rajasthan

राजस्थान (Rajasthan)

header1 - राजस्थान



राजस्थान (अंग्रेज़ी:Rajasthan) भारत गणराज्य के क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान की राजधानी जयपुर है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्य प्रदेश, उत्तर में पंजाब, उत्तर-पूर्व में उत्तर प्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि.मी. (1,32,139 वर्ग मील) है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थलऔर घग्घर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एकमात्र पहाड़ी है जो माउंट आबूऔर विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर को सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो पक्षियों की रक्षार्थ निर्मित किया गया है। राजस्थान भारतवर्ष के पश्चिम भाग में अवस्थित है, जो प्राचीन काल से विख्यात रहा है। तब इस प्रदेश में कई इकाईयाँ सम्मिलित थीं, जो अलग-अलग नाम से सम्बोधित की जाती थीं।

RajasthanMap - राजस्थान

40px India flag - राजस्थान
राजस्थान
200px Rajasthan Map - राजस्थान
राजधानी जयपुर
राजभाषा(एँ) हिन्दी, राजस्थानी
स्थापना 1 नवंबर, 1956
जनसंख्या 6,86,21,012 [1]
· घनत्व 165 /वर्ग किमी
क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किमी
भौगोलिक निर्देशांक 26°34′22″ उत्तर 73°50′20″ पूर्व
· ग्रीष्म 25-46 °C
· शरद 8-28 °C
ज़िले 33
सबसे बड़ा नगर जयपुर
बड़े नगर जयपुर, अजमेर, उदयपुर
मुख्य ऐतिहासिक स्थल हल्दीघाटी, जैसलमेर क़िला, चित्तौड़गढ़, आमेर क़िला, दिलवाड़ा जैन मंदिर
मुख्य पर्यटन स्थल जयपुर, पुष्कर, जैसलमेर, माउण्ट आबू
लिंग अनुपात 1000:921[1] ♂/♀
साक्षरता 68%
राज्यपाल कल्याण सिंह[2]
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया
विधानसभा सदस्य 200
लोकसभा क्षेत्र 25
बाहरी कड़ियाँ अधिकारिक वेबसाइट
अद्यतन‎
Rajasthan logo - राजस्थान




250px City Palace Udaipur - राजस्थान

सिटी पैलेस, उदयपुर

इतिहास

राजस्थान का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से शुरू होता है। ईसा पूर्व 3000 से 1000 के बीच यहाँ की संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता जैसी थी। 12वीं सदी तक राजस्थान के अधिकांश भाग पर गुर्जरों का राज्य रहा। गुजरात तथा राजस्थान का अधिकांश भाग ‘गुर्जरत्रा’ अर्थात ‘गुर्जरों से रक्षित देश’ के नाम से जाना जाता था।[3][4][5]गुर्जर प्रतिहारो ने 300 सालों तक पूरे उत्तरी-भारत को अरब आक्रान्ताओ से बचाया था।[6] बाद में जब राजपूतों ने इस राज्य के विविध भागों पर अपना आधिपत्य जमा लिया तो यह क्षेत्र ब्रिटिश काल में ‘राजपूताना’ अर्थात ‘राजपूतों का स्थान’ कहलाने लगा। 12वीं शताब्दी के बाद मेवाड़ पर गुहिलोतों ने राज्य किया। मेवाड़ के अलावा जो अन्य रियासतें ऐतिहासिक दृष्टि से प्रमुख रहीं, वे थीं- भरतपुर, जयपुर, बूँदी, मारवाड़, कोटा, और अलवर। अन्य सभी रियासतें इन्हीं रियासतों से बनीं। इन सभी रियासतों ने 1818 ई. में अधीनस्थ गठबंधन की ब्रिटिश संधि स्वीकार कर ली, जिसमें राजाओं के हितों की रक्षा की व्यवस्था थी, लेकिन इस संधि से आम जनता स्वाभाविक रूप से असंतुष्ट थी। वर्ष 1857 के विद्रोह के बाद लोग ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ में भाग लेने के लिए महात्मा गाँधी के नेतृत्व में एकजुट हुए। सन् 1935 में अंग्रेज़ी शासन वाले भारत में प्रांतीय स्वायत्तता लागू होने के बाद राजस्थान में नागरिक स्वतंत्रता तथा राजनीतिक अधिकारों के लिए आंदोलन और तेज़ हो गया। 1948 में इन बिखरी हुई रियासतों को एक करने की प्रक्रिया शुरू हुई, जो 1956 में राज्य में पुनर्गठन क़ानून लागू होने तक जारी रही। सबसे पहले 1948 में ‘मत्स्य संघ’ बना, जिसमें कुछ ही रियासतें शामिल हुईं। धीरे-धीरे बाकी रियासतें भी इसमें मिलती गईं। सन् 1949 तक बीकानेर, जयपुर, जोधपुर और जैसलमेर जैसी मुख्य रियासतें इसमें शामिल हो चुकी थीं और इसे ‘बृहत्तर राजस्थान संयुक्त राज्य’ का नाम दिया गया। सन् 1958 में अजमेर, आबू रोड तालुका और सुनेल टप्पा के भी शामिल हो जाने के बाद वर्तमान राजस्थान राज्य विधिवत अस्तित्व में आया। राजस्थान की समूची पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तानपड़ता है, जबकि उत्तर में पंजाब, उत्तर पूर्व में हरियाणा, पूर्व में उत्तर प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में मध्य प्रदेश और दक्षिण-पश्चिम में गुजरातहै।

