आनुवांशिक पदार्थ की खोज:- 1900 वीं शताब्दी तक वैज्ञानिकों में यह मतभेद रहा कि आनुवांशिक पदार्थ क्या है। उस समय वैज्ञानिक प्रोटीन को आनुवांशिक पदार्थ मानते थे। पर 20वीं शताब्दी मे फ्रेडरिक मिशर नामक वैज्ञानिक ने “न्युक्लीन” की खोज की। जिससे पुनः विवाद शुरु हुआ कि आनुवांशिक पदार्थ प्रोटीन है या DNA यानि न्युक्लीन है। फिर 20 वीं शताब्दी में कई प्रयोगों द्वारा अनेक वैज्ञानिको ने यह सिद्ध किया कि DNA ही आनुवाशिक पदार्थ है।
आनुवाशिक पदार्थ की खोज का प्रयोग
फ्रेडरिक ग्रिफिथ का प्रयोग
ग्रिफिथ ने अपने प्रयोग में न्यूमोनिया रोग के जीवाणु न्युमोकोकाई को गर्म किया तो वे मृत हो गये इनमें न्युक्लिक अम्ल (DNA के अतिरिक्त सभी पदार्थ (प्रोटीन) निष्क्रय हो गये। अब इन्होंने इस मृत जीवाणु को न्युमोनिया रोग के एक आरोग जनक जीवाणु के साथ चूहे मे प्रवेश कराने पर चूहे को न्युमोनिया रोग हो गया और वह मृत हो गया। क्योकि निर्जीव जीवाणु का DNA न्युक्लिक अम्ल सजीव अरोगजनक जीवाणु के आनुवांशिक लक्षणों में परिवर्तन करके इसे रोगजनक जीवाणु मे बदल दिया।
ओस्टवाल्ड एवेरी का प्रयोग
ग्रिफिथ के बाद ओस्टवाल्ड एवेरी ने अपने सहयोगी वैज्ञानिक से मिलकर यह पता लगाया कि अरोगजनक जीवाणु का आनुवांशिक रुपान्तरण रोगजनक जीवाणु का DNA ही बदलता है प्रोटीन नही ।
अर्थात इस बात से यह स्पष्ट है कि DNA ही आनुवांशिक पदार्थ है।
Note:- शीघ्र ही अल्फ्रेड मस्काई ने भी यह सिद्ध किया कि जीव की समस्त दैहिक कोशिका मे DNA समान होता है तथा युग्मक मे DNA आधा रहता है।
अन्त मे हुर्शे व चेज नामक वैज्ञानिक ने भी अपने प्रयोगों के माध्यम से सिद्ध किया कि DNA ही आनुवाशिक पदार्थ है।
इन प्रयोगों के माध्यम से यह पूर्ण रूप से सिद्ध हुआ कि DNA ही आनुवंशिक पदार्थ है अर्थात DNA ही एक पीढ़ी के लक्षणों को दूसरे पीढी स्थानान्तरित करता है।
D.N.A (डीआक्सी राइबो न्यूक्लिक अम्ल)
D. N. A एक आनुवांशिक पदार्थ है जो एक पीढ़ी के लक्षणों को दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित करने का कार्य करता है।
स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रेडरिक मीशर ने सन् 1869 मे केन्द्रक में मिलने वाले अम्लीय पदार्थ DNA की खोज की। इन्होंने इसे न्यूक्लीन नाम दिया
D.N.A पादप विषाणु के अतिरिक्त सभी सजीवों में स्थित महत्त्वपूर्ण जैव रासायनिक यौगिक है, इसे शरीर की आत्मा भी कहा जाता है।
D.N.A. का रासायनिक संघटन
D.N.A. का रासायनिक संघटन इस प्रकार है:-
- शर्करा:- D.N.A मे डी. आक्सीराइबोस शर्करा पाई जाती है।
- फास्फेट समूह → फास्फोरिक अम्ल (H3PO4) के रूप में होता है।
- नाइट्रोजनी क्षारक → नाइट्रोजनी क्षारक दो प्रकार के होते हैं।
- प्युरीन → एडिनीन (A) , ग्वानीन (G)
- पिरिमिडीन → थाइमीन (T) , साइटोसीन (C)
D.N.A की संरचना (वाटसन एवं क्रिक मॉडल)
- D.N.A पाली न्युक्लियोटाइड श्रृंखला की बनी हुई द्विकुण्डलित, सर्पिलाकार या सीढीनुमा संरचना होती है।
- जिसमे एक प्यूरीन एक पिरिमिडीन से ठीक सामने जुड़ा होता है।
- जिसमे एडिनीन (A), थायमीन (T) के साथ दो हाइड्रोजन बन्ध से तथा ग्वानीन् (G), साइटोसीन (C) से तीन हाइड्रोजन बन्ध द्वारा जुड़ा रहता है।
