क्रियायें और काल (verbs & Tenses)
जिस शब्द से कार्य का करना या होना पाया जाता है, उसे क्रिया कहते है |
- बूढा आदमी जा रहा है |
- बालक दौड़ रहा है |
- सूरज उदय हो रहा है |
- सैनिक गोली चला रहा है |
वाक्य (क) ‘जा रहा है’ क्योंकि इससे जाने का काम प्रकट हो रहा है |
वाक्य (ख) ‘दौड़ रहा है’ क्योंकि इससे दौड़ने काम प्रकट हो रहा है |
वाक्य (ग) में ‘उदय हो रहा है’ क्रिया है, क्योंकि इससे उदय होने का काम प्रकट हो रहा है |
वाक्य (घ) ‘चला रहा है’ क्रिया है क्योंकि इससे गोली चलाने का काम प्रकट हो रहा है |
घातु (Root Verb) – क्रिया के मूल रूप को धातु कहते है | जैसे – ज्ञा, पढ़, आ, गा, रो, हँस, बस, सो इत्यादि |
संज्ञार्थक क्रिया – धातु के आगे ‘ना’ लगाने से क्रिया का जो रूप बनता है उसे संज्ञार्थक क्रिया कहते है | संज्ञार्थक क्रियाएँ संज्ञा की तरह प्रयुक्त की जाती है | जैसे-
- हँसना सभी पसंद करते है | (पसंद करना क्रिया का कर्ता है )
- बच्चे रोना जानते है | (जानते है क्रिया का कर्म)
- यही रो रोना है | (है क्रिया का पूरक)
क्रिया के भेद (Kinds of verb)
क्रिया के दो भेद होते है – 1. सकर्मक क्रिया 2. अकर्मक क्रिया
- सकर्मक क्रिया – जिन क्रियाओं के साथ उनका कर्म होता है | उन्हें अकर्मक क्रिया कहते है | जैसे- कृष्ण गाय देखता है | इसमें देखना क्रिया का फल गाय (कर्म) पर पड़ता है | अत: यह अकर्मक क्रिया है |
- अकर्मक क्रिया – जिन क्रियाओं के साथ उनका कर्म नहीं होता वे अकर्मक क्रिया कहलाती है | जैसे – लडकी हंसती है | इस वाक्य में हंसती क्रिया है तथा लडकी इसका कर्ता है | हंसती है क्रिया का फल इसके कर्ता (लडकी) पर ही पड़ता है | इसका क्रम नहीं है अत: यह अकर्मक क्रिया है |
सकर्मक तथा अकर्मक क्रिया की पहचान
क्रिया पर प्रश्न किया जावे ‘क्या’ या किसको का उत्तर आ जाए तो क्रिया अकर्मक है यदि न मिले तो अकर्मक है |
सकर्मक – सुरेश पुस्तक पड़ता है – क्या पढ़ता है = पुस्तक
अकर्मक – सुषमा मुस्कुराती है | – क्या मुस्कुराती है ? —
सकर्मक व अकर्मक क्रियाओं की दूसरी पहचान यह है की जिस क्रिया के साथ क्रम हो या आ सकता हो व सकर्मक क्रिया होगी जैसे –
राधा पुस्तक पढ़ती है | यहाँ कर्म स्पष्ट है – पुस्तक
राधा पढ़ती है – यह पर कर्म नहीं है | परन्तु आ सकता है |
अकर्मक क्रिया को सकर्मक बनाने की विधि – जब अकर्मक धातु से भाव वाचक संज्ञा बनाकर उसका कर्म उसका कर्म के रूप में प्रयोग किया जाए, तब अकर्मक क्रय सकर्मक बना जाती है –
अकर्मक |
सकर्मक |
अनिल हँसता है |
गिरीश चलता है | मोहनसिंह दौड़ता है | |
अनिल तीखी हंसी करता है |
गिरीश तेज चाल चलता है | मोहनसिंह लम्बी दौड़ दौड़ता है | |
प्रेरणार्थक प्रयोग में भी अकर्मक क्रिया सकर्मक बन जाती है –
अकर्मक |
सकर्मक |
गाडी चलती है |
लता लजाती है | वृक्ष बढ़ता है |
इंजन गाडी को चलाता है |
अध्यापिका लता को लजाती है पानी वृक्ष को बढाता है | |
सकर्मक किया के भेद – सकर्मक किया के दो भेद होते है –
- प्रेरणार्थक क्रिया
- द्विकर्मक कर्मक क्रिया
