संसद | Parliament
भारत में संसदात्मक शासन प्रणाली स्वीकार की गई है। अत: संसद की सर्विच्चता भारतीय शासन की प्रमुख विशेषता है। संसद को विधायिका अथवा व्यवस्थापिका नाम से भी जाना जाता है।
गठन
संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार संघ के लिए एक संसद होगी, जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिल कर बनेगी। उच्च सदन राज्यसभा तथा निम्न सदन लोकसभा कहलाती है। इस प्रकार संसद-
- राष्ट्रपति,
- राज्यसभा,
- लोकसभा से मिलकर गठित है।
राष्ट्रपति संसद का अभिन्न भाग है। इसे संसद का अभिन्न भाग इसलिए माना जाता है क्योंकि इसकी अनुमति के बिना राज्यसभा तथा लोकसभा द्वारा पारित कोई भी व्ह्धेयक अधिनियम का रूप नहीं लेगा। कुछ ऐसे विधेयक भी हैं, जिन्हें राष्ट्रपति की अनुमति के बिना लोकसभा में पेश नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति को राज्यसभा तथा लोकसभा में पेश नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति को राज्यसभा तथा लोकसभा का सत्र बुलाने, सत्रावसान करने और लोकसभा को विघटित करने का अधिकार है।
योग्यता
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में दिये गये प्रारूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर हस्ताक्षर करता है।
- उसे राज्यसभा की दशा में 30 वर्ष से कम तथा लोकसभा की स्थिति में 25 वर्ष से कम आयु का नहीं होना चाहिए।
- उसके पास ऐसी कोई अन्य अर्हता हो, जो कि संसद द्वारा बनायी गयी किसी विधि द्वारा विहित की गयी है। संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधनियम, 1951 बनाकर निम्नलिखित अर्हता नियत की है-
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राज्यसभा की सदस्यता
राज्यसभा में किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में वह व्यक्ति चुना जाएगा, जो उस राज्य या राज्यक्षेत्र के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का निर्वाचक हो। लेकिन इस प्रावधान की भावना का राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा उल्लंघन किया जाता रहा है, क्योंकि किसी राज्य/संघ राज्यक्षेत्र से राज्यसभा का प्रतिनिधि चुने जाने के लिए राजनीतिक दल के सदस्य उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के किसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचक बन जाते हैं, जबकि वे उससे पहले उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के किसी भी निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचक नहीं होते। ऐसे नेताओं भ्रष्टाचार का दोषी माना जाना चाहिए तथा इन्हें सदैव के लिए संसद की सदस्यता के अयोग्य कर देना चाहिए। निवर्तमान चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन ने इस सम्बन्ध में क़दम उठाये थे। राज्यसभा संसद का उच्च सदन है, इसमें सदस्यों की कुल अधिकतम संख्या 250 हो सकती है।
लोकसभा की सदस्यता
लोकसभा की सदस्यता के लिए यह अर्हता निश्चित की गयी है कि अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित स्थान की दशा में चुनाव में खड़े होने वाले व्यक्ति के लिए उसी जाति या जनजाति का होना चाहिए तथा सिक्किम राज्य के स्थान/स्थानों की स्थिति में चुनाव में खड़े होने वाले व्यक्तियों को सिक्किम का निर्वाचक होना चाहिए।
अयोग्यता
