राजस्थान के प्रमुख सिक्के

    • पुरातात्विक द्रष्टि से भारत के प्राचीनतम सिक्को को पंचमार्क , आहत अथवा चिन्हित सिक्के कहा जाता है |
    • 1835 ई. में जेम्स प्रिसेप ने निर्माण सैली के आधार पर इस सीक्को को पंचमार्क सिंक्के कहा
    • पंचमार्क सिक्को का समीकरण साहित्य में उल्लेखित कार्षापण के साथ किया गया है |
    • पंचमार्क सिक्को के लिए मुख्तय: चांदी तथा अंशत: तांबे का प्रयोग होता था | अभी तक स्वर्ण निर्मित पंचमार्क सिक्के प्राप्त नहीं हुए है |
    • पंचमार्क सिक्को पर उत्कीर्ण प्रमुख चित्र पेड़ , मछली , हाथी , अर्द्धचन्द्र , वृषभ इत्यादि है |
    • राजस्थान में पंचमार्क सिक्के बैराठ ( जयपुर ) रैड ( टोंक ) , गुरारा ( सीकर ) , नगरी ( चित्तौडगड ) , नोह ( भरतपुर ) , संभार , इस्माइलपुर , जसंद्पुरा ( जयपुर ) इत्यादि स्थानों पर पाए जाते है |
    • नोह ( भरतपुर ) एवं रैड ( टोंक ) से जो पंचमार्क सिक्के मिले है वे ताम्र के बने है |
    • सीकर जिले के गुरारा  से लगभग दो हजार सात सौ चौवालिस ( 2744 ) पंचमार्क सिक्के मिले है | इनमे से लगभग इकसठ ( 61 ) सिक्को पर तीन मानव आकृतिया मिली है | जिसमे से दो पुरुष व एक महिला की है |
    • वैदिक साहित्य में उल्लेखित सिक्के निष्क , शतमान , हिरण्यपिण्ड है लेकिन पुरात्विक अवशेषों में वैदिककालीन सिक्के प्राप्त नहीं हुए है
    • मौर्याकाल में बने सिक्को को एकरूपता मिलती है | इस काल के सिक्को पर मुख्य रूप से तीन चिन्ह मयूर चन्द्र एवं मेरु पर्वत मिले है |
    • भारत लेख वाले सिक्को हिन्द-यवन शासको द्वारा चलाये गये थे | इन्होने भारत में केवल चांदी के सिक्के चलाये थे |
    • भारत के सोने के सिक्के सर्वप्रथम मिनेन्डर की यूनानी पत्नी ऐगेथोएस्लिमा द्वारा चलाये गये थे |
    • भारत में स्वर्ण सिक्को की सुनियोजित श्रंखला को प्रारम्भ करने का श्रेय कुषाण शासक विमकदफिमस को है |




    • कुषाण शासक कनिष्क भारतीय इतिहास का एकमात्र शासक था जिसके सिक्को पर बुद्ध का नाम और चित्र उत्कीर्ण है |
    • गुप्त शासको में सर्वप्रथम सोने के सिक्के चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा चलाये गये थे | चन्द्रगुप्त के सिक्के राजा-रानी प्रकार के सिक्के कहलाते थे |
    • गुप्त शासको ने सर्वप्रथम तांबे के सिक्के रामगुप्त ने चलाये |
    • गुप्त शासको में छ: प्रकार के स्वर्ण सिक्के समुद्रगुप्त ने चलाए थे |
    • गुप्त शासको में सर्वप्रथम चांदी के सिक्के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने चलाए थे |
    • गुप्त शासको में सर्वाधिक प्रकार के सिक्के कुमारगुप्त ने चलाए थे |
    • भारतीय देवता जिनका अंकन किया गया है वे है – शिव , स्कन्द , विषाक बुद्ध |