प्रेरणार्थक क्रिया – जहां कर्ता स्वयं काम न करके किसी दुसरे से काम करवाता है , वहां प्रेरणार्थक क्रिया होती है –
- छात्राएं पढ़ रही है |
- अध्यापिका छात्राओं ओ पढ़ाती है |
- प्रधानाध्यापिका अध्यापिका हो पढवाती है |
वाक्य (क) में साधारण क्रिया है |
वाक्य (ख) में पहली प्रेरणार्थक क्रिया है |
वाक्य (ग) में दूसरी प्रेरणार्थक क्रिया है |
प्रेरणार्थक क्रिया के दो भेद होते है –
1. प्रथक प्रेरणार्थक
2 दितीय प्रेरणार्थक
- प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया वह क्रिया है जिसमे किसी काम को स्वयं न करके दुसरे से कराता है जिसे – वह लडकी हो हंसाती है | इस वाक्य में हंसने वाली लडकी है और ‘वह’ स्वयं न हंसकर लडकी हो हंसाती है |अत: यहाँ प्रेरणार्थक क्रिया है |
- दितीय प्रेरणार्थक क्रिया वह क्रिया है जिसमे कर्ता किसी काम को स्वयं न करके अन्य व्यक्ति से कराने की प्रेरणा डेता है | जैसे – वह लडकी को उसके भाई से हंसवाता है |
इस वाक्य में हंसने वाली लडकी है जिसकों ‘वह’ स्वयं न हंसाकर उसके भाई से हंसवाता है | अत: यहाँ प्रेरणार्थक क्रिया है |
प्रेरणार्थक क्रियाओं के रूप
क्रिया |
प्रथम प्रेरणार्थक |
दितीय प्रेरणार्थक |
खाना | खिलाना | खिलवाना |
पीना | पिलाना | पिलवाना |
कूदना | कुदाना | कुदवाना |
बैठना | बिठाना | बिठवाना |
रोना | रुलाना | रुलवाना |
सीना | सिलाना | सिलवाना |
2 द्विकर्मक क्रियाएँ वे क्रियाएँ है जिनमे दो कर्म हो | – जैसे- गुरु शिष्य हो पाठ पढाता है |
द्विकर्मक क्रियाओं का एक कर्म प्रधान या मुख्य होता है | और दूसरा गौण | इस वाक्य में पाठ मुख्य कर्म है तथा शिष्य गौण कर्म है |
सकर्मक व अकर्मक क्रियाओं के उपभेद
इन क्रियाओं के चार उपभेद है –
- अपूर्ण क्रिया
- संयुक्त क्रिया
- नामधातु क्रिया
- पूर्वकालिक क्रिया
अपूर्ण क्रिया – कुछ क्रियाएँ बिना अन्य शब्दों के पूरा अर्थ प्रकट नहीं कर सकती है | एसी क्रियाओं को अपूर्ण क्रिया कहते है | जैसे – वह है |
इस वाक्य में ‘है’ क्रिया पुरे अर्थ को प्रकट नहीं करती है | इसमें ‘है’ के पहले बुद्दिमान, मुर्ख, विद्वान आदि कोई पूरक शब्द लगाना आवश्यक है |तभी क्रिया का अर्थ पूर्ण होगा –
जैसे- वह मुर्ख है | वह विद्वान है | वह बुद्दिमान है |
संयुक्त क्रिया – जहाँ क्रिया में दो या दो से अधिक धातु मिले हुए हो तो वह संयुक्त क्रियाएँ बना ली जाती है | जैसे –
- वर्षा होने लगी |
- वह खा चूका था |
- में जा सकता हु |
- भाई को पढने दो |
- बालक खेला करता है |
नाम धातु क्रिया – यह क्रिया विशेषत: मूल धातु से बनती है परन्तु कभी-कभी संज्ञा आदि शब्दों से भी क्रियाएँ बना ली जाती है |
जैसे –
संज्ञा |
क्रिया |
प्रयोग |
लाज | लजाना | तुम्हारे काम मुझे लजाते है | |
लात | लतियाना | सिपाही चोर को लतियाता है | |
उद्दार | उद्दारना | गंगा पापियों को उद्दारती है | |
दुःख | दुखना | मेरा पाँव दुखता है | |
पूर्वकालिक क्रिया – किसी पूर्ण क्रिया के पहले आनेवाली अन्य क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते है | जैसे – पढ़कर खेलने जाओ |