- यदि वह भारत सरकार के किसी राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, लेकिन यदि संसद ने विधि द्वारा किसी पद को धारण करने की छूट दी है, तो उस पद को धारण करने वाला व्यक्ति संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य नहीं होगा।
- यदि वह सक्षम न्यायालय के द्वारा विकृतचित्त घोषित कर दिया गया है।
- यदि वह अमुक्त दिवालिया है।
- यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या यदि वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा धारण करता है।
- यदि वह दल बदल क़ानून (संविधान की दसवीं अनुसूची) के अधीन संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया गया है।
- यदि वह संसद द्वारा बनायी गयी किसी विधि के अधीन अयोग्य घोषित कर दिया गया है, संसद ने 1951 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनयम, 1951 बनाकर निम्नलिखित व्यक्तियों को संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया है–
- जो भ्रष्ट आचरण का दोषी ठहराया गया हो,
- जो कुछ अपराधों के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी निर्णीत किया गया हो,
- जो व्यक्ति भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण करते हुए भ्रष्टाचार के कारण या राज्य के प्रति अभक्ति के कारण पदच्युत कर दिया गया हो,
- जो सरकार के साथ अपने व्यापार या कारोबार के अनुक्रम में सरकार को माल प्रदान करने के लिए या सरकार द्वारा किये जाने वाले किसी कार्य के लिए संविदा लिया हो,
- जो व्यक्ति किसी ऐसी कम्पनी या निगम का (सहकारी सोसाइटी से भिन्न), जिसकी पूँजी में सरकार का 25% या अधिक हिस्सा है, प्रबन्ध अभिकर्ता या सचिव है,
- जो व्यक्ति अपने चुनाव व्यय का लेखा दाख़िल करने में असफल रहा है।
- दिसम्बर, 1988 में जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 में संशोधन कर आतंकवादी गतिविधि, तस्करी, जमाखोरी, मुनाफाखोरी, खाद्य पदार्थों एवं दवाओं में मिलावट करने वाले, फेरा का उल्लंघन तथा महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने वाले व्यक्तियों को संसद या राज्य के विधानमण्डल का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है।
प्रश्न का विनिश्चय
जब संसद सदस्यों की अयोग्यता से सम्बन्धित प्रश्न उत्पन्न होता है तो उसका विनिश्चय राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है। इस सम्बन्ध में राष्ट्रपति का नर्णिय अन्तिम माना जाता है तथा इस निर्णय के विरुद्ध न्यायालय में याचिका या अपील दाखिल नहीं की जा सकती। राष्ट्रपति संसद सदस्यों की अयोग्यता से सम्बन्धित प्रश्न का निर्णय करते समय चुनाव आयोग की राय लेता है और उसी के अनुसार कार्य करता है। लेकिन संसद सदस्य के दल बदल के आधार पर संसद की सदस्यता के लिए अयोग्यता का निर्णय लोकसभा या राज्यसभा के सभापति, जैसी भी स्थिति हो, द्वारा किया जाता है।
संसद सदस्यों के लिए आचार संहिता
25 नवम्बर, 2001 को संपन्न सर्वदलीय राष्ट्रीय सम्मेन में संसद एवं विधानसभाओं की मर्यादा बनाये रखने तथा इन सदनों में अनुशासनहीनता को रोकने के उद्देश्य से एक आचार संहिता का निर्माण किया गया है। इस आचार संहिता के प्रमुख बिन्दु निम्नवत् हैं–
- प्रश्नकाल के दौरान सदन में शान्ति बनाये रखना।
- सदन के बीच में आने से बचने की कोशिश की जाये।
