हम्पी
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हम्पी
विवरण हम्‍पी भारत का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है।
राज्य कर्नाटक
ज़िला बेल्लारी ज़िला
निर्माण काल 1336
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 15.335° पूर्व- 76.462°
मार्ग स्थिति हम्पी बेलगाँव से 190 किलोमीटर, बेंगळूरु से 350 किलोमीटर, गोवा से 312 किलोमीटर दूर है।
प्रसिद्धि यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल है।
कब जाएँ अक्टूबर से मार्च
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल व सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है।
Airplane - हम्पी नज़दीकी बेल्लारी हवाई अड्डा
Train - हम्पी नज़दीकी होस्पेट रेलवे स्टेशन
Tour info - हम्पी हम्पी बस अड्डा
Taxi - हम्पी रेल, बस, टैक्सी
क्या देखें विरुपाक्ष मन्दिर, बडाव लिंग, लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर, हज़ारा राम मंदिर, कमल महल, हाउस ऑफ़ विक्टरी, संग्रहालय, हाथीघर आदि।
कहाँ ठहरें होटल, अतिथि ग्रह
क्या ख़रीदें हस्त शिल्प की वस्तुएँ, होस्पेट की दुकानों से हथकरघा की चीज़ें
एस.टी.डी. कोड 08394
Map icon - हम्पी गूगल मानचित्र
भाषा कन्नड़ भाषा, हिन्दी भाषा

हम्पी मध्यकालीन हिन्दू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी था। तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित यह नगर अब ‘हम्पी’ के नाम से जाना जाता है। यह प्राचीन शानदार नगर अब मात्र खंडहरों के रूप में ही अवशेष अंश में उपस्थित है। यहाँ के खंडहरों को देखने से यह सहज ही प्रतीत होता है कि किसी समय में हम्पी में एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती थी। भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्को द्वारा ‘विश्व विरासत स्थलों’ की सूची में भी शामिल है।


नामकरण

  • प्रसिद्ध मध्यकालीन विजयनगर राज्य के खंडहर हम्पी के निकट विशाल खंडहरों के रूप में पड़े हुए हैं। कहते हैं कि ‘पम्पपति’ के कारण ही इस स्थान का नाम हम्पी हुआ है। स्थानीय लोग ‘प’ का उच्चारण ‘ह’ कहते हैं और ‘पंपपति’ को ‘हम्पपति’ (हंपपथी) कहते हैं। हम्पी ‘हम्पपति’ का ही लघुरूप है।
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तुंगभद्रा नदी, हम्पी




  • यह माना जाता है कि एक समय में हम्पी रोम से भी समृद्ध नगर था। प्रसिद्ध मध्यकालीन विजयनगर राज्य के खण्डहर वर्तमान हम्पी में मौजूद हैं। इस साम्राज्य की राजधानी के खण्डहर संसार को यह घोषित करते हैं कि इसके गौरव के दिनों में स्वदेशी कलाकारों ने यहाँ वास्तुकला, चित्रकला एवं मूर्तिकला की एक पृथक शैली का विकास किया था। हम्पी पत्थरों से घिरा शहर है। यहाँ मंदिरों की ख़ूबसूरत शृंखला है, इसलिए इसे मंदिरों का शहर भी कहा जाता है।

इतिहास

हम्पी का इतिहास प्रथम शताब्दी से प्रारंभ होता है। उस समय इसके आसपास बौद्धों का कार्यस्थल था। बाद में हम्पी विजयनगर साम्राज्य की राजधानी बना। विजयनगर हिन्दुओं के सबसे विशाल साम्राज्यों में से एक था। हरिहर और बुक्कानामक दो भाईयों ने 1336 ई. में इस साम्राज्य की स्थापना की थी। कृष्णदेव राय ने यहाँ 1509 से 1529 के बीच हम्पी में शासन किया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। हम्पी में शेष रहे अधिकतर स्मारकों का निर्माण कृष्णदेव राय ने करवाया था। यहाँ चार पंक्तियों की क़िलेबंदी नगर की रक्षा करती थी। इस साम्राज्य की विशाल सेना दूसरे राज्यों से इसकी रक्षा करती थी। विजयनगर साम्राज्य के अर्न्‍तगत कर्नाटक, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश के राज्य आते थे। कृष्णदेवराय की मृत्यु के बाद इस विशाल साम्राज्य को बीदर, बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर और बरार की मुस्लिम सेनाओं ने 1565 में नष्ट कर दिया। कर्नाटक राज्य में स्थित हम्पी को रामायणकाल में पम्पा और किष्किन्धा के नाम से जाना जाता था। हम्पी नाम हम्पादेवी के मंदिर के कारण पड़ा। हम्पादेवी मंदिर ग्यारहवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच बनवाया गया था। विजयनगर के प्राचीन भवनों का विस्तृत विवरण लांगहर्स्ट ने अपनी पुस्तक ‘हम्पी रुइंस’ में दिया है।[2]