- इसके प्रत्येक समाक्षर की दूरी 3:4 A° होती है तथा प्रत्येक 10 समाक्षर के बाद एक ऐठन करता है |
- जिसकी दूरी 34 A° होती है तथा इसकी चौड़ाई 20 A° होती है| DNA के घुमाव में एक दीर्घ खाँच व लघु खाँच होती है।
D.N.A का पराकुण्डलन (Packing of D.N.A)
- D.N.A के समस्त अणुओ का कुछ प्रोटीन (हिस्टोन) की सहायता से बार बार या कई बार कुण्डलन होकर केन्द्रक मे व्यवस्थित होना ही DNA की पैकेजिंग या पराकुण्डलन कहलाता है।
- प्राय: मानव शरीर की कोशिका के केन्द्रक में पाये जाने वाला DNA अणु बहुत लम्बा होता है।
- मानव की प्रत्येक कोशिका मे D.N.A 46 की संख्या मे पाये जाते है।
- एक कोशिका के सभी DNA की लम्बाई लगभग 2 मीटर होती है। और मानव शरीर में लगभग 1014 कोशिका पाई जाती है।
- तो DNA की कुल लम्बाई 2X1014 होगी। अब इतने लम्बे DNA का मानव की एक सूक्ष्म कोशिका के केन्द्रक में समाना आसान नहीं है।
- अत: D.N.A की लम्बाई एक विशेष प्रकार के प्रोटीन (हिस्टोन) की सहायता से कई बार कुण्डलन होकर केन्द्रक में व्यवस्थित होता है जिसे D.N.A का पराकुण्डलन कहते हैं।
D.N.A का द्विगुणन या प्रतिकृतियन :-
प्रत्येक कोशिका विभाजन से पहले अपने D.N.A अणु का संतति कोशिकाओं मे जाने के लिए दो हूबहू नये D.N.A मे बदल जाता है। यह क्रिया कोशिका मे स्वद्विगुवन के क्षमता के कारण होती है।
पुराने D.N.A से सद्विगुणन द्वारा दो संतति DNA बनाने की क्रिया को D.N.A की प्रतिकृतियन या द्विगुणन कहते है।
D.N.A व R.N.A मे अन्तर
D.N.A | R.N.A |
इसका पूरा नाम डीआक्सी राइबो अम्ल है। | इसका पूरा नाम राइबो न्युक्लिक अम्ल है। |
इसमे A, G, T, C क्षारक पाये जाते है। | इसमे A,G, U, C क्षारक पाये जाते हैं। |
यह केन्द्रक मे पाया जाता है। | यह केन्द्रक मे नहीं पाया जाता है। |
यह आनुवांशिक पदार्थ काकाम करता है| | यह प्राय: प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करता है| |
D.N.A ( डीआक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल )
D.N.A एक आनुवांशिक पदार्थ है जिसकी खोज फ्रेडरिक मीशर ने 1869 ई० मे की थी।
D. N.A के प्रकार:-
- A-DNA
- B-DNA
- C- DNA
- D-DNA
- z – DNA
R.N.A (राइबो न्यूक्लिक अम्ल)
- R.N.A प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करता है।
- R.N.A प्राय: कुछ विषाणुओ मे आनुवांशिक पदार्थ के रूप में भी कार्य करता है।
R.N.A के प्रकार
- आनुवांशिक आर. एन. ए
- अन आनुवांशिक आर. एन. ए
- आनुवांशिक आर. एन. ए. → वह आर. एन. ए. जो आनुवांशिक पदार्थ के रूप में पाया जाता है। उसे आनुवंशिक आर. एन.ए. कहते है। उदाहरण → समस्त पादप विषाणु ।
- अन आनुवांशिक आर. एन. ए. → ऐसा आर. एन. ए जो आनुवाशिक पदार्थ का कार्य नहीं करते । अन आनुवांशिक आर. एन. ए कहलाते है।
यूकॅरियोटस मे तीन प्रकार का अन आनुवाशिक R.N.A पाया जाता है:-
- सन्देशवाहक M-RNA
- ट्रांसफर t – RNA
- राइबोसोमल R-RNA
सन्देशवाहक आर. एन. ए. (mRNA):- सन्देशवाहक RNA, DNA से प्राप्त आनुवांशिक सूचनाओ को राइबोसोम तक पहुंचाता है। इसलिए जैकब और मोनाड़ ने इसे मैसेंजर RNA नाम दिया। कोशिकाद्रव्य में पाये जाने वाले कुल RNA का 3.5% भाग mRNA होता है।