    • आहड़ के सिक्के – आहड़ के उत्खनन में 6 तांबे के सिक्के मिले है  जिनमे एक चौकोर तथा पांच गोल है | एक सिक्के पर त्रिशूल का अंकन है | आहड़ के उत्खनन में कुछ हिन्द-यवन मुदाए भी प्राप्त हुई है |मुद्रा नं. 2353 (अ) के एक तरफ हाथ में तीर लिए ‘अपोलो’ तथा दूसरी ओर महाराज  त्रृतर्ष उत्कीर्ण है | आहड़ से उत्खनन से ‘सीले’ प्राप्त हुई है | 1834 नम्बर सील पर विहरम विस 1932 नम्बर सील पर पालितस अंकित है | 1932 नम्बर की सील पर त , ती , यु , तू इत्यादि वर्ण अंकित है |
    • रैढ ( टोंक ) के सिक्के –  टोंक जिले में स्थित रैड की सभ्यता से लगभग 3075 चांदी के पंचमार्क सिक्के मिले है जो एक ही स्थान पर से मिले सिक्के की सबसे बड़ी संख्या है | इन सिक्को को धरण अथवा पण कहा जाता था | इन सिक्को का तौल 32 रत्ती अथवा 57 ग्रेन अथवा 33/4 ग्राम है जो लगभग सभी सिक्को का समान है
    • रैड के सिक्को पर सूर्य , तीर , मछली , घंटा तथा पौधा या पशु आदि अंकित है | इन सिक्को का समय छटी शताब्दी ई. पूर्व से द्वितीय शताब्दी ई. पूर्व का अनुमान किया गया है | रैड से प्राप्त तांबे के सिक्के जिन्हें गण मुदाए इत्यादि वर्ग के है |
    • सेनापति मुद्रए – रैड से प्राप्त छ: मुद्राए जिनमे से पांच चौकोर व एक गोल है तथा जो तृतीय शताब्दी ई. पूर्व से द्वितीय शताब्दी ई. पूर्व की है | इन मुद्राओ पर वच्छघोष का अंकन है |
    • मालवगण के सिक्के – रैड तथा पूर्वी राजस्थान से हजारो की संख्या में प्राप्त ये सिक्के द्वितीय शताब्दी तक के सिक्के है | इन सिक्को पर मालवाना जय एवं माव्य , मजुप , भापजेय , मजजश इत्यदि सेनापतियों के नाम अंकित है |
    • राजन्य सिक्के – ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के आसपास के ये सिक्के पूर्वी राजस्थान के क्षेत्रों में मिले है | सिक्को के अग्र भाग पर नंदी की आकृति मिलती है तथा अग्रभाग की मनुष्य  की मूर्ति पर राजन्य जनस्यपद उत्कीर्ण है |
    • यौधेय सिक्के – राजस्थान के उत्तर एवं पश्चमी भाग के  क्षेत्रों में मिले   है | इन सिक्को पर ब्राही लिपि में योधेयाना बहुधाना उत्कीर्ण है | प्रारम्भ के सिक्को पर षडानन की मूर्ति कमल पर खडी चित्रांकित है तो    बाद के सिक्को पर  कार्तिकेय एवं सूर्य मूर्ति अंकित है |
    • नगर मुद्राए – टोंक जिले में उनीयारा के निकट नगर अथवा कर्कोट नगर से लगभग छ: हजार तांबे के सिक्के प्राप्त हुए |ये सिक्के भार में हल्के व आकार में छोटे होते है | इन पर ब्राही लिपि से लगभग 40 मालव सरदारों के नाम उत्कीर्ण है |
    • रंगमहल सभ्यता के सिक्के – हनुमान गड जिले में स्थित इस सभ्यता के उत्खनन में लगभग 105 सिक्के मिले है | पुरातात्विक श्री बीवर के अनुसार कुछ कुषाणकालीन सिक्के है | उन्हें मुरनडा कहा गया | यहा से कनिष्क प्रथम का सिक्का भी मिला है | इस पर यूनान भाषा में ओडो-वायु उत्कीर्ण मिला है | तथा एक अन्य सिक्के पर नानाइया उत्कर्ण है |
