गोलकुंडा
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विवरण | गोलकुंडा एक क़िला व भग्नशेष नगर है जो आंध्र प्रदेश राज्य की राजधानी हैदराबाद में स्थित है। |
राज्य | आंध्र प्रदेश |
ज़िला | हैदराबाद |
स्थापना | 1600 ई. |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 17.38°, पूर्व- 78.40° |
मार्ग स्थिति | गोलकुंडा क़िला हैदराबाद से 11 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। |
प्रसिद्धि | कुतुबशाही साम्राज्य की प्रारम्भिक राजधानी गोलकुंडा हीरों के विश्व प्रसिद्ध बाज़ार के रूप में प्रसिद्ध थी। |
कैसे पहुँचें | हवाई जहाज, रेल, बस, टैक्सी |
राजीव गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा | |
सिंकदराबाद रेलवे स्टेशन, नामपल्ली रेलवे स्टेशन, काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन | |
महात्मा गाँधी (इम्लिबन) बस अड्डा | |
टैक्सी, ऑटो-रिक्शा, साइकिल रिक्शा, बस आदि। | |
कहाँ ठहरें | होटल, अतिथि ग्रह, धर्मशाला |
क्या खायें | हैदराबादी बिरयानी, मिर्ची का सालन, भरवा बैंगन, हलीम, कबाब |
एस.टी.डी. कोड | 040 |
ए.टी.एम | लगभग सभी |
गूगल मानचित्र | |
संबंधित लेख | चारमीनार, हुसैन सागर झील, नेहरू जैविक उद्यान |
अन्य जानकारी | गोलकुंडा का क़िला 400 फुट ऊंची कणाश्म (ग्रेनाइट) की पहाड़ी पर स्थित है। इसके तीन परकोटे हैं और इसका परिमाप सात मील के लगभग है। इस पर 87 बुर्ज बने हैं। |
अद्यतन |
13:46, 19 दिसम्बर 2011 (IST)
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गोलकुंडा एक क़िला व भग्नशेष नगर है। यह आंध्र प्रदेश का एक ऐतिहासिक नगर है। हैदराबाद से पांच मील पश्चिम की ओर बहमनी वंश के सुल्तानों की राजधानी गोलकुंडा के विस्तृत खंडहर स्थित हैं। गोलकुंडा का प्राचीन दुर्ग वारंगल के हिन्दू राजाओं ने बनवाया था। ये देवगिरी के यादव तथा वारंगल के ककातीय नरेशों के अधिकार में रहा था। इन राज्यवंशों के शासन के चिह्न तथा कई खंडित अभिलेख दुर्ग की दीवारों तथा द्वारों पर अंकित मिलते हैं। 1364 ई. में वारंगल नरेश ने इस क़िले को बहमनी सुल्तान महमूद शाह के हवाले कर दिया था।
इतिहास
इतिहासकार फ़रिश्ता लिखता है कि बहमनी वंश की अवनति के पश्चात 1511 ई. में गोलकुंडा के प्रथम सुल्तान ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था। किंतु क़िले के अन्दर स्थित जामा मस्जिद के एक फ़ारसी अभिलेख से ज्ञात होता है कि, 1518 ई. में भी गोलकुंडा का संस्थापक कुली कुतुबशाह, महमूद शाह बहमनी का सामन्त और एक तुर्की अधिकारी था।
उसने 1543 तक गोलकुंडा पर शासन किया। यह ऐतिहासिक शहर बहमनी साम्राज्य के ‘तिलंग’ या वर्तमान तेलंगाना प्रान्त की राजधानी था। गोलकुंडा के आख़िरी सुल्तान का दरबारी और सिपहसलार अब्दुर्रज्जाक लारी था। कुतुबशाह के बाद उसका पुत्र ‘जमशेद’ सिंहासन पर बैठा। जमशेद के बाद गोलकुंडा का शासक ‘इब्राहिम’ बना, जिसने विजयनगर से संघर्ष किया। 1580 ई. में इब्राहिम की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र ‘मुहम्मद कुली’ (1580-1612 ई.) उसका उत्तराधिकारी हुआ। वह हैदराबादनगर का संस्थापक और दक्कनी उर्दू में लिखित प्रथम काव्य संग्रह या ‘दीवान’ का लेखक था। गोलकुंडा का ही प्रसिद्ध अमीर ‘मीरजुमला’ मुग़लों से मिल गया था।