- यदि कोई सदस्य किसी सरकारी दस्तावेज़, काग़ज़ या रिपोर्ट के किसी गोपनीय मुद्दे पर हवाला देना चाहता हो तो उन्हें पहले इसकी सूचना अध्यक्ष को देनी चाहिए, ताकि वह इस पर उचित फ़ैसला कर सके।
- प्रत्येक सदस्य को अपनी सम्पत्ति की घोषणा करनी चाहिए या किसी मामले से यदि वह सम्बद्ध है तो पर चर्चा से पहले उन्हें सदन को यह बताना चाहिए।
- राष्ट्रपति या राज्यपाल के अभिभाषण के समय सदन में एकजुटता, सम्मान और मर्यादा का परिचय दें।
- यदि किसी का व्यक्तिगत हित सार्वजनिक हित के आड़े आता है तो उसे सार्वजनिक हित को तरजीह देनी चाहिए।
- सदस्यों को अपने कर्तव्यों का सदैव ध्यान रखना चाहिए।
- कोई सदस्य जब किसी मसले पर बोल रहा हो तो अन्य सदस्यों को शोर-शराबा करके उसकी बात में व्यवधान पैदा नहीं करना चाहिए। किसी सदस्य के बोलने के समय टोकाटाकी करने से अन्य सदस्यों को बचने का प्रयास करना चाहिए।
- सदन में किसी तरह की नारेबाज़ी नहीं की जानी चाहिए।
- विरोध व्यक्त करने के लिए सदन में कोई दस्तावेज़ फाड़ा नहीं जाना चाहिए।
- संसद विधानमण्डलों अथवा केन्द्रशासित प्रदेशों की विधान सभाओं के भीतर या उसके परिसर में कहीं पर भी सत्याग्रह अथवा धरने पर नहीं बैठना चाहिए।
- सदनों में सेल्यूलर फ़ोन अथवा पेजर लेकर नहीं जाना चाहिए।
- बिना स्पीकर को नोटिस दिये किसी के ख़िलाफ़ किसी तरह का आरोप अथवा उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाली कोई बात नहीं कही जानी चाहिए।
- चर्चा के दौरान ऐसे किसी मामले अथवा तथ्य ज़िक़्र नहीं करना चाहिए, जो कि न्यायालय में लम्बित हो।
- पीठ की बिना पूर्व अनुमति के सदस्यों को सदन में कोई बयान नहीं पढ़ना चाहिए।
- स्पीकर की व्यसस्था पर न तो कोई सवाल उठाया जाना चाहिए और न ही किसी तरह की टिप्पणी की जानी चाहिए।
- अध्यक्ष द्वारा अनुमति दिये जाने के पूर्व सदस्यों को किसी मसले पर नहीं बोलना चाहिए।
- सदन की किसी भी समिति के साक्ष्यों को किसी सदस्य अथवा अन्य व्यक्ति द्वारा तब तक नहीं छापा जाना चाहिए, जब तक वे सदन में पेश न कर दिये गये हों।
- सदन की समितियों को किसी मामले के तथ्यों को जानने के लिए तब तक यात्रा पर नहीं जाना चाहिए, जब तक कि वह बेहद ज़रूरी न हो।
- स्थानीय अधिकारियों से चर्चा से पूर्व तो ऐसे टूर क़तई नहीं आयोजित किए जाएँ।
- किसी संगठन से सम्बद्ध सदस्य उसके लिए सरकार के साथ किसी तरह का व्यापार न करें।
- सदस्य को उपलब्ध कराए गए सरकारी आवास को यह किराये आदि पर न देकर उससे किसी तरह का आर्थिक लाभ वर्जित न करें।
- ऐसे किसी मामले में जिसमें सदस्य के हित परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हों किसी सरकारी अधिकारी अथवा मंत्री पर दबाव डालने का प्रयास न किया जाए।
- सदस्यों को अपने किसी रिश्तेदार, परिचित की नौकरी या व्यापारिक सुविधा के लिए किसी सरकारी अधिकारी को पत्र नहीं लिखना चाहिए तथा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में रुचि नहीं लेनी चाहिए।
- सदन में किसी प्रकार का बैज लगाकर न जाएँ।
- किसी भी तरह का हथियार लेकर सदन में न जाएँ।
- सदन में कोई झण्डा, निशान या इसी तरह की अन्य वस्तु का प्रदर्शन न करें।
ऐसा कोई लिटरेचर, प्रश्नावली, परचा प्रेस विज्ञप्ति संसद या विधानमंण्डल के परिसर में वितरित नहीं करें, जिसका सदन के कामकाज़ से मतलब न हो। इस आचार संहिता का उल्लंघन करने पर सम्बन्धित सदस्य के ख़िलाफ़ दण्डात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इसमें उसको डाँट-फटकार, निन्दा, सदन से बाहर करना आदि सम्भव है, इसके अलावा उसका सदन से स्वत: ही निलम्बन भी सम्भव है।