स्थापत्य कला

विजयनगर के शासकों ने मंत्रणागृहों, सार्वजनिक कार्यालयों, सिंचाई के साधनों, देवालयों तथा प्रासादों के निर्माण में बहुत उत्साह दिखाया। विदेशी यात्री नूनीज़ ने नगर के अन्दर सिंचाई की अद्भुत व्यवस्था और विशाल जलाशयों का वर्णन किया है। राजकीय परकोटे के अंतर्गत अनेक प्रासाद, भवन एवं उद्यान बनाये गये थे। राजकीय परिवार की स्त्रियों के लिए अनेक सुन्दर भवन थे, जिनमें ‘कमल-प्रासाद’ सुन्दरतम था। यह भारतीय वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण था।

मन्दिर

यहाँ अनेक मन्दिर बनवाये गये थे।

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हम्पी के अवशेष

लांगहर्स्ट कहता है कि-

कृष्णदेवराय के शासन काल में बनाया गया प्रसिद्ध ‘हज़ाराराम मन्दिर’ विद्यमान हिन्दू मन्दिरों की वास्तुकला के पूर्णतम नमूनों में से एक है।

मन्दिर की दीवारों पर रामायण के सभी प्रमुख दृश्य बड़ी सुन्दरता से उकेरे गये हैं। यह मन्दिर राज परिवार की स्त्रियों की पूजा के लिये बनवाया गया था। ‘विट्ठलस्वामी मन्दिर’ भी विजयनगर शैली का एक सुन्दर नमूना है। फ़र्ग्यूसन के विचार में-

यह फूलों से अलंकृत वैभव की पराकाष्ठा का द्योतक है, जहाँ तक शैली पहुँच चुकी थी।

हम्पी में विट्ठलस्वामी का मन्दिर सबसे ऊँचा है। यह विजयनगर के ऐश्वर्य तथा कलावैभव के चरमोत्कर्ष का द्योतक है। मंदिर के कल्याणमंडप की नक़्क़ाशी इतनी सूक्ष्म और सघन है कि यह देखते ही बनता है। मंदिर का भीतरी भाग 55 फुट लम्बा है। और इसके मध्य में ऊंची वेदिका बनी है। विट्ठल भगवान् का रथ केवल एक ही पत्थर में से कटा हुआ है। मंदिर के निचले भाग में सर्वत्र नक़्क़ाशी की हुई है। लांगहर्स्ट के कथनानुसार- “यद्यपि मंडप की छत कभी पूरी नहीं बनाई जा सकी थी और इसके स्तंभों में से अनेक को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया, तो भी यह मन्दिर दक्षिण भारत का सर्वोत्कृष्ट मंदिर कहा जा सकता है। फ़र्ग्युसन ने भी इस मंदिर में हुई नक़्क़ाशी की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। कहा जाता है कि पंढरपुर के विट्ठल भगवान इस मंदिर की विशालता देखकर यहाँ आकर फिर पंढरपुर चले गए थे।

कहानी

कहा जाता है कि हम्पी के हर पत्थर में कहानी बसी है। यहाँ दो पत्थर त्रिकोण आकार में जुड़े हुए हैं। दोनों देखने में एक जैसे ही हैं, इसलिए इन्हें सिस्टर स्टोंस कहा जाता है। इसके पीछे भी एक कहानी प्रचलित है। दो ईर्ष्यालु बहनें हम्पी घूमने आईं, वे हम्पी की बुराई करने लगीं। शहर की देवी ने जब यह सुना तो उन दोनों बहनों को पत्थर में तब्दील कर दिया।

यातायात और परिवहन

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तुंगभद्रा नदी, हम्पी
 हम्पी जाने के लिए हवाई, रेल और सड़क मार्ग को अपनी सुविधानुसार अपनाया जा सकता है। हम्पी जाने के लिए होस्पेट जाना पड़ता है। हैदराबाद से होस्पेट के लिए रेल है। होस्पेट से आगे 15 किलोमीटर की दूरी पर हम्पी है।
हवाई मार्ग

हम्पी से 77 किलोमीटर दूर बेल्लारी सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा है। बैंगलोर से बेल्लारी के लिए नियमित उड़ानों की व्यवस्था है। बेल्लारी से राज्य परिवहन की बसों और टैक्सी द्वारा हम्पी पहुँचा जा सकता है।

