मानव शरीर- कान की संरचना
कानों से हम आवाज या ध्वनि तो सुनते ही हैं, लेकिन ये हमारे शरीर का संतुलन बनाए रखने में भी हमारी मदद करते हैं। बनावट के आधार पर कान को तीन भागों में बांटा जा सकता है- बाह्य कान (Outer ear), मध्य कान (Middle ear) और आंतरिक कान (Inner ear)।
जब किसी वस्तु से आवाज उत्पन्न होती है, तो ध्वनि तरंगें पैदा होती है, ये तरंगें बाह्य कान से होती हुई एक नली द्वारा कान के अंदर पहुंचती हैं। मध्य कान का कर्ण पटल (Eardrum) या टिम्पैनिक झिल्ली (Tympanic membrane) इन तरंगों के टकराने से कंपन (Vibrate) करने लगती हैं। कर्णपटल के ठीक पीछे तीन छोटी-छोटी अस्थिकाएं (Ossicles) होती हैं। इन्हें मैलियस या हैमर (The malleus or hammer) इन्कस या एनविल (The incus or anvil) तथा स्टैप्स या स्टिरप (The stapes or stirrup) कहते हैं। ये हड्डियाँ इन कपनों को कॉक्लिया (Cochlea) तक पहुंचा देती हैं। कॉक्लिया में एक द्रव पदार्थ (Fluid) भरा होता है, जिसके अंदर तंत्रिकाओं के सिरे (Nerve endings) होते हैं। कॉक्लिया में कपन होने से यह द्रव पदार्थ भी कपन करने लगता है। इन कंपनों से नाड़ियों के सिरे उत्तेजित हो उठते हैं और उत्तेजना से पैदा हुए संवेग श्रवण तंत्रिका (Auditory nerve) द्वारा मस्तिष्क में पहुंच जाते हैं। मस्तिष्क आवाज का विश्लेषण करता है और हमें आवाज सुनाई दे जाती है। हमारे कान तेज और मंद, सभी ध्वनियां सुन सकने में सक्षम होते हैं। कानों को निरोग रखने के लिए समय-समय पर उनकी सफाई करवानी जरूरी है।
कान के भाग Ear parts
कान के तीन भाग होते हैं। कीप जैसी कर्णपाली और कान के पर्दे तक जाने वाले नलीनुमा रास्ते को बाहरी कान कहते हैं। यहॉं कर्णमल (मोम) व बाहरी कण इकट्ठे होते हैं। मध्य कान कान के पर्दे और अन्त कर्ण की शंख (लेबरिंथ) के बीच होता है। अन्तकर्ण हडि्डयों में स्थित होता है। यह शंखकृति अंग ध्वनि (आवाज़) की तरंगों और शरीर की मुद्राओं यानि खड़े होने, लेटने व बैठने आदि के बदलावों को तंत्रिकाओं के संकेतों में बदल देता है। सुनाई देने के लिए बनी तंत्रिका (आठवीं मस्तिष्क तंत्रिका) ये संकेत दिमाग तक पहुँचाती हैं।
बाहरी कान outer ear
कीप या कर्णपाली से आवाज़ की तरंगें इकट्ठी करके कान के पर्दे तक पहुँचाती है। इससे कान के पर्दे में कम्पन होता है। बाहरी कान के गुफानुमा रास्ते की त्वचा आम त्वचा जैसे एक चिकना पदार्थ स्वात्रित करती है। यही पदार्थ इकट्ठा होकर कान की मोम बनाता है। मोम धूल और अन्य कणों को इकट्ठा करने में मदद करती है। हम में से ज़्यादातर लोगों को कान में से बार बार यह मोम निकालते रहने की आदत होती है। इस आदत से चोट लग सकती है। अक्सर मोम सख्त हो कर कान के पर्दे पर चिपक जाती है। इससे बाहरी कान में दर्द होता है।
मध्य कान Middle ear