सत्र, स्थगन, सत्रावसान तथा विघटन
राष्ट्रपति अनुच्छेद 85 के तहत संसद के दोनों सदनों का सत्र बुला सकता है, दोनों सदनों का सत्रावसान कर सकता है तथा लोकसभा का विघटन कर सकता है। संविधान के द्वारा राष्ट्रपति पर यह कर्तव्य अधिरोपित किया गया है कि वह संसद के दोनों सदनों को ऐसे अंतराल पर आहूत करेगा कि एक सत्र की अंतिम बैठक और उसके बाद की पहली बैठक के लिए नियत तिथि के बीच छह मास का अन्तराल नहीं होना चाहिए। इसका परिणाम यह है कि संसद की बैठक वर्ष में कम से कम दो बार होनी चाहिए और दोनों बैठकों के बीच छह मास से अधिक का समय नहीं होना चाहिए। दोनों बैठकों के बीच के समय को ‘दीर्घावकाश’ कहा जाता है। संसद के वर्ष में सामान्यत: तीन सत्र आयोजित किए जाते हैं–
- बजट
- वर्षा सत्र और
- शीत सत्र।
प्रत्येक वर्ष संसद का प्रथम अधिवेशन फ़रवरी के तीसरे सप्ताह में बजट सत्र से आरम्भ होता है। इस सत्र के प्रारम्भ होने के पहले दिन दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आयोजित होती है, जिसमें राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है। इस सत्र में बजटीय प्रस्तावों को पारित किया जाता है। संसद या वर्षा सत्र जुलाई के तीसरे सप्ताह में आयोजित होता है। इस सत्र में मुख्यत: विधार्थी कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। शीत सत्र नवम्बर के दूसरे या तीसरे सप्ताह में आरम्भ होता है।
सदन का स्थगन
कभी-कभी कुछ अत्यावश्य और विशेष कारणों से सदन की बैठक स्थगित करने की आवश्यकता पड़ जाती है। संसद के दोनों सदनों का स्थगन लोकसभा अध्यक्ष (नियम 15) तथा राज्यसभा के सभापति (नियम 12) द्वारा किया जाता है। यह कुछ घंटे, दिन या सप्ताह की अवधि का हो सकता है। आवश्यकता पड़ने पर सदन को बैठक के बीच में ही स्थगित किया जा सकता है। इसके अलावा सदन किसी मृत व्यक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए, गणपूर्ति न होने पर, सदन के भीतर कार्य संचालन में अव्यवस्था आदि के कारण स्थगित किया जा सकता है।
संसद सदस्यों द्वारा स्थान की रिक्ति
भारतीय संविधान में तथा संसद द्वारा निर्मित लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के द्वारा संसद सदस्यों द्वारा स्थान की रिक्ति के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं-
- कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का तथा संसद के किसी सदन और किसी राज्य के विधानमण्डलों में से किसी का सदस्य एक साथ नहीं हो सकता है।
- यदि कोई व्यक्ति सदन के दोनों सदनों के लिए चुना जाता है और दोनों सदनों में से किसी में भी अपना स्थान ग्रहण नहीं किया है, तो वह अपने चुने जाने की तिथि से 10 दिन के अन्दर आयोग के सचिव को लिखित सूचना देगा, कि वह किस सदन का सदस्य बना रहना चाहता है। जिस सदन का वह सदस्य बना रहना चाहता है, उसके अतिरिक्त दूसरे सदन का उसका स्थान रिक्त हो जाएगा। यदि व्यक्ति चुनाव आयोग के सचिव को ऐसी सूचना नहीं देता, तो उसका राज्यसभा का स्थान स्वत: ही 10 दिन के बाद समाप्त हो जाएगा।
- यदि कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का पहले सदस्य है और वह दूसरे सदन के लिए चुना जाता है तो उसके चुनाव की तिथि के दिन उसकी उस सदन की सदस्यता समाप्त हो जाएगी, जिसका वह पहले सदस्य था।