ट्रांसफर आर. एन. ए. (t RNA):- कोशिकाओं मे लगभग 100 प्रकार के tRNA पाये जाते हैं। यह कुल RNA का लगभग 15% भाग का निर्माण करते हैं। tRNA अमीनो अम्लो ढोकर राइबोसोम काम्पलेक्स तक लाते है।
राइबोसोमल आर. एन. ए. (rRNA):- राइबोसोम के अन्दर पाये जाने वाले RNA को rRNA कहते है। इसे घुलनशील RNA भी कहते है। यह कुल RNA का लगभग 80% भाग का निर्माण करते है। इसका प्रमुख कार्य राइबोसोम का निर्माण करना है।
सेन्ट्रल डोग्मा (Contral Dogma)
क्रिक ने 1958 में प्रस्तावित किया कि आनुवांशिक सूचनाओ का प्रवाह DNA से RNA व प्रोटीन की ओर एक दिशा मे होता है। इस तथ्य को क्रिक ने एक सिद्धांत के रूप प्रस्तावित किया जिसे अणु जीव विज्ञान (molecular biology) मे केन्द्रीय सिद्धांत (Central dogma) कहते है।
आनुवांशिक कूट (Genetic Code)
- आनुवांशिक कूट के बारे मे जानकारी देने का श्रेय का नीरेनवर्ग (1961) और उनके सहयोगियों को जाता है।
- जीन के लित्यन्तरण द्वारा बने mRNA अणु मे उपस्थित त्रिगुणी संकेत को कोडोन या आनुवांशिक कूट कहते है।
- जो जीवो मे न्युक्लियोटाइड के तीन समूहों मे (AAA, ATA, GCA, TAT) होता है जो विभिन्न प्रकार के अमीनो अम्लो का संचालन करती है।
- सभी जीवों में प्रोटीन्स की पाली पेप्टाइड श्रृंखला में अमीनो अम्लो के अनुक्रम आनुवांशिक कूट के अनुसार होता है।
आनुवांशिक कूट की विशेषताएँ
- यह त्रिक न्युक्लियोटाइड का बना होता है ।
- यह अतिव्यापित नही होता है ।
- इसमे प्रारम्भ व समापन कोड होते है।
- यह क्रमबद्ध है।
- त्रिगुणी संकेत कामाविहीन होते हैं।
जीन अभिव्यक्ति का नियमन
कुछ विशिष्ट प्रकार की DNA बंधनी प्रोटीन की सहायता से सक्रिय जीन को निष्क्रिय जीन मे तथा निष्क्रिय जीन को सक्रिय जीन मे या जीन के लित्यन्तरण की दर को बढ़ाना या घटाना ही जीन अभिव्यक्ति का नियमन कहलाता है। तथा ऐसे जीन्स को नियन्त्रित जीन कहते है।
अनुलेखन (Trnscription)
- D.N.A अणुओं की विशेष खण्डो पर उनकी अनुपूरक प्रतिलिपियो के रूप मे mRNA अणुओं का संश्लेषण होता है। यह क्रिया कोशिका के केन्द्रक में होती है।
- प्रत्येक जीन या सिस्ट्रान के शुरू मे प्रोमोटर स्थल तथा अन्त मे समापन स्थल होता है।
- अतः mRNA का संश्लेषण प्रोमोटर स्थल के समीप स्थित सूत्रपात स्थल से शुरू होता है, और समापन स्थल पर समाप्त होता है।
- DNA मे GCAT लिपि में आबद्ध प्रोटीन संश्लेषण के संदेश के GCAU लिपि मे अनुलिपिकरण की क्रिया को अनुलेखन कहते है।
अनुलेखन की क्रियाविधि
- R.N.A पालिमरेज एंजाइम का DNA कुण्डली से जुड़ना ।
- DNA की दोनो श्रृंखलाओ का अलग होना ।
- क्षारको का युग्मन ।
- राइबोन्युक्लियोटाइड ट्राईफास्फेट का · मोनो फास्फेट मे बदलना ।
- मोनो फास्फेट अणु का फास्फोडाई एस्टर बन्धो द्वारा जुड़कर R-N-A पालिन्युक्लियोटाइड का निर्माण करना ।
- पालिन्युक्लियोटाइड श्रृंखला का समापन ।
- D.N.A अणु का पूर्व स्थिति मे आ जाना ।
अनुवादन (Trnslation)
mRNA मे न्युक्लियोटाइड की श्रृंखला के एमीनो अम्लो की पाली पेप्टाइड श्रृंखला मे बदलने की क्रिया को अनुवादन या रुपान्तरण कहते है।
अनुवादन की क्रियाविधि
- एमीनो अम्लो का सक्रियण ।
- t.RNA अणुओं से सक्रिय एमीनो अम्ल संलग्न होकर एमीनो एसिल बनाता है।
- m.RNA का राइबोसोम से जुड़ना |