कुतुबशाही साम्राज्य की प्रारम्भिक राजधानी गोलकुंडा हीरों के विश्व प्रसिद्ध बाज़ार के रूप में प्रसिद्ध थी, जबकि मुसलीपत्तन कुतुबशाही साम्राज्य का विश्व प्रसिद्ध बन्दरगाह था। इस काल के प्रारम्भिक भवनों में सुल्तान कुतुबशाह द्वारा गोलकुंडा में निर्मित ‘जामी मस्जिद’ उल्लेखनीय है। हैदराबाद के संस्थापक ‘मुहम्मद कुली’ द्वारा हैदराबाद में निर्मित चारमीनार की गणना भव्य इमारतों में होती है। सुल्तान मुहम्मद कुली को आदि उर्दू काव्य का जन्मदाता माना जाता है। सुल्तान ‘अब्दुल्ला’ महान् कवि एवं कवियो का संरक्षक था। उसके द्वारा संरक्षित महानतम् कवि ‘मलिक-उस-शोरा’ था, जिसने तीन मसनवियो की रचना की। अयोग्य शासक के कारण, अंततः 1637 ई. में औरंगजेब ने गोलकुंडा को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया। बहमनी साम्राज्य से स्वतंत्र होने वाले राज्य क्रमश बरार, बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुंडा तथा बीदर हैं।
पर्यटन
गोलकुंडा का क़िला 400 फुट ऊंची कणाश्म (ग्रेनाइट) की पहाड़ी पर स्थित है। इसके तीन परकोटे हैं और इसका परिमाप सात मील के लगभग है। इस पर 87 बुर्ज बने हैं। दुर्ग के अन्दर क़ुतुबशाही बेगमों के भवन उल्लेखनीय है। इनमें तारामती, पेमामती, हयात बख्शी बेगम और भागमती (जो हैदराबाद या भागनगर के संस्थापक कुली क़ुतुब शाह की प्रेयसी थी) के महलों से अनेक मधुर आख्यायिकी का संबंध बताया जाता है। क़िले के अन्दर नौमहल्ला नामक अन्य इमारतें हैं। जिन्हें हैदराबाद के निजामों ने बनवाया था। इनकी मनोहारी बाटिकाएँ तथा सुन्दर जलाशय इनके सौंदर्य को द्विगुणित कर देते हैं। क़िले से तीन फलांग पर इब्राहिम बाग़ में सात क़ुतुबशाही सुल्तानों के मक़्बरे हैं। जिनके नाम हैं-
- कुली क़ुतुब
- सुभान क़ुतुब
- जमशेदकुली
- इब्राहिम
- मुहम्मद कुली क़ुतुब
- मुहम्मद क़ुतुब
- अब्दुल्ला क़ुतुबशाह
प्रेमावती व हयात बख्शी बेगमों के मक़्बरे भी इसी उद्यान के अन्दर हैं। इन मक़्बरों के आधार वर्गाकार हैं तथा इन पर गुंबदों की छतें हैं। चारों ओर वीथीकाएँ बनी हैं जिनके महाराब नुकीले हैं। ये वीथीकाएँ कई स्थानों पर दुमंजिली भी हैं। मक़्बरों के हिन्दू वास्तुकला के विशिष्ट चिह्न कमल पुष्प तथा पत्र और कलियाँ, शृंखलाएँ, प्रक्षिप्त छज्जे, स्वस्तिकाकार स्तंभशीर्ष आदि बने हुए हैं। गोलकुंडा दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार में यदि ज़ोर से करताल ध्वनि की जाए तो उसकी गूंज दुर्ग के सर्वोच्च भवन या कक्ष में पहुँचती है। एक प्रकार से यह ध्वनि आह्वान घंटी के समान थी। दुर्ग से डेढ़ मील पर तारामती की छतरी है। यह एक पहाड़ी पर स्थित है। देखने में यह वर्गाकार है और इसकी दो मंज़िले हैं। किंवदंती है कि तारामती, जो क़ुतुबशाही सुल्तानों की प्रेयसी तथा प्रसिद्ध नर्तकी थी, क़िले तथा छतरी के बीच बंधी हुई एक रस्सी पर चाँदनी में नृत्य करती थी। सड़क के दूसरी ओर प्रेमावती की छतरी है। यह भी क़ुतुबशाही नरेशों की प्रेमपात्री थी। हिमायत सागर सरोवर के पास ही प्रथम निज़ाम के पितामह चिनकिलिचख़ाँ का मक़्बरा है।
आक्रमण
28 जनवरी, 1627 ई. को औरंगज़ेब ने गोलकुंडा के क़िले पर आक्रमण किया और तभी मुग़ल सेना के एक नायक के रूप में किलिच ख़ाँ ने भी इस आक्रमण में भाग लिया था। युद्ध में इसका एक हाथ तोप के गोले से उड़ गया था जो मक़्बरे से आधा मील दूर क़िस्मतपुर में गड़ा हुआ है। इसी घाव से इसका कुछ दिन बाद निधन हो गया। कहा जाता है कि मरते वक़्त भी किलिच ख़ाँ जरा भी विचलित नहीं हुआ था और औरंगज़ेब के प्रधानमंत्री जमदातुल मुल्क असद ने, जो उससे मिलने आया था, उसे चुपचाप काफ़ी पीते देखा था। शिवाजी ने बीजापुर और गोलकुंडा के सुल्तानों को बहुत संत्रस्त किया था तथा उनके अनेक क़िलों को जीत लिया था। उनका आतंक बीजापुर और गोलकुंडा पर बहुत समय तक छाया रहा जिसका वर्णन हिन्दी के प्रसिद्ध कवि भूषण ने किया है- बीजापुर गोलकुंडा आगरा दिल्ली कोट बाजे बाजे रोज़ दरवाज़े उधरत हैं।
प्रसिद्धि
गोलकुंडा पहले हीरों के लिए विख्यात था। जिनमें से कोहिनूर हीरा सबसे मशहूर है।
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