- यदि कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों में से किसी में या राज्य के विधानमण्डल में से किसी के लिए एक स्थान से अधिक स्थान के लिए निर्वाचित हो जाता है तो उसे एक स्थान को छोड़कर अन्य स्थानों से 14 दिन के अन्दर त्यागपत्र दे देना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसके सभी स्थान स्वत: ही समाप्त हो जाएँगे।
- यदि राष्ट्रपति उसे चुनाव आयोग की सलाह से संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराता है तो उसका स्थान रिक्त हो जाता है।
- वह लोकसभा के मामले में लोकसभाध्यक्ष को अथवा राज्यसभा के मामले में उपराष्ट्रपति को त्यागपत्र देकर अपना स्थान रिक्त कर सकता है।
- यदि वह दल बदल क़ानून के अधीन लोकसभा के मामले में लोकसभाध्यक्ष द्वारा या राज्यसभा के मामले में उपराष्ट्रपति द्वारा अयोग्य ठहराया जाता है तो उसका स्थान रिक्त हो जाता है।
शपथ ग्रहण
संसद सदस्यों को अपना स्थान ग्रहण करने के पूर्व राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ ग्रहण करना पड़ता है। बिना शपथ ग्रहण किये कोई भी व्यक्ति संसद का सदस्य नहीं बन सकता। यदि किसी व्यक्ति ने संसद सदस्य के रूप में शपथ नहीं ग्रहण की है या संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया गया है या संसद से निष्कासित कर दिया गया है, तो वह संसद की कार्रवाई में भाग नहीं ले सकता है और यदि वह संसद की कार्रवाई में भाग लेता है तो वह प्रत्येक दिन के लिए, जब वह संसद की कार्रवाई में भाग लेता है, 500 रुपये के जुर्माने का दायी होगा।
वेतन और भत्ते
संसद सदस्यों के वेतन और भत्तों के सम्बन्ध में विधि निर्माण का अधिकार संसद को दिया गया है। संसद ने इस अधिकार का प्रयोग करके संसद सदस्य वेतन, भत्ता और पेंशन अधिनियम, 1954 पारित किया है। इसमें अब तक कई बार संशोधन किये जा चुके हैं। अगस्त, 2006 में संसद द्वारा एक बार पुन: सांसदों के वेतन, भत्ते और पेंशन में संशोधन से सम्बन्धित विधेयक को पारित किया गया। वर्तमान समय में (2006) संसद सदस्य को मिलने वाला वेतन, भत्ता तथा अन्य सुविधाएँ निम्नलिखित प्रकार से ह-
- प्रत्येक संसद सदस्य को प्रति माह 16,000 रुपये वेतन निर्धारित है।
- प्रत्येक संसद सदस्य को अथवा उसकी समितियों की बैठक के दौरान दैनिक भत्ता 1000 रुपये तथा निजी कार्यालय के व्यय हेतु 23,000 रुपये (मासिक) दिये जाने का प्रावधान है।
- सांसदों को निर्वाचन क्षेत्र में जाने के लिए 20,000 रुपये भत्ता (मासिक) दिया जाता है।
- संसद सत्र में भाग लेने हेतु प्रत्येक संसद सदस्य को अपने निवास स्थान (गृह) से आते एवं लौटते समय रेलवे के प्रथम वातानुकूलित श्रेणी का किराया प्राप्त होता है। यह सुविधा सांसद की पत्नी या पति को भी सुलभ होती है।
- संसद के कार्य हेतु यात्रा करने पर सांसदों को 13 रुपये प्रति किलोमीटर की यात्रा भत्ता देय है।
- प्रत्येक संसद सदस्य को प्रति वर्ष 32 बार हवाई यात्रा की सुविधा उपलब्ध है। साथ ही अपनी पत्नी अथवा किसी भी एक व्यक्ति के साथ देश में कहीं पर भी वातानुकूलित प्रथम श्रेणी की मुफ़्त रेल यात्रा करने की सुविधा प्राप्त है।
- प्रत्येक संसद सदस्य को 50,000 यूनिट तक नि:शुल्क विद्युत प्रदान की जाती है।