मध्य कान यूस्टेशियन ट्यूब द्वारा नाक की गुफा से जुड़ा रहता है। यूस्टेशियन नाक को ई एन टी (ईयर नोज़ थ्रोट) ट्यूब भी कह सकते हैं क्योंकि यह कान नाक और गले को जोड़ती है। इसके कारण मध्य कर्ण वातावारण में अचानक हुए हवा के दबाव में बदलाव को झेल सकती है। अगर अचानक किसी विस्फोट या धमाके की आवाज़ कान के पर्दे से टकराए तो वो फटता नहीं है क्योंकि यह जबर्दस्त दवाब ईएनटी ट्यूब द्वारा नाक की गुफा में चला जाता है। पर मुश्किल यह है कि यही ई एन टी ट्यूब नाक व गले के संक्रमण भी कान तक पहुँचा देती है।
कान का पर्दा और छोटी छोटी हड्डियां Ear veil and small bones
कान का पर्दा किसी ड्रम (जैस ढोलक) के पर्दे जैसा एक तना हुआ पर्दा होता है। तने होने से कम्पनों को ग्रहण करने में मदद मिलती है। मध्य कान की छोटी छोटी हडि्डयों की शृंखला कान के पर्दे से इन कम्पनों को लैबरिंथ तक पहुँचाती हैं। बार बार होने वाला संक्रमण कई बार इस शृंखला को बरबाद कर देता है। इससे हमेशा के लिए बहरापन हो जाता है।
कर्णमूल (मैस्टाइड) हड्डी
मध्य कान इसी हड्डी में फिट होता है। यह हड्डी भी आवाज़ के कम्पन आगे पहुँचाती है हालॉंकि उतनी अच्छी तरह नहीं जितना कि कान का पर्दा। इस लिए जब मध्य कान की हडि्डयों की शृंखला को नुकसान हो जाता है तो इस पिछले हड्डी द्वारा भी थोड़ा बहुत सुन पाना सम्भव होता है।
भीतरी कान-आंतरिक कान (लैबरिंथ) Inner Ear – Inner Ear (Labyrinth)
आंतरिक कान या लैबरिंथ शंखनुमा संरचना होती है। इस शंख में द्रव भर रहता है। यह आवाज़ के कम्पनों को तंत्रिकाओं के संकेतों में बदल देती है। ये संकेत आठवीं मस्तिष्क तंत्रिका द्वारा दिमाग तक पहुँचाती है। आन्तर कर्ण (लैबरिंथ) की अंदरूनी केशनुमा संरचनाएँ आवाज़ की तरंगों की आवृति के अनुसार कम्पित होती हैं।
आवाज़ की तरंगों को किस तरह अलग-अलग किया जाता है यह समझना बहुत ही मज़ेदार है। आन्तर कर्ण (लैबरिंथ) में स्थित पटि्टयों का संरचना हारमोनियम जैसे अलग-अलग तरह से कम्पित होती हैं। यानि आवाज़ की तरंगों की किसी एक आवृत्ति से कोई एक पट्टी कम्पित होगी। और दिमाग इसे एक खास स्वर की तरह समझ लेता है। इस ध्वनिज्ञान के विषय में और भी कुछ मत है।
शरीर संतुलन body balance
आन्तर कर्ण (लैबरिंथ) का एक और काम है सन्तुलन बनाना। शंखसे कुछ उपर अलग-अलग तलों (आड़े, तिरछे और खड़े) में स्थित तीन अर्धगोलाकार नलिकाएँ आन्तर कर्ण (लैबरिंथ) से निकलती हैं। ट्यूब में पड़े कण शरीर की स्थिती के अनुसार विशिष्ट नलिका में जम जाते है। इसी से सन्तुलन का अहसास होता है। यानि की सिर की अवस्था के अनुसार ये कण एक नलिकामें ज़्यादा होंगे और अन्य दो में कम। उस से मिलने वाला अतिरिक्त उद्दीपन सिर की किसी खास स्थिती का ज्ञान देगा । इस सन्तुलन करने वाली सरंचना में किसी किस्म की गड़बड़ी से जी मिचलाता है। अंतर्कर्ण के शोथ में भी चक्कर आदि तकलीफ होती है।
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