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में राजस्थान के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने योगदान दिया है जिसमें से प्रमुख हैं- अंजना देवी चौधरी, छगनराज चौपासनी वाला, गंगा सिंह, घनश्याम दास बिड़ला, घासी राम चौधरी, जमनालाल बजाज, चुन्नीलाल चित्तौड़ा, जयनारायण व्यास, अब्दुल हमीद कैसर, ठाकुर केसरी सिंह, महात्मा रामचन्द्र वीर आदि।

अर्थव्यवस्था

राजस्थान मुख्यत: एक कृषि व पशुपालन प्रधान राज्य है और अनाज व सब्जियों का निर्यात करता है। अल्प व अनियमित वर्षा के बावजूद, यहाँ लगभग सभी प्रकार की फ़सलें उगाई जाती हैं। यहाँ का अधिकांश क्षेत्र शुष्क या अर्द्ध शुष्क है, फिर भी राजस्थान में बड़ी संख्या में पालतू पशु हैं व राजस्थान सर्वाधिक ऊन का उत्पादन करने वाला राज्य है। ऊँटों व शुष्क इलाकों के पशुओं की विभिन्न नस्लों पर राजस्थान का एकाधिकार है।

कृषि

राज्य में वर्ष 2006-07 में कुल कृषि योग्य क्षेत्र 217 लाख हेक्टेयर था और वर्ष (2007-08) में अनुमानित खाद्यान उत्पादन 155.10 लाख टन रहा। राज्य की मुख्य फ़सलें हैं- चावल, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का, चना, गेहूँ, तिलहन, दालें ,कपास और तंबाकू। इसके अलावा पिछले कुछ वर्षो में सब्जियों और संतरा तथा माल्टा जैसे नीबू प्रजाति के फलों के उत्पादन में काफ़ी वृद्धि हुई है। यहाँ की अन्य फ़सलें है – लाल मिर्च, सरसों, मेथी, ज़ीरा, और हींग।

250px Moti Doongri Jaipur - राजस्थान




मोती डुंगरी क़िला, जयपुर




रेगिस्तानी क्षेत्र में बाजरा, कोटा में ज्वार व उदयपुर में मुख्यत: मक्का उगाई जाती हैं। राज्य में गेहूं व जौ का विस्तार अच्छा-ख़ासा (रेगिस्तानी क्षेत्रों को छोड़कर) है, ऐसा ही दलहन -मटर, सेम व मसूर जैसी खाद्य फलियाँ, गन्ना व तिलहन के साथ भी है। चावल की उन्नत किस्मों को लाया गया है एवं चंबल घाटी और इंदिरा गांधी नहर परियोजनाओं के क्षेत्रों में इस फ़सल के कुल क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है। कपास व तंबाकू महत्त्वपूर्ण नक़दी फ़सलें हैं।

