आधुनिक भारतीय शिक्षा का विकास, Development of Modern Indian Education: Related Committees and Commissions

क्या आपको लार्ड मैकोले (Lord Macaulay-wiki) के बारे में मालूम है?
नहीं मालूम तो मैं बताता हूँ…यह अँगरेज़ इतना घमंडी था कि इसने भारतीय वेदों, उपवेदों आदि की गरिमा का मजाक उड़ाया. उसने कहा कि Indian literature यूरोप के एक लाईब्रेरी के एक shelf में रखी पुस्तकों के बराबर भी नहीं है.


अँगरेज़ भारतीय भूभाग में अपना आधिपत्य दिखाने के बाद भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में सीधा हस्तक्षेप करने के फ़िराक में थे. पर भारतीयों का एक वर्ग ईसाई पादरियों की गतिविधियों को मित्रता की दृष्टि से नहीं देखता था. इसीलिए अंग्रेजों ने अपनी इस योजना को आगे बढ़ाने की धीमी गति से शुरुआत की और 1781 में “कलकत्ता मदरसा” आरम्भ किया और 1791 में “बनारस संस्कृत कॉलेज” की स्थापना की गयी ताकि प्रभावशाली हिन्दू तथा मुस्लिमं नेताओं को संतुष्ट किया जा सके.
1813 में चार्टर एक्ट के शैक्षिक नियम लागू कर कर के अंग्रेजों ने भारत में प्राच्य शिक्षावादी नीति लाने का प्रयास किया.
सरकार के विधि सदस्य “लॉर्ड मैकोले” ने प्राच्यवादी देशी शिक्षा के बजाय पाश्चात्यवादी अंग्रेजी शिक्षा का अपने प्रसिद्ध दस्तावेज में पुरजोर समर्थन किया. मैकोले के अनुसार शिक्षा का आवश्यक उद्देश्य एक ऐसे वर्ग को तैयार करना था जिसे औपनिवेशक सरकार में निचले दर्जे की नौकरियों पर रखा जा सके ताकि यहाँ के लोगों पर शासन करने में आसानी हो.
लॉर्ड मैकोले की सलाह पर तत्कालीन गवर्नर जनरल “लॉर्ड विलियम (Lord William)” ने 1837 में अंग्रेजी को “सरकारी भाषा” का दर्जा दिया. अब सरकारी नौकरियों के लिए अंग्रेजी भाषा अनिवार्य हो गयी.

वुड्ज डिस्पैच 1854-Wood Despatch of 1854

१. माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा शुरू कर के प्रचलित शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने पर बल दिया गया  जिससे next generation के बच्चे व्यावसायिक जीवन के लिए तैयार हो पाये.
२. 1857 में भारतीय प्रदेश सीधे ब्रिटिश सरकार के अधीन हो गया और इसी समय कलकत्ता, मद्रास और बम्बई विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी.

हंटर कमीशन 1882- Hunter Education Commission

१. इसकी स्थापना लॉर्ड रिपन (1880-1884 ई.) के द्वारा 1882 में की गयी.
२. व्यावसायिक और व्यापारिक शिक्षा पर बल दिया गया.
३. हाईस्कूल (High School) में प्रतिवर्ष दो वैकल्पिक परीक्षाओं का आयोजन किया जाने लगा.
४. सरकार ने शिक्षा के प्रबंध के लिए उद्द्यमियों से अनुदान राशि लेने का नियम बनाया.
५. निजी प्रबंध समितियों की मदद से कई निजी कॉलेज और स्कूल खुले.




६. 1896 में “अखिल भारतीय शिक्षा सेवा” का आरम्भ किया गया जिसमें इंग्लैंड में आयोजित की जाने वाली परीक्षा के माध्यम से ही नियुक्ति होती थी, यद्यपि यह परीक्षा भारतीयों के लिए भी खुली हुई थी मगर अधिकांश भारतीय इंग्लैंड जा कर परीक्षा देने में असमर्थ थे.
७. आयोग ने सरकार को महिला शिक्षा (Women Education) पर जोर देने को कहा.

हार्टोग कमेटी 1929- The Hartog Committee Report

१.  Hartog Committee एक ऐसी committee थी जिसका गठन साईमन कमीशन ने 1929 में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हेतु सुझाव देने के लिए किया था.
२. इसका अध्यक्ष Hartog था.
३. अधिकांश विद्यार्थी जो पहली कक्षा में प्रवेश लेते थे, चौथवीं-पाँचवी कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते थे. अतः committee ने इस अपव्यय को रोकने के लिए सरकार को कुछ सुझाव दिए.
४. माध्यमिक शिक्षा में औद्योगिक और वाणिज्यिक विषयों पर जोर दिया गया.
५. तकनीकी, वाणिज्य और कृषि हाईस्कूल स्थापित किये गए.