रेल मार्ग

हम्पी से 13 किलोमीटर दूर होस्पेट नज़दीकी रेलवे स्टेशन है। यह रेलवे स्टेशन हुबली, बैंगलोर, गुंटाकल से जुड़ा हुआ है। होस्पेट से राज्य परिवहन की नियमित बसें हम्पी तक जाती हैं।

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हम्पी के अवशेष

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सड़क मार्ग

होस्पेट से सड़क मार्ग के द्वारा हम्पी पहुँचा जा सकता है। हम्पी बेलगाँव से 190 किलोमीटर दूर बेंगळूरु से 350 किलोमीटर दूर, गोवासे 312 किलोमीटर दूर है।[2]

उद्योग

इतिहासकारों ने हम्पी को व्यापार का प्रमुख केन्द्र कहा है। रुई और मसालों के व्यापारिक मार्ग पर नियंत्रण करने के बाद हम्पी की ख़ूब उन्नति हुई है।

जलवायु

हम्पी की जलवायु उष्णकटिबंधीय है। यहाँ गर्मियों में अधिक गर्मी और सर्दियों में अधिक ठंड पड़ती है। जून से अगस्त तक यहाँ बरसात का मौसम रहता है। अक्टूबर से मार्च की अवधि हम्पी जाने के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है।[2]

पर्यटन

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विठाला मन्दिर, हम्पी
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बडाव लिंग, हम्पी
 यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में शामिल हम्‍पी भारत का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। 2002 में भारत सरकार ने इसे प्रमुख पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने की घोषणा की थी। हम्पी में स्थित दर्शनीय स्थलों में सम्मिलित हैं- विरूपाक्ष मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर, नरसिम्हा मन्दिर, सुग्रीव गुफ़ा, विठाला मन्दिर, कृष्ण मन्दिर, हज़ारा राम मन्दिर, कमल महल तथा महानवमी डिब्बा आदि। हम्पी से 6 किलोमीटर दूर तुंगभद्रा बाँध स्थित है।

मंदिरों का शहर

हम्पी मंदिरों का शहर है जिसका नाम पम्पा से लिया गया है। पम्पा तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। हम्पी इसी नदी के किनारे बसा हुआ है। पौराणिक ग्रंथ रामायण में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किन्धा की राजधानी के तौर पर किया गया है। शायद यही वजह है कि यहाँ कई बंदर हैं। हम्पी से पहले एनेगुंदी विजयनगर की राजधानी हुआ करती थी। दरअसल यह गाँव है, जो विकास की रफ़्तार में काफ़ी पिछड़ा हुआ है। यहाँ के निवासियों को बिल्कुल नहीं पता कि सदियों पहले यह जगह कैसी हुआ करती थी। नव वृंदावन मंदिर तक पहुँचने के लिए नाव के ज़रिए नदी पार करनी पड़ती है, जिसे कन्नड़ में टेप्पा कहा जाता है। यहाँ के लोगों का विश्वास है कि नव वृंदावन मंदिर के पत्थरों में जान है, इसलिए लोगों को इन्हें छूने की इजाज़त नहीं है।

विरुपाक्ष मन्दिर
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विरुपाक्ष मंदिर, हम्पी

विरुपाक्ष मन्दिर को पंपापटी मंदिर भी कहा जाता है, यह हेमकुटा पहाड़ियों के निचले हिस्से में स्थित है। हम्पी के कई आकर्षणों में से यह मुख्य है। 1509 में अपने अभिषेक के समय कृष्णदेव राय ने गोपुड़ा का निर्माण करवाया था। भगवान विठाला या भगवान विष्णु को यह मंदिर समर्पित है। 15वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर बाज़ार क्षेत्र में स्थित है। यह नगर के सबसे प्राचीन स्मारकों में से एक है। मंदिर का शिखर ज़मीन से 50 मीटर ऊँचा है। मंदिर का संबंध विजयनगर काल से है। इस विशाल मंदिर के अंदर अनेक छोटे-छोटे मंदिर हैं जो विरूपाक्ष मंदिर से भी प्राचीन हैं। मंदिर के पूर्व में पत्थर का एक विशाल नंदी है जबकि दक्षिण की ओर भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा है। यहाँ अर्ध सिंह और अर्ध मनुष्य की देह धारण किए नरसिंह की 6.7 मीटर ऊँची मूर्ति है।[2]

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पत्थर का रथ, हम्पी
किंवदंती है कि भगवान विष्णु ने इस जगह को अपने रहने के लिए कुछ अधिक ही बड़ा समझा और अपने घर वापस लौट गए। विरुपाक्ष मंदिर भूमिगत शिव मंदिर है। मंदिर का बड़ा हिस्सा पानी के अन्दर समाहित है, इसलिए वहाँ कोई नहीं जा सकता। बाहर के हिस्से के मुक़ाबले मंदिर के इस हिस्से का तापमान बहुत कम रहता है।
रथ