उद्योग और खनिज

राजस्थान सांस्कृतिक रूप में समृद्ध होने के साथ-साथ खनिजों के मामले में भी समृद्ध रहा है और अब वह देश के औद्योगिक परिदृश्य में भी तेजी से उभर रहा है। राज्य के प्रमुख केंद्रीय प्रतिष्ठानों में देबरी, उदयपुर में जस्ता गलाने का संयंत्र, खेतड़ी, झुंझुनू में तांबापरियोजना और कोटा में सूक्ष्म उपकरणों का कारख़ाना शामिल है। मार्च, 2006 तक राज्य में लघु उद्योगों की 2,75,400 इकाइयां थी। जिनमें 4,336.70 करोड़ रुपये की पूँजी लगी थी और लगभग 10.55 लाख लोगों को रोज़गार मिला हुआ था। मुख्य उद्योग हैं: वस्त्र, ऊनी कपडे, चीनी, सीमेंट, काँच, सोडियम संयंत्र, ऑक्सीजन, वनस्पति, रंग, कीटनाशक, जस्ता, उर्वरक, रेल के डिब्बे, बॉल बियरिंग, पानी व बिजली के मीटर, टेलीविज़न सेट, सल्फ्यूरिक एसिड, सिंथेटिक धागे तथा तापरोधी ईंटें आदि। बहुमूल्य और कम मूल्य के रत्नों के अलावा कास्टिक सोडा, कैलशियम कार्बाइड, नाइलोन तथा टायर आदि अन्य महत्त्वपूर्ण औद्योगिक इकाइयां हैं। राज्य में जिंक कंसंट्रेट, पन्ना, गार्नेट, जिप्सम, खनिज, चांदी, एस्बेस्टस, फैल्सपार तथा अभ्रक के प्रचुर भंडार हैं। राज्य में नमक, रॉक फास्फेट, मारबल तथा लाल पत्थर भी काफ़ी मात्रा में मिलता है। सीतापुर, जयपुर में देश पहला निर्यात संवर्द्धन पार्क बनाया गया है जिसने काम करना प्रारंभ कर दिया है।

सिंचाई और बिजली

300px Handcrafts Rajasthan - राजस्थान

शॉल पर कढ़ाई करता हुआ कारीगर, राजस्थान

अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमे फेसबुक (Facebook) पर ज्वाइन करे Click Now

अत्यधिक शुष्क भूमि के कारण राजस्थान को बड़े पैमाने पर सिंचाई की आवश्यकता है। इसे ज़िले की आपूर्ति पंजाब की नदियों, पश्चिमी यमुना, हरियाणा और आगरा नहरों उत्तर प्रदेश तथा दक्षिण में साबरमती व नर्मदा सागर परियोजना से होती है। यह हज़ारों की संख्या में जलाशय (ग्रामीण तालाब व झील) हैं, लेकिन वे सूखे व गाद से प्रभावित हैं। राजस्थान ‘भाखड़ा परियोजना’ में पंजाब और चंबल घाटी परियोजना में मध्य प्रदेश का साझेदार राज्य है; दोनों परियोजनाओं से प्राप्त जल का उपयोग सिंचाई व पेयजल आपूर्ति के लिए किया जाता है। 1980 के दशक के मध्य में स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की स्मृति में ‘राजस्थान नहर’ का नाम बदलकर ‘इंदिरा गांधी नहर’ रखा गया, जो पंजाब की सतलुज और व्यास नदियों के पानी को लगभग 644 किलोमीटर की दूरी तक ले जाती है और पश्चिमोत्तर व पश्चिमी राजस्थान की मरूभूमि की सिंचाई करती है।

  • मार्च 2007 के अंत तक राज्य में विभिन्न प्रमुख, मध्यम और छोटी सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से 34.85 लाख हेक्टेयर की सिंचाई संभाव्यता का सृजन किया गया (2007-08) और 92,200 हेक्टेयर (आईजीएनपी और सीएडी के अलावा) की अतिरिक्त सिंचाई संभाव्यता का सृजन मार्च 2007 तक किया गया है।
  • राज्य में संस्थापित विद्युत क्षमता दिसम्बर 2007 तक 6335.33 मेगावॉट हो गई है, जिसमें से 4000 मेगावॉट राज्य की अपनी परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न की जाती है, 521.85 मेगावॉट सहयोगी परियोजनाओं से तथा 1813.18 मेगावॉट केन्द्रीय विद्युत उत्पादन स्टेशनों से आबंटित की जाती है।