सार्जेंट प्लान 1944- Sargent Scheme/Plan/Commission

वर्ष 1935 में “भारत-सरकार अधिनियम-1935” के द्वारा प्रांतीय सरकारों को स्वायत्तता दे दी गयी. इस समय उच्च शिक्षा का बहुत हद तक विस्तार हुआ मगर माध्यमिक शिक्षा अब भी धीमी थी. “Sargent Plan” की सिफारिश(recommendations) थी—
१. हाईस्कूल को पुनर्गठित किया जाए. इसे दो प्रकार से बाँटा जाए— a) पहले में कलाओं और मूल विज्ञानों की शिक्षा दी जाए b) दूसरे प्रकार के तकनीकी हाईस्कूल में विज्ञान के साथ-साथ औद्योगिक और वाणिज्यिक विषय पढ़ाये जाएँ.
२. ग्रामीण पाठ्यचर्या में कृषि पर बल देना होगा
३. बालिका शिक्षा के क्षेत्र में एक वैकल्पिक विषय जोड़ा जाए –“गृह विज्ञान”

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग [राधाकृष्णन आयोग] 1948-49- ‘Radhakrishnan Commission’

१. इसे उच्च शिक्षा के संदर्भ में गठित किया गया था.
२. इसने शारीरिक प्रशिक्षण एवं अन्य सामूहिक क्रियाओं पर भी बल दिया.
३. आयोग ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि माध्यमिक स्तर पर ही सामान्य शिक्षा के अलावा भौतिक वातावरण से पूर्ण परिचय के अतिरिक्त भौतिक तथा शारीरिक विज्ञान के मूल सिद्धांत की जानकारी दी जाये और संचार साधन के रूप में भाषा को स्पष्ट और प्रभावी रूप से प्रयोग किया जाए.
४. स्नातक पाठ्यक्रम की अवधि तीन वर्ष होनी चाहिए यह इसी आयोग का सुझाव था.

मुदालियर आयोग [माध्यमिक शिक्षा आयोग] 1952-53 Mudaliar Commission Recommendations

१. माध्यमिक शिक्षा के ढाँचे में सुधार के लिए डॉ. लक्ष्मण स्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में सन् 1952 में “माध्यमिक शिक्षा आयोग” की स्थापना की गयी.
२. पाठ्यचर्चा में विविधता लाने, एक मध्यवर्ती स्तर जोड़ने, त्रिस्तरीय स्नातक पाठ्यक्रम शुरू करने इत्यादि की सिफारिश की.
३. वस्तुनिष्ठ (MCQ) परीक्षण-पद्धति को अपनाया जाए.
४. संख्यात्मक अंक देने के बजाय सांकेतिक अंक दिया जाए.
५. उच्च तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा के पाठ्यक्रम में एक core subject रहे जो अनिवार्य रहे जैसे—गणित, सामान्य ज्ञान, कला, संगीत etc.




कोठारी आयोग [राष्ट्रीय शिक्षा आयोग] 1964-66 Kothari Commission Recommendations

१. इसकी अध्यक्षता प्रो. दौलत सिंह कोठारी ने की.
२. इस आयोग के मूल में तीसरी पंचवर्षीय (Third Five-year Plan) योजना रही, जिसने बहुत स्पष्ट शब्दों में देश की शिक्षा पद्धति के पुनर्विचार की बात पर बल दिया है.
३. यह आयोग पहला ऐसा आयोग था जिसने विस्तार से भारतीय-शिक्षा पद्धति का अध्ययन किया. इसके परिणामस्वरूप ही वर्ष 1968 में “राष्ट्रीय शिक्षा-नीति” अस्तित्व में आ सकी.
४. लगभग सभी education related aspects की तरफ ध्यान खीचा गया, जैसे नारी-शिक्षा (woman education), शिक्षा में होने वाली वित्तीय समस्याओं पर विचार, शिक्षा के प्रति जागरूकता आदि.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968- National Policy on Education

काठोरी आयोग (शिक्षा आयोग) की सिफारिशों के सम्बन्ध में लोकसभा में व्यापक चर्चा हुई. कालांतर में वर्ष 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने स्वीकृति दे दी. राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्रमुख बातें:–
१. सामान्य रूप से देश के सभी भागों में शिक्षा का समान ढाँचा अपनाना लाभप्रद होगा जो कि 10+2+3 पर आधारित होगा.
२. शिक्षा (Education) में निवेश को धीरे-धीरे बढ़ाया जाना चाहिए.
३. कमजोर वर्ग के छात्रों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने के लिए छात्रवृत्ति योजनायें बढ़ायी जाएँ.
४. विद्यालयी शिक्षा में विज्ञान, तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाए.