विठाला मंदिर का मुख्य आकर्षण इसकी खम्बे वाली दीवारें और पत्थर का बना रथ है। इन्हें संगीतमय खंभे के नाम से जाना जाता है, क्योंकि प्यार से थपथपाने पर इनमें से संगीत निकलता है। पत्थर का बना रथ वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। पत्थर को तराशकर इसमें मंदिर बनाया गया है, जो रथ के आकार में है। कहा जाता है कि इसके पहिये घूमते थे, लेकिन इन्हें बचाने के लिए सीमेंट का लेप लगा दिया गया है।

बडाव लिंग

पास में स्थित बडाव लिंग चारों ओर से पानी से घिरा है, क्योंकि इस मंदिर से ही नहर गुज़रती है। मान्यता है कि हम्पी के एक ग़रीब निवासी ने प्रण लिया था कि यदि उसकी क़िस्मत चमक उठी तो वह शिवलिंग का निर्माण करवाया। बडाव का मतलब ग़रीब ही होता है।

लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर

हम्पी लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर या उग्र नरसिम्हा मंदिर बड़े चट्टानों से बना हुआ है, यह हम्पी की सबसे ऊँची मूर्ति है। यह क़रीब 6.7 मीटर ऊँची है। नरसिम्हा आदिशेष पर विराजमान हैं। असल में मूर्ति के एक घुटने पर लक्ष्मी जी की छोटी तस्वीर बनी हुई है, जो विजयनगर साम्राज्य पर आक्रमण के समय धूमिल हो गई।

रानी का स्नानागार

हम्पी में स्थित रानी का स्नानागार चारों ओर से बंद है। 15 वर्ग मीटर के इस स्नानागार में गैलरी, बरामदा और राजस्थानी बालकनी है। कभी इस स्नानागार में सुगंधित शीतल जल छोटी-सी झील से आता है, जो भूमिगत नाली के माध्यम से स्नानागार से जुड़ा हुआ था। यह स्नानागार चारों ओर से घिरा और ऊपर से खुला है।[2]

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पत्थर का नंदी, हम्पी
 हज़ारा राम मंदिर




हज़ारा राम मंदिर हम्पी के राजा का निजी मंदिर माना जाता था। मंदिर की भीतरी और बाहरी दीवारों पर बेहतरीन नक़्क़ाशी की गई है। बाहरी कमरों की छतों के ठीक नीचे बनी नक़्क़ाशी में हाथी, घोड़ा, नृत्य करती बालाओं और मार्च करती सेना की टुकड़ियों को दर्शाया गया है, जबकि भीतरी हिस्से में रामायण और देवताओं के दृश्य दिखाए गए हैं। इसमें असंख्य पंखों वाले गरुड़ को भी चित्रित किया गया है।[2]

कमल महल

हम्पी में स्थित कमल के आकार का दो मंजिला महल और इसका मुंडेर महल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। कमल महल हज़ारा राम मंदिर के समीप है। यह महल इन्डो-इस्लामिक शैली का मिश्रित रूप है। कहा जाता है कि रानी के महल के आसपास रहने वाली राजकीय परिवारों की महिलाएँ आमोद-प्रमोद के लिए यहाँ आती थीं। महल के मेहराब बहुत आकर्षक हैं।[2]

हाउस ऑफ़ विक्टरी

हाउस ऑफ़ विक्टरी स्थान विजयनगर के शासकों का आसन था। इसे कृष्णदेवराय के सम्मान में बनवाया गया जिन्होंने युद्ध में ओडिशा के राजाओं को पराजित किया था। वह हाउस ऑफ़ विक्टरी के विशाल सिंहासन पर बैठते थे और नौ दिवसीय दसारा पर्व को यहाँ से देखते थे।[2]

संग्रहालय

कमलापुर में स्थित पुरातत्त्व विभाग का संग्रहालय बहुत-सी प्राचीन मूर्तियों और हस्तशिल्पों का सग्रंह है। इस क्षेत्र की समस्त हस्तशिल्पों को यहाँ देखा जा सकता है।[2]

हाथीघर

हम्पी का हाथीघर जीनान क्षेत्र से सटा हुआ है। यह ग़ुम्बदनुमा इमारत है जिसका इस्तेमाल राजकीय हाथियों के लिए किया जाता था। इसके प्रत्येक चेम्बर में एक साथ ग्यारह हाथी रह सकते थे। यह हिन्दू-मुस्लिम निर्माण कला का उत्तम नमूना है।

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