    • बैराठ सभ्यता के सिक्के – जयपुर जिले में स्थित बैराठ की सभ्यता से कुल 36 मुद्राए प्राप्त हुई है जो एक मिट्टी मुद्रभाण्ड में कपड़े से लिपटी हुई थी | इनमे से 84 मुद्राए ‘पंचमार्क’ तथा 28 इंडो-ग्रीक शासको की है | इन यूनानी मुद्राओं में सर्वाधिक 16 मुद्राए प्रसिद्ध यूनानी शासक मिनेन्दर की है |



    • सांभर के सिक्के – जयपुर जिले के सांभर से लगभग 200मुद्राए प्राप्त हुई है जिनमे से 6 मुद्राए चांदी की पंचमार्क है | 6 मुद्राए तांबे की है | इंडो- सेसनियन भी प्राप्त हुई है | यह से इन्डो-ग्रीक एन्टिकोजनिकेफोरस की एक चांदी की मुद्रा भी प्राप्त हुई है | यहा से ब्राही लिपि में बबूधना एवं गज शब्द उत्कीर्ण है |
    • गुप्तकालीन सिक्के – राजस्थान से गुप्तकालीन सर्वाधिक सिक्के भरतपुर के बयाना के पास नगलाछेला ग्राम से मिले है जिनकी संख्या लगभग 1800 है | इन सिक्को में सर्वाधिक सिक्के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के है | ये सिक्के तत्कालीन शिल्पकला के उत्कृष्ट उदारण है |
    • टोंक  जिले के रैड से भी गुप्तकालीन सिक्के की छ: मुद्राए मिली है |
    • गुप्त शासको के सिक्के अजमेर जिले के अहेडा से भी भूमिगत खजाने के रूप में मिले है |
    • गुर्जर प्रतिहार के सिक्के – राजस्थान के मारवाड क्षेत्र मर इन   सिक्को की प्राप्ति हुई जिनपर यज्ञवेदी एवं रक्षक चिन्हों की प्रधानता है | ये सेसेनियन शैली से प्रभावित है | ‘आदि वराह’ शैली के इन सिक्को पर नागरी में ‘श्री मदादिवराह’ उत्कीर्ण है |
    • चौहान शासको के सिक्के – द्रम्म , विशोपक ,  रूपक , दीनार इत्यादि नामो से उल्लेखितचौहानों के सिक्के  अजमेर , सांभर , जालौर , नाडोल इत्यादि स्थानों से अधिकतर   चांदी एवं तांबे के सिक्के मिले है | चौहानों के सिक्को के आग्रभाग पर अश्वारोही एवं  वृषभ के चित्र एवं पृष्ठ भाग पर राजाओ के नाम  उत्कीर्ण है | वर्तमान में   ये सिक्के अजमेर संग्रहालय एवं  कोलकाता संग्रहालय में संग्रहित है |
    • अजयराज की रानी सोन्म्लेखा  द्वारा चांदी के सिक्के सोमेश्वर के द्वारा वृषभशैली एवं अश्वारोही शैली की मुद्राओ का प्रचलन किया गया |
    • पृथ्वीराज चौहान तृतीय की मृत्यु के बाद मोहम्मद गौरी ने भी चौहान ने भी चौहानों के अनुरूप ही सिक्के चलाए थे |
    • मेवाड़ के सिक्के – मेवाड़ रियासत में चलन वाले चांदी के सिक्के द्रम्म , रूपक , तांबे के सिक्के कर्षापण कहलाते है |   इतिहासकार वेब के अनुसार प्रारम्भ में ये ‘इंडो-सेसनियम’ शैली के   बने थे |