खेल+कर – खेलकर
काल :- क्रिया का वह रूप जिसमे उसके होने या करने का समय जाना जाए काल कहलाता है | इसके तीन भेद है –
- भूतकाल
- वर्तमान काल
- भविष्यत काल
भूतकाल – बहुत काल क्रिया का वह रूप है जिससे बीते समय में क्रिया के होने या करने का बोध पाया जाए जैसे – राम ने रावण को मारा था |
वर्तमान काल – वर्तमान काल क्रिया का क्रिया का वह रूप है जिससे वर्तमान काल समय में क्रिया का होना या करना पाया जाए जैसे – गीता गाना गाती है |
भविष्यत काल – भविष्यत काल क्रिया का वह रूप है जिससे भविष्यत (आनेवाले) समय में क्रिया के होने या करने का बोध पाया जाता है |
जैसे – वह कल बम्बई जाएगा |
भूतकाल
भूतकाल के छ: भेद होते है –
- सामान्य भूत
- आसन्न भूत
- पूर्ण भूत
- अपूर्ण भूत
- सदिग्ध भूत
- हेतुमेतुमद भूत
सामान्य भूत – इसमें साधारण रूप से क्रिया के हो चुकने का ज्ञान होता है | यह नहीं जाना जा सकता की क्रिया को समाप्त हुए थोड़ी देर हुई है या अधिक | जैसे – मोहन ने पुस्तक पढ़ी |
आसन्न भूत – इस काल से यह ज्ञात होता है की कार्य निकट भूत में , अभी-अभी पूरा हुआ है | जैसे – मोहन ने पुस्तक पढ़ ली है |
उसने भोजन कर लिया है
पूर्ण भूत – इस काल से यह ज्ञात होता है की कार्य को समाप्त हुए बहुत अधिक समय व्यतीत हो चूका है | इसमें कार्य किसी निश्चित अवधि से पूर्व समाप्त हो जाता है | जैसे – मोहन पुस्तक पढ़ चूका है |
अपूर्ण भूत – इस काल से यह ज्ञात होता है की कार्य भूतकाल में आरम्भ किया गया था परन्तु उसकी पूर्ति नहीं हुई थी | जैसे – मोहन पुस्तक पढ़ रहा था |
संदिग्ध भूत – जिससे कार्य के भूत काल में होने का संदेह हो | जैसे- मोहन पुस्तक पढ़ रहा था |
हेतुमेतुमद भूत – यह क्रिया का वह रूप है जिसमे भूत काल में होने वाली क्रिया का होना किसी दूसरी क्रिया के होने पर निर्भर हो | अर्थात इससे यह जाना जाता है की कार्य भूत काल में हो सकता था परन्तु किसी अन्य कार्य के न हो सकने के कारण न हो सका | जैसे- मोहन पढ़ा लिखा होता तो पुस्तक पढ़ लेता | यदि डाक्टर आ जाता तो रोगी न मरता | यदि वर्षा हो जाती तो अकाल न पड़ता |
वर्तमान काल
वर्तमान काल के तीन भेद है –
- सामान्य वर्तमान
- अपूर्ण वर्तमान
- संधिग्ध वर्तमान
सामान्य वर्तमान – इसमें साधारण रूप से वर्तमान काल में कार्य का होना पाया जाता है | जैसे – मोहन पुस्तक पड़ता है |
अपूर्ण वर्तमान- इससे ज्ञात होता है की कार्य वर्तमान काल में जारी (चालु) है | जैसे- मोहन पुस्तक पढ़ रहा है |
संदिग्ध वर्तमान – इससे कार्य के वर्तमान काल में होने में संदेह होता है | जैसे – मोहन पुस्तक पढ़ता होगा |
भविष्यत काल
भविष्यत काल के दो भेद है –
सामान्य भविष्य
संभाव्य भविष्यत
सामान्य भविष्यत – जहां साधारण रूप से भविष्यत काल में कार्य का होना पाया जाता है | जैसे – मोहन पुस्तक पढ़ेगा | कल वर्षा होगी |
सम्भाव्य भविष्यत – जिसमे भविष्यत काल में कार्य होने में संदेह, सम्भावना या इच्छा प्रकट हो | जैसे – सम्भव है आज वर्षा हो | आज वह आ सकता है |
क्रियायें और काल (verbs & Tenses)