भारत में लोन के प्रकार
आज हम भारतीय बैंकों द्वारा दिए जाने विभिन्न लोन की चर्चा करेंगे. इंसान को लोन की जरुरत तब पड़ती है जब उसकी आवश्यकता स्वयं के द्वारा कमाए हुए पैसे से पूरी नहीं हो पाती. विभिन्न बैंक जैसे SBI, PNB, HDFC, Bank of India, Axis bank etc. आपको आपके जरुरत के हिसाब से लोन मुहैया कराती है. आज हम लोन लेने के तरीके, लोन के प्रकार, लोन पर ब्याज, लोन कैसे मिलेगा, लोन क्या है, होम लोन, पर्सनल लोन, प्रॉपर्टी लोन, कार लोन इत्यादि के बारे चर्चा करेंगे.
भारत में लोन तीन प्रकार के दिए जाते हैं:–
- अल्पकालिक लोन (Short term loan): पैसे लौटाने की अवधि एक साल से कम
- मध्यकालिक लोन (Medium term loan): पैसे लौटाने की अवधि एक से तीन साल के बीच
- दीर्घकालिक लोन (Long term loan): पैसे लौटाने की अवधि तीन साल के ऊपर
पर्सनल लोन (Personal Loan)
पर्सनल लोन या गैरजमानती लोन का अर्थ हुआ स्वयं के लिए लिया हुआ लोन. वैसे तो लोन सब स्वयं के लिए ही लेते हैं मगर पर्सनल लोन का अर्थ हुआ कि अपने निजी कार्यों जैसे – बच्चे की स्कूल फीस भरनी है, दवा-चिकित्सा के लिए, किसी को महंगी गिफ्ट देनी है या घर का कोई सामान लेना है आदि. पर्सनल लोन के लिए हर बैंक की अपनी-अपनी ब्याज दर तय रहती है…जैसे अभी के डेट में पर्सनल लोन के लिए SBI 17.65% वार्षिक ब्याज दर वसूल रहा है तो बैंक ऑफ़ इंडिया 17.25%. यह भी जान लेना जरुरी है कि पर्सनल लोन (Loan) की ब्याज दर अन्य लोन (Loan) की तुलना में अधिक होती है. वैसे बैंक आपको पर्सनल लोन देते समय ज्यादा documents नहीं मांगते. वे बस आपके salary देखते हैं और लोन इशू कर देते हैं. पर्सनल लोन आपको short-term necessity के लिए ही लेना चाहिए जिसे 4 वर्ष तक लौटा देना अनिवार्य है.
गोल्ड लोन (Gold Loan)
गोल्ड लोन, बैंक में गोल्ड रखने के बदले में कैश लेने की प्रक्रिया है. आपको गोल्ड बैंक के locker में रखना पड़ता है. इस प्रकार के लोन आपको जमा किए गए गोल्ड की quality और price पर मिलते हैं. व्यवहार में यह देखा गया है कि बैंक आपको गोल्ड की कीमत के 80% तक का लोन देता है. गोल्ड लोन प्रायः लोग emergency needs को पूरा करने के लिए ही लेते हैं. इस लोन पर लिया जाने वाला ब्याज दर पर्सनल लोन की तुलना में कम होता है. अभी SBI गोल्ड लोन पर 11.15% वार्षिक ब्याज दर वसूल रहा है.
सिक्यूरिटी के बदले मिलने वाला लोन (Loan against Securities)
बैंक आपके सिक्यूरिटी पेपर को रख कर लोन देता है. मगर सवाल उठता है सिक्यूरिटी पेपर क्या होता है? यदि आपने DEMAT share, mutual funds, insurance schemes, bonds में पहले से ही invest किया है तो यही आपके security papers हैं जिसके बदले में आपको बैंक लोन देगा. इन पेपर के वैल्यू होते हैं. आप यदि लोन चुकाने में असमर्थ हैं तो बैंक आपके सिक्यूरिटी पेपर को जब्त कर लेता है और बाज़ार में बेच देता है. आप इन सिक्यूरिटी पेपर को बैंक में गिरवी रख सकते हैं. बैंक आपको आपके इन पेपर के आधार पर overdraft की सुविधा देता है. Overdraft का अर्थ हुआ कि जितना आपके अकाउंट में पैसे हैं (even if zero rupee), उससे अधिक पैसे निकालने की सुविधा. आप अपनेcurrent account से अपनी जरूरत की राशि निकाल सकते हैं. सिक्यूरिटी पेपर और बांड के बारे में आप विस्तार मेंइस आर्टिकल में पढ़ सकते हैं.
प्रॉपर्टी लोन (Property Loan)
प्रॉपर्टी लोन वह लोन है जो बैंक आपकी प्रॉपर्टी के कागजात गिरवी रख के देता है. यह अधिकतम 15 साल में चुकता किया जा सकता है. प्रायः लोन की रकम/राशि कागजात में अंकित राशि का 40-60% होती है.