    • शिवि जनपद की राजधानी नगरी ( मध्यमिका ) से चाँदी-ताँबे की मुद्रा मिली है जो आधुनिक ‘ढीगला’ के ही रूप है |
    • मेवाड़ क्षेत्रों से हूणों द्वारा प्रचलित चांदी व तांबे की गधिया मुद्रा भी प्राप्त हुई है
    • मेवाड़ में गुहिल शासक के सिक्को जो लगभग 2000 है | तथा चांदी के बने हुए है आगरा के संग्रह से प्राप्त हुए है |
    • महाराजा कुंभा द्वारा चलाये गए चौकोर एवं गोल चांदी के सिक्के मिले है |
    • महाराजा संग्राम सिंह द्वारा चलाये गए तांबे के सिक्के पर स्वस्तिक तथा त्रिशूल अंकित मिले है |
    • मुगल संपर्क के पश्चात मेवाड़ में सिक्का एलची ‘चित्तौडी ‘ ‘ भीलाडी और उदयपुरी रुपया प्रचलन में आया
    • महाराजा रूपसिंह ने स्वरूपशाही सिक्के चलाए जिसके एक और चित्रकूट उदयपुर तथा दूसरी और दोस्तीलंघना अंकित था |




    •  महाराणा रूपसिंग के काल में ही चांदौड़ी नामक स्वरण मुद्रा का भी प्रचलन था |
    • शाहआलमी प्रकार का रुपया भी चित्तौडगड में प्रचलन में था जो चाँदी का था |
    • महाराणा भीमसिंह ने अपनी बहन चन्द्रकंवर की स्मृति में चाँदौड़ी रुपया चलाया , अठन्नी , चवन्नी इत्यादि सिक्के चलाए
    • मेवाड़ में चलने वाले तांबे के सिक्के ढिंगाल , भिलाडी त्रिशुलिया , नाथद्वार , भीडरिया इत्यादि नामो से प्रसिद्ध थे |
    • मेवाड़ रियासत के सलुम्बर ठिकाने की तांबे की मुद्रा को पदमशाही कहते है |
    • शाहपुरा में चलने वाली मुद्राए जो सोने-चाँदी की होती थी  उन्हें ‘ग्यारसंद्र ‘ तथा ताँबे की मुद्राओं को माधोशाही खा  जाता है |
    • मारवाड़ ( जोधपुर ) रियासत के सिक्के – 
    • मारवाड़ रियासत के सिक्के प्राचीन सिक्को को पंचमार्कंड कहा जाता था |
    •  मारवाड़ रियासत में भी सेसेनियन सिक्के प्रचलन में आए जो कालांतर में गधिया मुद्रा कहलाई गई | 
    • प्रतिहार राजा भोजदेव ( आदिवराह ) के द्वारा चलाए गये सिक्को पर श्री महादिवराहदेव उत्कीर्ण मिलता है |
    • मारवाड़ में गढ़वालो की शैली के सिक्को का प्रचलन भी रहा जिन्हें गजशाही सिक्के कहा गया है |
    • कर्नल जेम्स टाँड के अनुसार लगभग 1720 ई. में महाराजा अजित सिंह ने अपने नाम के सिक्के चलाए थे |
    • मारवाड़ में 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में महाराजा विजय सिंह द्वारा चलाए गये विजयशाही सिक्को का प्रचलन रहा जिनपर मुगल बादशाहों के नाम रहते थे | 1858 के पश्चात महारानी विक्टोरिया का नाम अंकित होने लगा था |
    • सोजत में लल्लुलिया रुपया चलता था |
    • मारवाड़ के सिक्को के लिए जोधपुर , नागौर , पाली तथा सोजत में टकसाले थी | इन टकसालो के अपने विशेष चिन्ह होते थे
    • जोधपुर टकसाल में बनने वाले सोने के सिक्को को मोहर कहते थे