- प्रत्येक संसद को दो टेलीफ़ोन मिलते हैं, जिसमें से एक को दिल्ली में तथा दूसरा वे निवास स्थान या निर्वाचन क्षेत्र में ले सकते हैं। इन टेलीफ़ोनों से 1 लाख 20 हज़ार तक की कॉल्स की जा सकती हैं।
- हर सांसद को दिल्ली के पॉश क्षेत्र में न्यूनतम किराये पर शानदार आवास मिलता है।
- केन्द्र तथा राज्य के चिकित्सालयों में उसे नि:शुल्क इलाज की सुविधा होती है।
- प्रत्येक सांसद को 30,000 रुपये तक का मुफ़्त फर्नीचर उपलब्ध कराया जाता है।
- प्रत्येक सांसद को केन्द्रीय विद्यालय में हर वर्ष दो नामांकन करवाने का भी अधिकार है।
- अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर प्रत्येक सांसद प्रतिवर्ष 100 टेलीफ़ोन और 160 एलपीजी कनेक्शन दिला सकता है।
- वाहन ख़रीदने के लिए प्रत्येक सांसद को बिना ब्याज़ ऋण सुविधा उपलब्ध होती है।
- सांसद का पद समाप्त होने के बाद वह एक व्यक्ति को साथ लेकर पूरे जीवन काल में वातानुकूलित द्वितीय श्रेणी की मुफ़्त रेल यात्रा कर सकता है।
- यदि संसद सदस्य की मृत्यु हो जाती है, तो हवाई जहाज़, रेल या समुद्री जहाज़ के द्वारा उसके शव को वहाँ पर भेजा जाता है, जहाँ पर उसके सम्बन्धी चाहते हैं।
- संसद द्वारा अगस्त, 2006 में सांसदों के वेतन, भत्ते एवं पेंशन अधिनियम, 1954 में संशोधन करते हुए सभी पूर्व सांसदों को 8000 रुपये प्रतिमाह न्यूनतम पेंशन प्राप्त होने तथा कार्यशील सांसद के निधन की स्थिति में परिवार को 1500 रुपये प्रतिमाह पेंशन उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है। अब तक यह व्यवस्था थी कि दो बार लोकसभा चुनाव जीतने या कम से कम 4 वर्ष तक सांसद रहने पर ही पूर्व सांसद पेंशन का अधिकारी होता था। इस प्रकार जब संसद सदस्य पदमुक्त हो जाता था तो उन्हें 2500 रुपये प्रतिमाह पेंशन मिलती थी। साथ ही 1000 रुपये प्रतिमाह पारिवारिक पेंशन प्राप्त था। सांसदों का वार्षिक पैकेज 25 लाख रुपये का होता था।
उपर्युक्त सुविधाओं के अलावा प्रत्येक सांसद अपने क्षेत्र में 2 करोड़ रुपये का विकास कार्य करवा सकता है।
वेतन तथा भत्ते
- वेतन – 16,000 रुपये प्रतिमाह
- दैनिक भत्ता – 1000 रुपये
- संसदीय क्षेत्र भत्ता – 20,000 रुपये
- कार्यालय भत्ता – 23,000 रुपये (3000 रुपये स्टेशनरी, 1000 रुपये चिट्ठी-पत्री और शेष कार्यालय के ख़र्च हेतु)
- संसदीय क्षेत्र भत्ता – 13 रुपये प्रति किलोमीटर।
सदनों में गणपूर्ति
संसद के सदनों की कार्रवाई प्रारम्भ करने के लिए गणपूर्ति आवश्यक है। गणपूर्ति के लिए सदन के कुल सदस्यों के दसवें भाग (1/10) का सदन में उपस्थित रहना आवश्यक है। इस प्रकार वर्तमान में राज्यसभा और लोकसभा में गणपूर्ति क्रमश: 25 और 55 सदस्यों से होती है। यदि किसी समय संसद के किसी सदन की गणपूर्ति नहीं होती, तो अध्यक्ष या सभापति तब तक के लिए सदन की कार्रवाई को स्थगित कर सकता है, जब तक सदन की गणपूर्ति न हो जाए।
संसद का संयुक्त अधिवेशन
संविधान के अनुसार संसद का संयुक्त अधिवेशन निम्नलिखित स्थिति में बुलाया जाता है-
- लोकसभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के बाद प्रथम सत्र के आम्भ में, इसमें राष्ट्रपति अपना अभिभाषण देता है।
- प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में, उसमें भी राष्ट्रपति अपना अभिभाषण देता है।
