़ते हैं।

शिक्षा के साधन : समाचार पत्र केवल समाचारों का ही प्रसारण नहीं करते हैं अपितु बहुत से विषयों में ज्ञानवर्धन भी करते हैं। बहुत सहायक होते हैं। नियमित रूप से समाचारों को पढने से बहुत लाभ होते हैं। समाचार पत्रों को पढने से इतिहास, भूगोल, राजनीति, साहित्य, विज्ञान और मानवदर्शन का ज्ञान सहज में ही हो जाता है।

विभिन्न साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक पत्रिकाओं में अनेक साहित्यिक व दार्शनिक लेख निकलते रहते हैं जो विभिन्न अनुभवी एवम् विद्वान लेखकों द्वारा संकलित होते हैं। दैनिक समाचार पत्र के संपादकीय में समसामयिक विषयों पर अत्यंत सारगर्भित विचार व रहस्यपूर्ण जानकारी निकलती रहती है, जिससे उस विषय का गहन ज्ञान प्राप्त होता है।

मनोरंजन के साधन : समाचार-पत्रों से जनता का मनोरंजन भी होता है। दैनिक पत्रों में, विशेषकर शनिवार व रविवार के पत्रों में कई मनोरंजक कहानियाँ, चुटकुले, प्रहसन, पहेलियाँ आते हैं। इसके अलावा साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक पत्रिकाओं में तो मनोरंजन की भरपूर सामग्री उपलब्ध होती है। समाचार पत्रों में कहानी, गजलों और कविताओं का बहुत ही सुंदर संकलन होता है।

विज्ञापन : विज्ञापन भी आज के युग में बहुत महत्वपूर्ण हो रहे हैं। सभी लोग विज्ञापन वाले पृष्ठ को जरुर पढ़ते हैं क्योंकि इसी के सहारे वे अपनी जीवन यात्रा का प्रबंध करते हैं। समाचार पत्रों में अनेक व्यवसायिक विज्ञापन निकलते रहते हैं जिनमें विभिन्न कंपनियों में निर्मित वस्तुओं का प्रचार किया जाता है।

इनसे पाठकों को हर वस्तुओं के गुण, दोष व उपयोग का ज्ञान होता है। समाचार पत्रों में सरकारी, गैर सरकारी व निजी क्षेत्रों में नौकरियों के लिए भी विज्ञापन आते हैं जिनमें पाठक अपनी योग्यता के अनुसार प्रार्थना पत्र भेजते हैं। बहुत से पत्र तो पूर्णरूपेण रोजगार के लिए ही प्रकाशित होते हैं जैसे रोजगार समाचार आदि।

इन्हीं विज्ञापनों में नौकरी की मांगें, वैवाहिक विज्ञापन, व्यक्तिगत सूचनाएँ और व्यापारिक विज्ञापन आदि होते हैं। जो चित्रपट जगत् के विज्ञापन होते हैं उनके लिए विशेष पृष्ठ होते हैं। समाचार पत्र विज्ञान का एक सशक्त माध्यम होता है। उपभोग की वस्तुओं के विज्ञापनों को इन्हीं में छापा जाता है।

समाचार-पत्रों से हानियाँ : समाचार पत्र से जितने लाभ होते हैं उतनी हानियाँ भी होती हैं। समाचार पत्र सीमित विचारधाराओं में बंधे होते हैं। प्राय: पूंजीपति ही समाचार पत्रों के मालिक होते हैं और ये अपना ही प्रचार करते हैं। कुछ समाचार पत्र तो सरकारी नीति की भी पक्षपात प्रशंसा करते हैं।

कुछ ऐसे भी समाचार पत्र होते हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य केवल सरकार का विरोध करना होता है। ये दोनों ही बातें उचित नहीं होती हैं। समाचार पत्रों से पूरा समाज प्रभावित होता है। समाचार पत्र कभी-कभी झूठे और बेकार के समाचारों को छापना शुरू कर देते हैं। कभी-कभी तो समाचार पत्र सच्चाई को तोड़-तोडकर छाप देते हैं। इसी तरह से सांप्रदायिकता का जहर फैलाने में भी कुछ समाचार पत्र भाग लेते हैं।

जो लोग समाज को लूटते हैं और प्रभावशाली लोगों के दवाब में आकर वे उनके खिलाफ कुछ नहीं लिखते हैं। इसकी वजह से समाज में भ्रष्टाचार और अन्याय को बहुत बल मिलता है। कुछ समाचार पत्र पूंजीपतियों की संपत्ति होते हैं। उन समाचार पत्रों से न्याय, मंगल और सच्चाई की आशा ही नहीं की जा सकती है।

कुछ संपादक और संवाददाता अमीरों तथा राजनीतिज्ञों के हाथ बिककर उलटे-सीधे समाचार छापकर जनता को गुमराह करते हैं। समाचार पत्रों में सरकार की सही नीतियों को भी कभी-कभी गलत तरीके से पेश करके जनता को भ्रमित किया जाता है। अश्लील विज्ञापन लोगों के मनों में विशेषरूप से बच्चों के मन में कुत्सित भावना उत्पन्न करते हैं। कुछ विज्ञापनों को जनता को ठगने के लिए दिया जाता है।

उपसंहार : जो वस्तु जितनी अधिक महत्वपूर्ण होती है उसका दायित्व भी उतना ही अधिक होता है। समाचार-पत्र स्वतंत्र, निर्भीक, निष्पक्ष, सत्य के पुजारी होते हैं लेकिन उनका लगातार जागरूक होना जरूरी है। समाज में फैले हुए अत्याचार, अनाचार, अन्याय और अधर्म का विरोध करना ही समाचार पत्रों का दायित्व होता है।

इसी तरह से रुढियों, कुप्रथाओं और कुरीतियों का उन्मूलन करने में भी समाचार पत्र बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। आधुनिक युग में समाचार पत्रों का बहुत अधिक महत्व है। समाचार पत्रों का उतरदायित्व भी होता है कि उसके समाचार निष्पक्ष हों, किसी विशेष पार्टी या पूंजीपति के स्वार्थ का साधन न बनकर रह जाये।

आज की लोकप्रियता व्यवस्था में समाचार पत्रों का अत्यधिक महत्व होता है। समाचार पत्र ज्ञानवर्धन के साधन होते हैं इसलिए उनका नियमित रूप से अध्धयन करना चाहिए। समाचार पत्रों के बिना आज का युग अधुरा होता है। समाचार पत्रों की ताकत बहुत बड़ी होती है। आधुनिक युग में शासकों को जिसका भय होगा वे समाचार पत्र हैं।

किसी भी देश में समाचार पत्रों की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाना चाहिए। गंदे, अश्लील और भ्रामक पत्रों पर रोक लगनी चाहिए। समाचार पत्रों के लाभ और हानि का पूरा भार संपादक के ऊपर ही निर्भर करता है। संपादक के महत्व को अच्छी तरह से समझना चाहिए।

अगर वे धर्म, जाति, निजी लाभ जैसे विषयों को छोडकर ईमानदारी से अपना काम करे तो वास्तविक रूप में देश की सच्ची सेवा कर सकते हैं। संपादक जनता के विचारों का प्रतिनिधित्व करता है। उसे निर्भय होकर जनता के विचारों को अपनाना चाहिए और देश को उन्नति का मार्ग दिखाना चाहिए।

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