जंतुओं में लैंगिक प्रजनन | Sexual reproduction in animals
माता–पिता द्वारा अपनी सेक्स कोशिकाओं या युग्मकों (Gametes) का प्रयोग कर नए जीव या संतान को जन्म देने की क्रिया ‘लैंगिक प्रजनन’ कहलाती है| मनुष्य, मछलियाँ, मेढ़क, बिल्लियाँ और कुत्ते-ये सभी लैंगिक प्रजनन द्वारा संतान को जन्म देते हैं।
लैंगिक प्रजनन को समझने से पहले लैंगिक प्रजनन में शामिल होने वाले कुछ महत्वपूर्ण तत्वों , जैसे नर-लिंग, मादा-लिंग, युग्मक (Gametes), शुक्राणु (Sperms), अंडाणु (Ova Or Eggs), निषेचन (Fertilization), युग्मनज (Zygote) और भ्रूण (Embryo) का अर्थ समझना जरूरी है।
• ऐसे जन्तु को जिनके शरीर में नर यौन कोशिकाएं, जिन्हें ‘शुक्राणु’ कहते हैं, होती हैं उन्हें ‘नर’ और ऐसे जन्तु को जिनके शरीर में मादा यौन कोशिकाएं, जिन्हें ‘अंडाणु’ कहते हैं, होती हैं उन्हें ‘मादा’ कहते हैं।
• युग्मकः ये ऐसी कोशिकाएं हैं जो लैंगिक प्रजनन में शामिल होती हैं या हम कह सकते हैं कि ये लैंगिक प्रजनन कोशिकाएं हैं। ये दो प्रकार की होती हैं– ‘नर युग्मक’ और ‘मादा युग्मक’। जन्तु में पाये जाने वाले नर युग्मक को ‘शुक्राणु’ और मादा युग्मक को ‘अंडाणु’ कहा जाता है। मादा युग्मक या मादा यौन कोशिका को ‘डिंब’ (Ovum) के नाम से भी जाना जाता है। डिंब (Ovum) का बहुवचन ‘अंडाणु’ (Ova) होता है। डिंब या अंडे में पानी पाया जाता है और ये भोजन को संचयित रखते हैं। ‘केंद्रक’ (Nucleus) डिंब का महत्वपूर्ण हिस्सा है। शुक्राणु कोशिकाएं डिंब या अंडाणु से सैंकड़ों या हजारों गुणा छोटी होती हैं और उनकी लंबी सी पूंछ होती है। शुक्राणु गतिशील होते हैं और अपनी पूंछ की मदद से स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं।
• निषेचनः लैंगिक प्रजनन के दौरान युग्मनज के निर्माण के लिए नर युग्मक का मादा युग्मक से मिलना, यानि युग्मनज के निर्माण के लिए शुक्राणु के अंडाणु से मिलने को ‘निषेचन’ कहते हैं। युग्मनज को ‘निषेचित अंडा’ या ‘निषेचित डिंब’ भी कहा जाता है। यह युग्मनज विकसित होकर एक नए शिशु में बादल जाता है। युग्मनज और नव निर्मित शिशु के बीच के विकास के चरण को ‘भ्रूण’ कहते हैं।
• आंतरिक और बाह्य निषेचनः मादा शरीर के भीतर होने वाले निषेचन को ‘आंतरिक निषेचन’ कहते हैं| इस तरह का निषेचन मनुष्यों, पक्षियों और सरीसृपों आदि स्तनधारियों में होता है। मादा शरीर के बाहर होने वाले निषेचन को ‘बाह्य निषेचन’ कहते हैं| इस तरह का निषेचन मेंढ़क, टोड और मछलियों जैसे उभयचर प्राणियों में होता है।
अलग– अलग पशुओं में युग्मनज (जाइगोट) के विकसित होकर एक सम्पूर्ण जीव में विकसित होने की पद्धति अलग–अलग होती है। मनुष्यों में युग्मनज (जाइगोट) मादा शरीर के भीतर बढ़ता और शिशु के रूप में विकसित होता है और एक शिशु को जन्म होता है। बिल्लियों, कुत्तों आदि जैसे पशुओं में भी शिशु का जन्म होता है, लेकिन अंडे देने वाले पक्षियों में यह पूरी तरह से अलग होता है। उदाहरण के लिए, मुर्गी अपने अंडे देने के बाद उन पर बैठ जाती है ताकि उसे गर्मी दे सके, युग्मनज विकसित होकर चूजे का रूप ले ले सकें। इसके बाद यह चूजा अंडे की परत तोड़कर बाहर आ जाता है। इसलिए, सभी जीव मनुष्यों की तरह पूर्णा विकसित शिशु को जन्म नहीं देते हैं।
• लैंगिक प्रजनन के दौरान डीएनए की मात्रा दुगुनी क्यों नहीं हो जाती, यह समझना महत्वपूर्ण है?