- यदि संसद के दोनों सदनों के बीच धन विधेयक को छोड़कर अन्य किसी विधेयक (जिसमें वित्त विधेयक सम्मलित है) को पारित कराने को लेकर गतिरोध उत्पन्न हो गया हो। संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत संसद के दोनों सदनों के बीच असहमति का हल ढँढने के लिए दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का उपबंध है। यह असहमति इस प्रकार हो सकती है-
- यदि संसद का एक सदन किसी विधेयक को पारित करके दूसरे सदन को भेजता है और यदि दूसरा सदन उस विधेयक को अस्वीकार कर देता है,
- दूसरे सदन द्वारा विधेयक में किये गये संशोधन से पहला सदन असहमत है, या
- दूसरा सदन विधेयक को 6 मास तक अपने पास रोक रखता है, तो राष्ट्रपति दोनों सदनों के संयुक्त बैठक को बुला सकता है।
संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति दोनों सदनों के बीच असहमति होने पर उसकी संयुक्त बैठक आहूत करने के अपने आशय की अधिसूचना देता है। यदि विधेयक लोकसभा का विघटन होने के कारण व्यपगत हो गया है, तो राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना नहीं निकाली जाएगी। किन्तु यदि राष्ट्रपति ने संयुक्त बैठक करने के अपने आशय की अधिसूचना जारी कर दी है तो लोकसभा के पश्चातवर्ती विघटन से संयुक्त बैठक में कोई बाधा नहीं आएगी। ऐसी संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।
अनुच्छेद 118(4) के अनुसार लोकसभा के अध्यक्ष की अनुपस्थिति में वह व्यक्ति पीठासीन होगा जो राष्ट्रपति द्वारा बनायी गयी प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित हो। यह नियम राज्यसभा के सभापति और लोकसभा के अध्यक्ष के परामर्श से बनाये जायेंगे। उपबंध के अनुसार, “संयुक्त बैठक में लोकसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में के दौरान लोकसभा का उपाध्यक्ष या यदि वह भी अनुपस्थित है तो राज्यसभा का उपसभापति या यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा अन्य व्यक्ति पीठासीन (अध्यक्ष) होगा जो उस बैठक में उपस्थित सदस्यों के द्वारा अवधारित किया जाये।”
लोकसभा का अध्यक्ष जो कि संयुक्त बैठक या पीठासीन होता है, ही संयुक्त बैठक की प्रक्रिया ऐसे रूप, भेदों तथा परिवर्तनों के साथ लागू करता है जैसा वह आवश्यक अथवा उचित समझता है। लोकसभा का महासचिव प्रत्येक संयुक्त बैठक की कार्रवाई का सम्पूर्ण दस्तावेज़ तैयार करता है तथा उसे यथाशीघ्र ऐसे रूप में तथा ऐसी नीति से प्रकाशित करता है जैसा कि अध्यक्ष समय-समय पर निर्देश देता है।
संसद के संयुक्त अधिवेशन के लिए गणपूर्ति दोनों सदनों के सदस्यों की कुल संख्या का 1/10 भाग होती है। अनुच्छेद 108 द्वारा विहित संयुक्त बैठक की प्रक्रिया केवल सामान्य विधायन तक ही सीमित है, संविधान संशोधन के सम्बन्ध में यह लागू नहीं होती। ध्यातव्य है कि संविधान संशोधन (अनुच्छेद 368) विधेयक को प्रत्येक सदन द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से पारित किया जाना आवश्यक होता है।
देश के संसदीय इतिहास में अब तक केवल तीर बार किसी विवादित विधेयक को पारित करवाने के लिए संसद का संयुक्त अधिवेशन आहूत किया गया है। पहली बार संयुक्त अधिवेशन 1961 में प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के काल में दहेज विरोधी अधिनियम को पारित कराने के लिए तथा दूसरी बार प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के कार्यकाल में 1978 में बैकिंग सेवा आयोग विधेयक पर विचार करने हेतु आहूत किया गया था। तीसरी बार संसद का संयुक्त अधिवेशन 26 मार्च, 2002 को बहुचर्चित एवं बहुविवादित आतंकवाद विरोधी विधेयक, 2002 पारित कराने के उद्देश्य से आहूत किया गया।
