जंतुओं में पोषण किस तरह से होता है | How is nutrition in animals




भोजन को ग्रहण करना तथा उसका ऊर्जा प्राप्ति और शारीरिक वृद्धि व मरम्मत के लिए उपयोग करना ‘पोषण’ कहलाता है| जन्तु आवश्यक पोषक पदार्थ भोजन के माध्यम से ही ग्रहण करते हैं| वे पदार्थ जो जंतुओं की जैविक क्रियाओं के संचालन के लिए आवश्यक होते हैं, ‘पोषक पदार्थ’ कहलाते हैं|
JNT1 - जंतुओं में पोषण किस तरह से होता है | How is nutrition in animals




जंतुओं को निर्मित (Readymade) भोजन की आवश्यकता होती है, इसीलिए वे पौधों या जीवों को खाकर भोजन प्राप्त करते हैं| उदाहरण के लिए, साँप मेंढक को खाता है, कीट जंतुओं के मृत शरीर को खाते हैं और चिड़िया कीटों को खाती है|

पोषण प्रणाली

किसी भी जीव द्वारा भोजन ग्रहण करने की प्रक्रिया ‘पोषण प्रणाली’ (Modes Of Nutrition) कहलाती है| पोषण प्रणाली दो तरह की होती है:
1) स्वपोषी (Autotrophic)
2) परपोषी (Heterotrophic)
परपोषी पोषण प्रणाली
सभी जीव सरल अकार्बनिक पदार्थों, जैसे-कार्बन डाइ ऑक्साइड व जल, से अपना भोजन निर्मित नहीं कर पाते हैं| वे अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर रहते हैं| इस तरह की पोषण प्रणाली को ‘परपोषी पोषण प्रणाली’ कहा जाता है और जो जीव भोजन के लिए दूसरे जीवों या पौधों पर निर्भर रहते है, उन्हें ‘परपोषी’ कहा जाता है| जन्तु अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों या पौधों पर निर्भर रहते हैं, क्योंकि वे अपना भोजन स्वयं निर्मित नहीं कर सकते हैं, इसीलिए उन्हें ‘परपोषी’ (Heterotrophs) कहा जाता है|   मनुष्य, कुत्ता, बिल्ली, हिरण, गाय, शेर के साथ-साथ यीस्ट जैसे अहरित पादप (Non-Green Plants) परपोषी होते हैं|
परपोषी पोषण प्रणाली के प्रकार
परपोषी पोषण प्रणाली निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है:
i) मृतोपजीवी पोषण (Saprotrophic nutrition)
ii) परजीवी पोषण (Parasitic nutrition)
iii) पूर्णभोजी/प्राणीसम पोषण (Holozoic nutrition)
मृतोपजीवी पोषण
ग्रीक शब्द ‘सैप्रो’ (Sapro)  का अर्थ होता है-‘सड़ा हुआ’ या ‘मृत’| वे जीव जो अपना भोजन मृत एवं सड़े हुए अकार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं, ‘मृतोपजीवी’ कहलाते हैं| ये जीव मृत पादप की सड़ी हुई लकड़ी, सड़ी हुई पत्तियों, मृत जीवों आदि से अपना भोजन प्राप्त करते हैं|
कवक व कई अन्य जीवाणु/बैक्टीरिया ‘मृतोपजीवी’ ही होते है| यह मृतोपजीवी जीव मृत पदार्थों से प्राप्त जटिल अकार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं| बाद में मृतोपजीवी इन सरल अकार्बनिक पदार्थों  को अवशोषित (Absorbed) कर लेते हैं|
परजीवी पोषण
जो जीव अन्य जीवों के संपर्क में रहकर उससे अपना भोजन ग्रहण करते हैं ‘परजीवी’ कहलाते हैं| जिस जीव के शरीर से परजीवी अपना भोजन ग्रहण करते हैं, वह ‘पोषी’ (Hosts) कहलाता है| परजीवी जीव, पोषी जीव के शरीर में मौजूद कार्बनिक पदार्थ को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं|
परजीवी जीव,जोकि कोई पादप या जन्तु हो सकता है, पोषी जीव को मारते नहीं है लेकिन उन्हें हानि जरूर पहुँचाते हैं| अनेक प्रकार के कवक, जीवाणु/बैक्टीरिया तथा अमरबेल जैसे पादपों और प्लाज्मोडियम जैसे जंतुओं में परजीवी प्रकार का पोषण पाया जाता है|
पूर्णभोजी/प्राणीसम पोषण