    • सोजत की टकसाल से बनने वाले सिक्को पर श्री ,माताजी एवं श्री महादेव शब्द भी उत्कीर्ण होने लगा था |
    • मारवाड़ में लल्लुलिया , लाल्लुशाही , रुरुरिया रुपया ढब्बूशाही एवं भीमशाही प्रकार के सिक्के भी प्रचलित थे | ढब्बूशाही एवं भीमशाही ताँबे के सिक्के थे
    • आमेर ( जयपुर ) रियासत के सिक्के – 
    • कछवाह वंश के शासन की स्थापना से पहले यहा यौधेय , गुप्त , सेसेनियम , गधिया इत्यादि मुद्राए चलती थी लेकिन आमेर के कछवाह शासको ने अकबर से संबंध स्थापित कर अपनी तकसाले स्थापित की थी |
    • आमेर रियासत आमेर , जयपुर , माधोपुर , रूपवास , सूरजगड एवं खेतड़ी केचरन में स्थित थी
    • आमेर रियासत की मुद्रा पर छ: टहनियो की झाड का चित्र होने के कारण झाडशाही सिक्का कहा जाता था |
    • महाराजा रामसिंह एवं महाराजा माधोसिंह के द्वारा स्वर्ण मुद्राओ का प्रचलन भी ज्ञात होता है |
    • महाराजा जगत सिंह द्वारा अपनी प्रियसी रसकपूर के नाम पर भी सिक्के चलाए गये थे  एसा कर्नल जेम्स टाँड के विवरणों के ज्ञात होता है |
    • महाराजा माधोसिंह द्वारा चलाए गये रूपये को हाली सिक्का भी कहा जाता था |
    • झाडशाही के सिक्के जो ताँबे के होते थे | उनमे झाड के साथ मछली का चित्र मिलता था |
    • अन्य तथ्य –
    • डूंगरपुर रियासत में कर्नल निक्कसन के अनुसार चाँदी का त्रिशुलिया तथा पत्रिसीरिया सिक्के चलते थे | लेकिन इनके साक्ष्य नहीं मिले है |




  • प्रतापगड रियासत में सामान्यत: मांडू एवं गुजरात के सिक्को का प्रचलन था
  • प्रतापगड के महारावल सालिम सिंह ने सलीमशाही सिक्के लगभग 1784 ई. में चलाए थे
  • प्रताप गड रियासत में कुछ ताँबे के सिक्के भी प्रचलन में रहे  जिन पर श्री उत्कीर्ण रहता था
  • बांसवाडा रियासत में महारावल लक्ष्मण सिंह ने लगभग 1870 ई. में लक्ष्मणशाही सिक्के चलाए थे |
  • बीकानेर रियासत के शासको ने शाहआलम शैली के सिक्को पर स्वयं चिन्ह भी उत्कीर्ण करवाए | जिनमे गज सिंह ने ध्वज सूरत सिंह ने त्रिशूल रतन सिंह ने नक्षत्र सरदार सिंह ने हज डूंगरसिंह ने चंवर  तथा गजसिंह ने मोरछत्र के चिन्ह अंकित कराए |
  • बूंदी रियासत में पुराना रुपया ग्यारह सना , रामशाही रुपया , कटार शाही , चहरे शाही इत्यादि सिक्के प्रचलन में रहे
  • कोटा रियासत में प्रचलित सिक्को के अतिरिक्त मदनशाही सिक्के भी प्रचलित थे |
  • जैसलमेर में चांदी का मुम्मह्दशाही अखयशाही तथा तांबे का सिक्का डोडिया प्रचलन में रहा |
  • अलवर रियाशत में रावशाही सिक्के चाँदी के तथा रावशाही रक्का तांबे के सिक्के प्रचलन में थे
  • धोलपुर रियाशत में तमचाशाही सिक्के प्रचलन में थे |
  • शाहपुरा रियाशत ग्यार संदिया सिक्के प्रचलन में थे |




Chief coins of Rajasthan

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