शिक्षा कार्यदल 1985- Working group 1985

१. इसके अध्यक्ष प्रो.कुलदैस्वामी थे.
२. इसका उद्द्येश्य व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना था.
३. कृषि पाठ्यक्रम, व्यवसाय और वाणिज्य पाठ्यक्रम, इंजीनियरिंग तथा प्रौद्योगिक पाठ्यक्रम आदि के लिए सिफारिशें प्रस्तुत कीं.

राष्ट्रीय शिक्षा-नीति 1986- National Policy on Education

1980 का दशक भारत में राजनीतिक रूप से उथल-पुथल का दौर तो रहा ही, सामाजिक आर्थिक-वैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षेत्र में भी देश को नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ा.  शिक्षा के पुनरीक्षण तथा पुनर्निर्धारण की आवश्यकता महसूस की जाने लगी. इस सन्दर्भ में “शिक्षा की चुनौती-नीतिगत परिप्रेक्ष्य- Challenges in Education-Policy Perspective” नाम से एक वस्तुस्थिति प्रपत्र भारत सरकार द्वारा बनाया गया.  1986 में यह “राष्ट्रीय-शिक्षा-नीति” National Educational Policy के रूप में परिणत हुआ जिसकी प्रमुख विशेषताएँ (features) थीं…..
१. २१वीँ सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप बच्चों में आवश्यक कौशलों तथा योग्यताओं का विकास करना.
२. एक गतिहीन समाज को ऐसा स्पन्दनशील समाज बनाना जो प्रतिबद्ध हो, विकासशील हो तथा परिवर्तनशील हो.
३. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार ही सारे देश में शिक्षा का समान ढाँचा लागू हो, जो 10+2+3 पर आधारित हो. इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था में एक जैसी केन्द्रिक पाठ्यक्रम पर बल दिया जाए.

आचार्य राममूर्ति समिति 1990 Acharya Ramamurti Committee

वर्ष 1989 में केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार ने सत्ता में आते ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में संसोधन की कवायद शुरू कर दी.
१. इसके अध्यक्ष राममूर्ति थे.
२. शिक्षा को सामाजिक आर्थिक, क्षेत्रीय और लिंगभेद के कारण पैदा विषमताओं के व्यापक संदर्भ में देखा जाए ताकि समानता तथा सामाजिक न्याय की सम्प्राप्ति हो सके.
३. शिक्षा में मौड्यूल और सेमेस्टर पद्धति (Semester System) अपनायी जाए.
४. Skill Development पर जोर.

यशपाल समिति 1992 Yashpal Committee Report

१. इसके अध्यक्ष यशपाल थे.
२. वर्ष 1992 में शिक्षा-प्रणाली में सुधार, प्राथमिक शिक्षा को अधिक सुरुचिपूर्ण तथा गुणवत्तापूर्ण बनाने, छात्रों की समझ में वृद्धि, पाठ्यक्रम को व्यवस्थित करना उद्देश्य.
३. उबाऊ और गुणवत्ताहीन परीक्षा-प्रणाली को रुचिकर/interesting बनाना.
४. शिक्षा को तकनीकी से जोड़ा जाए.




संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा-नीति 1992 Modified National Policy on Education

वर्ष 1991 में कांग्रेस के पुनः सत्ता में आने पर पिछली सरकार द्वारा शिक्षा-नीति में किए गए परिवर्तनों का पुनरीक्षण किया गया.
१. इसके अध्यक्ष श्री जनार्दन रेड्डी थे.
२. प्रत्येक विद्यालय में कम से कम तीन शिक्षकों का प्रावधान.
३. Operation Black Board और School Complex जैसी योजनाओं को जारी रखा जाए.
४. प्रौढ़ शिक्षा पर जोर और उसी के लिए “जिला साक्षरता अभियान” (District Literacy Movement- DLM) की सिफारिश.
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