पूर्णभोजी/प्राणीसम पोषण में जीव भोजन को ठोस रूप में ग्रहण करते हैं| इनका भोजन पादप उत्पाद या जन्तु उत्पाद कुछ भी हो सकता है| इस पोषण में जीव जटिल कार्बनिक पदार्थ को अपने शरीर में अंतर्ग्राहित (Ingests) करता है और  उसे पचाता है, जिसका उसकी शारीरिक कोशिकाओं द्वारा अवशोषण किया जाता| कोशिकाओं के भीतर पचे हुए भोजन का स्वांगीकरण कर ऊर्जा प्राप्त की जाती है| गैर-अवशोषित पदार्थ जीव के शरीर द्वारा, बहिष्करण (Egestion) की क्रिया के माध्यम से बाहर निकाल दिया जाता है| मनुष्य, कुत्ता, भालू, जिराफ, मेंढक आदि में पूर्णभोजी/प्राणीसम पोषण पाया जाता है|
भोजन प्रवृत्ति के आधार पर जंतुओं को निम्नलिखित तीन प्रकारों में बांटा जाता है:
i) शाकाहारी (Herbivores)
ii) मांसाहारी (Carnivores)
iii) सर्वाहारी (Omnivores)
शाकाहारी
शाकाहारी ऐसे जन्तु हैं जो अपना भोजन पौधों या उनके उत्पादों, जैसे- पत्तियों, फल आदि, से ग्रहण करते हैं| गाय, बकरी, ऊँट, हिरण, भेड़ आदि शाकाहारी जंतुओं के उदाहरण हैं|
मांसाहारी
मांसाहारी ऐसे जन्तु हैं जो अपना भोजन पौधों केवल अन्य जीवों के मांस को खाकर प्राप्त करते हैं| शेर, बाघ, मेंढक, छिपकली आदि मांसाहारी जंतुओं के उदाहरण हैं|
सर्वाहारी
सर्वाहारी ऐसे जन्तु हैं जो अपना भोजन पौधों तथा अन्य जीवों के मांस दोनों को खाकर प्राप्त करते हैं| कुत्ता, मनुष्य, भालू, चिड़िया, कौवा आदि सर्वाहारी जंतुओं के उदाहरण हैं|




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यह चित्र प्रदर्शित करता है कि कैसे सभी जीव अपने भोजन के लिए सूर्य से प्राप्त ऊर्जा पर निर्भर हैं|
जंतुओं में पोषण प्रणाली के विभिन्न चरण
जंतुओं में पोषण प्रणाली के निम्नलिखित पाँच चरण पाये जाते हैं:
1) अंतर्ग्रहण (Ingestion)
2) पाचन (Digestion)
3) अवशोषण (Absorption)
4) स्वांगीकरण (Assimilation)
5) बहिष्करण (Egestion)

अंतर्ग्रहण
भोजन को शरीर के भीतर अर्थात आहारनाल तक पहुँचाने की प्रक्रिया को ‘अंतर्ग्रहण’ कहा जाता है| यह भोजन प्रक्रिया का प्रथम चरण है|
पाचन
ठोस, जटिल तथा बड़े-बड़े अघुलनशील भोजन कणों को अनेक एंज़ाइमों की सहायता से तथा विभिन्न रासायनिक व भौतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से तरल, सरल, और छोटे-छोटे घुलनशील कणों में बदलने की प्रक्रिया को ‘पाचन’ कहा जाता है| यह भोजन प्रक्रिया का दूसरा चरण है|
पाचन की भौतिक क्रियाओं में भोजन को मुँह के अंदर चबाना व मिश्रण (Grinding) शामिल है, जबकि भोजन में शरीर द्वारा विभिन्न पाचक रसों का मिश्रण पाचन की रासायनिक क्रिया कहलाती है|
अवशोषण
भोजन के कण छोटे हो जाते हैं तो वे आंत (Intestine) की दीवार से गुजरते हुए खून में मिल जाते हैं| यह प्रक्रिया ‘अवशोषण’ कहलाती है|  यह भोजन प्रक्रिया का तीसरा चरण है|
स्वांगीकरण
अवशोषित भोजन का शरीर के प्रत्येक भाग और प्रत्येक कोशिका तक पहुँचकर शरीर की वृद्धि व मरम्मत के लिए ऊर्जा उत्पादित करना ‘स्वांगीकरण’ कहलाता है| यह भोजन प्रक्रिया का चौथा चरण है|
बहिष्करण
मल के रूप में अनपचे भोजन के गुदा (Anal) मार्ग द्वारा शरीर से बाहर निकलने की प्रक्रिया ‘बहिष्करण’ कहलाती है|यह भोजन प्रक्रिया का अंतिम और पांचवा चरण है|




नोट: एककोशिकीय जीवों में पोषण प्रक्रिया का सम्पादन केवल एक कोशिका द्वारा ही किया जाता है|

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