होम लोन (Home Loan)
घर खरीदने के लिए जो लोन लिया जाता है वह होम लोन कहलाता है. आप सिर्फ घर बनाने के लिए लोन नहीं लेते….आप घर बनाने की कीमत, मकान का रजिस्ट्रेशन, स्टाम्प ड्यूटी आदि के व्यय को जोड़कर बैंक से लोन उठा सकते हैं. बैंक आपके खर्च की कुल राशि का 75 से 85% तक लोन दे सकती है (down-payment). शेष राशि का जुगाड़ आपको खुद करना होगा. मानिए आपने एक प्लाट के लिए लोन उठाया…जिसकी कीमत 6 लाख है तो आप बैंक को मात्र 6 लाख का 30% यानी 1 लाख 80 हज़ार दीजिए….और बाकी की रकम धीरे-धीरे घर बनने के विभिन्न स्तर तक चुकाते रहिए. चुकाने की अवधि 5 वर्ष से 20 वर्ष तक हो सकती है. ऋण की शर्तों में ब्याज के अतिरिक्त कुछ शुल्क भी शामिल होते हैं जैसे process fee, administrative charges, legal fees, assessment fees etc.
एजुकेशन लोन (Education Loan)
हर मेधावी छात्र के नसीब में नहीं होता है कि वह मनचाहे संस्थान से पढ़ाई कर पाए. कोई ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करना चाहे तो उसे पैसे की दिक्कत आ सकती है. सब अम्बानी के खानदान से नहीं होते…. फी ही इतनी होगी कि वहाँ जाकर पढ़ाई करने की सोचना खयाली पुलाव बनाने के जैसा होगा. ऐसी स्थिति में वह बैंक में education loan के लिए अप्लाई कर सकता है. बैंक एजुकेशन लोन देने से पहले उसकी रिपेमेंट सुनिश्चित करता है। देखा गया है कि लोन उन्हीं छात्रों को दिया जाता है जो इसे वापस करने की क्षमता रखते हैं। पर उनकी क्षमता की जांच कैसे होगी? या तो उनके अभिवावक के वेतन को देखा जायेगा या फिर लोन लेने वाला छात्र किस विश्वविद्यालय में जा रहा है? वहां से पढ़कर वह कमाएगा या नहीं? वहां कैंपस सिलेक्शन का रेश्यो क्या है? यह सब देखकर ही बैंक लोन अप्रूव करती है. पढ़ाई खत्म करने के बाद छात्र रिपेमेंट कर सकता है। लोन लेने के लिए गारंटर की जरूरत पड़ती है। गारंटर लोन लेने वाले का अभिभावक या फिर रिश्तेदार हो सकते हैं। अभी SBI 7.50 lac से ऊपर student loan के लिए 11.15% p.a. और 7.50 lacs के लिए 10.85% p.a. interest rate चार्ज कर रहा है.
वाहन या कार लोन (Vehicle or Car Loan)
बैंक अक्सर कार खरीदने के लिए लोन के तौर पर तरह-तरह के स्कीम प्रस्तुत करते हैं। ये लोन बाकी अन्य लोन की भाँति अलग-अलग समय के लिए fixed या floating rate पर ऑफर किए जाते हैं। आपको पता है Fixed या floating rate क्या होता है? नहीं पता तो मैं बताता हूँ…..fixed rate मतलब fixed interest rate….जब आप लोन उठा रहे होते हो…तो उस समय जो ब्याज दर लागू है.. वही दर पूरे लोन चुकाने तक लागू रहेगा. Floating rate वह रेट है जो समय आने पर बदल भी सकती है (कम या ज्यादा)….और उसी के according आपके लोन का भी इंटरेस्ट रेट कम या ज्यादा होता रहेगा. बैंक आपसे लोन देने के पहले पूछ लेती है कि आप फिक्स्ड या फ्लोटिंग रेट पर लोन लेना चाहते हैं? जब तक लोन का पूरा पेमेंट नहीं हो जाता, तब तक कार पर स्वामित्व (propriety right) लोन बैंक के पास होता है। आपको बैंक में अपनी सैलरी स्लिप (salary slip)और पिछले दो या तीन साल का इनकम टैक्स रिटर्न (income-tax return) जमा करनी पड़ेगा। इसके अतिरिक्त कोई identity proof और address proof भी जमा करना होगा। नई कारों के लिए इंटरेस्ट रेट और दूसरे चार्ज यूज्ड कार से अलग होता है.
कॉर्पोरेट लोन (Corporate Loan)
बैंक जब बड़े खिलाड़ियों जैसे लुट गए विजय माल्या, अम्बानी भाइयों, टाटा, बिरला इत्यादि को लोन मुहैया कराता है, उसे कॉर्पोरेट लोन कहते हैं. अभी के नियम के अनुसार बैंक अपनी कोर कैपिटल का 55 प्रतिशत तक किसी एक बड़ी कंपनी को लोन दे सकता है. मगर हाल में हुए defaulter (वे लोग जो लोन नहीं चुका पाते) cases में बढ़ोतरी को देखते हुए RBI ने प्रस्ताव रखा है कि 1 जनवरी, 2019 तक ऐसा नियम लागू हो जायेगा जब बैंक कॉर्पोरेट ग्रुप को अपनी कोर कैपिटल का केवल 25% ही दे सकेगी जिससे जोखिम से बचा जा सके.