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प्रयोग की जाने वाली भाषा
संसद की कार्रवाई अंग्रेज़ी या हिन्दी में होगी, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में बोलने की अनुमति दे सकता है।
कार्य एवं शक्तिया
यद्यपि संसद प्रभुसत्ता सम्पन्न नहीं है, लेकिन उसे निम्नलिखित कार्य एवं शक्तियाँ संविधान द्वारा प्रदान की गई हैं-
विधि निर्माण की शक्ति
संसद को सातवीं अनुसूची के संघ सूची तथा समवर्ती सूची में अन्तर्विट विषयों पर विधि निर्माण का पूर्ण अधिकार है, लेकिन उसे निम्नलिखित स्थितियों में राज्य सूची में शामिल किये गये विषयों पर भी विधि निर्माण का अधिकार है–
- जब राष्ट्रीय आपात या राज्य में आपात स्थिति प्रवर्तन में हो (अनुच्छेद 250)।
- जब दो या दो से अधिक राज्य के विधानमण्डल प्रस्ताव पारित करके संसद से विधि निर्माण, का अनुरोध करें (अनुच्छेद 252)।
- जब राज्यसभा दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करके संसद से विधि निर्माण का अनुरोध करे (अनुच्छेद 249)।
वित्तीय शक्ति
संसद को संघ के वित्त पर पूर्ण अधिकार है। प्राक्कलन समिति तथा लोक लेखा समिति का गठन संसद द्वारा किया जाता है तथा भारत की संचित निधि पर संसद का पूर्ण नियत्रंण रहता है। संसद द्वारा निर्मित विधि के प्रावधानों के अनुसार ही भारत की संचित निधि से धन निकाला जा सकता है। संसद को आकस्मिक निधि को भी स्थापित करने का अधिकार है। संसद के समक्ष वार्षिक बजट पेश किया जाता है, जिसमें वर्ष के प्राक्कलित प्राप्तियों तथा व्ययों का विवरण होता है। उसके अतिरिक्त संसद को विनियोग विधेयक, अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान, लेखानुदान, प्रत्यानुदान तथा अपवादानुदान के सम्बन्ध में पर्याप्त शक्ति है। कराधान प्रस्तावों को प्रवर्तित करने हेतु संसद को वित्त विधेयक पारित करने की शक्ति है।
कार्यपालिका सम्बन्धी शक्ति
संसद सदस्यों में से ही सत्तापक्ष के सदस्यों से मंत्रि परिषद का गठन किया जाता है। संसद सदस्य कई प्रस्तावों के माध्यम से मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण रखते हैं तथा मंत्रिपरिषद को संसद (विशेषकर लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी बनाये रखते हैं।
राज्यों से सम्बन्धित शक्ति
संसद राज्यों के सीमाओं तथा नामों में परिवर्तन कर सकती है, नये राज्यों का गठन कर सकती है, राज्यों का विभाजन कर सकती है तथा कई राज्यों को मिलाकर एक राज्य बना सकती है। साथ ही किसी विद्यमान राज्य को किसी विद्यमान राज्य में मिला सकती है।
संविधान संशोधन की शक्ति
संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन संसद को यह अधिकार असीमित नहीं हैं, क्योंकि संसद संविधान संशोधन द्वारा संविधान के मूल ढाँचे को परिवर्तित नहीं कर सकती है।
निर्वाचन सम्बन्धी कार्य
संसद के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेते हैं तथा संसद उपराष्ट्रपति को निर्वाचित करती है।
महाभियोग की शक्ति
अनुच्छेद 61 के अनुसार संसद को राष्ट्रपति तथा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्याधीशों को महाभियोग प्रक्रिया के द्वारा पदमुक्त करने का भी अधिकार है।
{नोट: यह सुचना २०१२ में अपडेट की गयी थी }
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