- पालीपेप्टाइड श्रृंखला का दीर्घीकरण ।
- पालीपेप्टाइड श्रृंखला का समापन हो जाता है।
मानव जीनोम (Human Genom)
मानव कोशिका में उपस्थित सभी गुणसूत्रों के DNA मे न्यूक्लियोटाइड के क्रम के रूप में संग्रहीत जैव सूचनाएँ ही मानव जीनोम कहलाता है।
मानव जीनोम प्रोजेक्ट
- सर्वप्रथम मानव जीनोम प्रोजेक्ट की नीव नीन डासट ने 1983- 1984 मे रखा |
- वह परियोजना जिसमे मानव में विभिन्न DNA अणु में स्थित विभिन्न जीन्स का क्रम व उनमें स्थित न्युक्लियोटाइड के क्रम को ज्ञात करके मानव की जैव सूचनाओ को जानने का प्रयास किया जाता है, उसे मानव जीनोम कहते है।
- H.G.P के लिए सर्वप्रथम अमेरिका के ऊर्जा विभाग ने HGP का लोगो तैयार किया ।
- H.G.P के अन्तर्गत ही प्रथम बार मानव के 22वे गुणसूत की D.N.A श्रृंखला के पूरे क्रम को पता लगाकर सन् 1900 में प्रकाशित किया गया । इसके बाद 2004 में पूर्ण मानव जीनोम श्रृंखला को ज्ञात किया गया जिससे मानव के पूर्ण आनुवांशिक चित्रण स्पष्ट किया गया अर्थात मानव मे समस्त जीनों और उनमें समानता और उनका वितरण जाना गया |
मानव जीनोम का लक्ष्य
- विभिन्न जातियों के विकास के क्रम को ज्ञात करना।
- असाध्य रोगो को ठीक करना |
- मानव की जैविक सूचना को कम्प्यूटरीकृत करना ।
- गुणसूत्रो मे स्थित जीन के क्रमों का पता लगाना व उनकी संरचना एवं कार्य का पता लगाना ।
- उच्च संरक्षित जीनो को पहचानना |
- अनेक जीवो के जीनोम का चित्रण करना ।
मानव जीनोम प्रोजेक्ट की उपयोगिता
- रोग उत्पन्न करने वाले न्युक्लियोटाइड का पता लगाना ।
- मानव या मानव समूह की आनुवांशिक वंशावली को निर्धारित करने में सहायक ।
- आनुवांशिक रोगों की पहचान करने में सहायक Ex=7 (हीमोफीलिया)
- D. N.A अंगुलिछाप करके अपराधी की पहचान करने मे ।
मानव जीनोम प्रोजेक्ट की विशेषताएँ
- मानव जीनोम मे 3 बिलियन से अधिक न्युक्लियोटाइड है। एक मानव जीन मे लगभग 3000 न्युक्लियोटाइड होते है। सबसे बड़ी जीन डिस्ट्रोफिन में लगभग 2.4 मिलियन क्षारको का अनुक्रम मिलता है,
- मानव जीनोम में करीब 30000 क्रियात्मक जीन होते हैं। जीनोम का लगभग 2% भाग प्रोटीन कोडिग के लिए उपयोगी होता है।
- मानव जीनोम तैयार करने हेतु WBCs अथवा मस्तिष्क ऊतको से DNA लिया जाता है ।
D.N.A फिंगर प्रिंटिंग ( अंगुलिछापन )
- D.N. A का एण्डोन्युक्लियज एन्जाइम की सहायता से विदलन करके D.N.A खण्डो की मैचिंग द्वारा किसी व्यक्ति की पहचान करना ही D.N.A फिंगर प्रिंटिंग कहलाता है।
- इस तकनीकी की खोज ऐलेक्स जेफ्री ने सन् 1986 में की थी अब यह कानूनी रूप से वैध है।
- प्रत्येक जीव की D.N.A संरचना तथा आनुवांशिकता विशिष्ट और अन्य जीवो से अलग होती है।
D.N.A फिंगर प्रिंटिंग की विधि
- D.N.A को पृथक करना (शुक्राणु, रक्त, कंकाल )
- D.N.A को काटना ( एण्डोन्युक्लियज एंजाइम द्वारा )
- जेल वैधुत कण संचालन करना |
- प्रोव का VNTRS के साथ जोड़ना।
- फिंगर प्रिन्ट
D.N.A फिगर प्रिंटिंग का महत्व
- पैतृत्व निर्धारण करना ।
- व्यक्ति को निर्दोष साबित करने मे।
- हत्या, बलात्कार जैसी घटनाओं में दोषी की पहचान करने मे।
- बाढ, भूकम्प मे मारे गए लोगों की पहचान करने मे।
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