युग्मकों को ‘प्रजनन कोशिकाएं’ भी कहा जाता है। इनमें किसी जीव के सामान्य शारीरिक कोशिकाओं की तुलना में सिर्फ आधी मात्रा में ही डीएनए पाया जाता है या गुणसूत्रों की आधी संख्या ही मौजूद होती है। इसलिए, लैंगिक प्रजनन के दौरान जब नर युग्मक मादा युग्मक के साथ मिलता है, तो नव निर्मित ‘युग्मनज’ कोशिका में डीएनए की मात्रा सामान्य होती है। मनुष्य के शुक्राणु में 23 गुणसूत्र और मनुष्य के अंडे में भी 23 गुणसूत्र होते हैं, जिनके मिलने के बाद 23+23=46 गुणसूत्र बनते हैं, जो गुणसूत्रों की सामान्य संख्या है।
पशुओं में लैंगिक प्रजनन किस प्रकार होता है?
यह निम्नलिखित चरणों में होता है–
• नर जनक द्वारा शुक्राणु या नर युग्मक पैदा किया जाता है और शुक्राणु में गति करने के लिए लंबी पूंछ अर्थात ‘फ्लजेलम’ (Flagellum) पायी जाती है।
• अंडाणु, अंडा या मादा युग्मक मादा जनक द्वारा पैदा किया जाता है, जो शुक्राणु की तुलना में एक बड़ी कोशिका है। इसमें बहुत बड़ी मात्रा में कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) पाया जाता है।
• शुक्राणु अंडाणु या अंडे में प्रवेश करता है और मिलकर एक नई कोशिका बनाता है, जिसे युग्मनज (जाइगोट) कहते हैं। इस प्रक्रिया को ‘निषेचन’ कहते हैं। इसलिए युग्मनज ‘निषेचित डिंब’ होता है।
• इसके बाद जाइगोट बार–बार विभाजित होकर बड़ी संख्या में कोशिकाओं का निर्माण करता है, और अंततः नए शिशु के रूप में विकसित हो जाता है।
लैंगिक प्रजनन के लाभ
अलैंगिक प्रजनन की तुलना में लैंगिक प्रजनन के कई लाभ हैं। अलैंगिक प्रजनन में पैदा होने वाली संतान लगभग अपने माता– पिता के समान ही होती है, क्योंकि उनके जीन माता–पिता के जैसे ही होते हैं। इसलिए बहतु अधिक आनुवंशिक परिवर्तन संभव नहीं होता। यह एक प्रकार का नुकसान है, क्योंकि यह जीवों के विकास को रोकता है।
लैंगिक प्रजनन में हालांकि संतान अपने माता–पिता के समान होती है, लेकिन वे बिल्कुल उनके जैसी या किसी दूसरे के जैसी नहीं होती। इसकी वजह है कि संतान में कुछ जीन माता के और कुछ जीन पिता के होते है। इसलिए जीनों का मिश्रण अलग–अलग संयोजन बनाता है। इसी वजह से सभी संतानों में आनुवंशिक विविधता होती है। इस प्रकार लैंगिक प्रजनन प्रजातियों में विविधता लाता है और प्रजातियां अपने आस–पास के पर्यावरण में होने वाले बदलावों के प्रति बहुत तेजी से अनुकूलित हो सकती हैं।
हम कह सकते हैं कि लैंगिक प्रजनन आनुवंशिक विविधता प्रदान कर संतानों के गुणों में विविधता को बढ़ावा देता है। लैंगिक प्रजनन अलग–अलग गुणों वाली नई प्रजातियों की उत्पत्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह आनुवंशिक विविधता बेहतर और उससे भी बेहतर जीवों वाले प्रजातियों के विकास का लगातार नेतृत्व करती है जो अलैंगिक प्रजनन में संभव नहीं है।