परिवहन

मार्च 2006 में राजस्थान में सड़कों की कुल लंबाई 1,58,250 कि.मी. थी।सडकें
रेलवे

जोधपुर, बीकानेर, सवाई माधोपुर, कोटा और भरतपुर राज्य के प्रमुख रेलवे जंक्शन है।

उड्डयन

दिल्ली और मुंबई से जयपुर, जोधपुर तथा उदयपुर के लिए नियमित विमान सेवाएं हैं।

शिक्षा व जन कल्याण

राजस्थान में अनेक शैक्षणिक संस्थान हैं, जिनमें राज्य द्वारा संचालित जयपुर, उदयपुर, जोधपुर व अजमेर विश्वविद्यालय; कोटा खुला विश्वविद्यालय; पिलानी में बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एण्ड साइन्स शामिल हैं। यहाँ अनेक राजकीय अस्पताल और दवाख़ाने हैं। यहाँ कई आयुर्वेदिक, यूनानी (जड़ी-बूटियों पर आधारित चिकित्सा पद्धति) एवं होम्योपैथी संस्थान हैं। राज्य सरकार शिक्षा, मातृत्व व शिशु कल्याण, ग्रामीण व शहरी जलापूर्ति एवं पिछड़ों के कल्याण कार्यों पर भारी व्यय करती है।


प्रमुख शिक्षण संस्थान

  • वनस्‍थली विद्यापीठ (मानद विश्‍वविद्यालय)
  • बिरला प्रौद्योगिकी और संस्‍थान संस्‍थान (मानद विश्‍वविद्यालय)
  • आई. आई. एस. विश्‍वविद्यालय (मानद विश्‍वविद्यालय)
  • जैन विश्‍व भारती विश्‍वविद्यालय (मानद विश्‍वविद्यालय)
  • एलएनएम सूचना प्रौद्योगिकी संस्‍थान (मानद विश्‍वविद्यालय)
  • मालवीया राष्‍ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान (मानद विश्‍वविद्यालय)
  • मोहन लाल सुखादिया विश्‍वविद्यालय
  • राष्‍ट्रीय विधि विश्‍वविद्यालय
  • राजस्‍थान कृषि विश्‍वविद्यालय
  • राजस्‍थान आर्युवैद विश्‍वविद्यालय
  • राजस्‍थान संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय
  • बीकानेर विश्‍वविद्यालय
  • कोटा विश्‍वविद्यालय
  • राजस्‍थान विश्‍वविद्यालय।




सांस्कृतिक जीवन

300px Rajasthan Man - राजस्थान

माउंट आबू में राजस्थानी ग्रामीण

राजस्थान में मुश्किल से कोई महीना ऐसा जाता होगा, जिसमें धार्मिक उत्सव न हो। सबसे उल्लेखनीय व विशिष्ट उत्सव गणगौर है, जिसमें महादेव व पार्वती की मिट्टी की मूर्तियों की पूजा 15 दिन तक सभी जातियों की स्त्रियों के द्वारा की जाती है, और बाद में उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन की शोभायात्रा में पुरोहित व अधिकारी भी शामिल होते हैं व बाजे-गाजे के साथ शोभायात्रा निकलती है। हिन्दू और मुसलमान, दोनों एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं। इन अवसरों पर उत्साह व उल्लास का बोलबाला रहता है। एक अन्य प्रमुख उत्सव अजमेर के निकट पुष्कर में होता है, जो धार्मिक उत्सव व पशु मेले का मिश्रित स्वरूप है। यहाँ राज्य भर से किसान अपने ऊँट व गाय-भैंस आदि लेकर आते हैं, एवं तीर्थयात्री मुक्ति की खोज में आते हैं। अजमेर स्थित सूफ़ी अध्यात्मवादी ख़्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह भारत की मुसलमानों की पवित्रतम दरगाहों में से एक है। उर्स के अवसर पर प्रत्येक वर्ष लगभग तीन लाख श्रद्धालु देश-विदेश से दरगाह पर आते हैं।

नृत्य-नाटिका

राजस्थान का विशिष्ट नृत्य घूमर है, जिसे उत्सवों के अवसर पर केवल महिलाओं द्वारा किया जाता है। गेर नृत्य- महिलाओं और पुरुषों द्वारा किया जाने वाला, पनिहारी- महिलाओं का लालित्यपूर्ण नृत्य, व कच्ची घोड़ी, जिसमें पुरुष नर्तक वनावटी घोड़ी पर बैठे होते हैं भी लोकप्रिय है। सबसे प्रसिद्ध गीत ‘खुर्जा’ है, जिसमें एक स्त्री की कहानी है, जो अपने पति को खुर्जा पक्षी के माध्यम से संदेश भेजना चाहती है व उसकी इस सेवा के बदले उसे बेशक़ीमती पुरस्कार का वायदा करती है। राजस्थान ने भारतीय कला में अपना योगदान दिया है और यहाँ साहित्यिक परम्परा मौजूद है, विशेषकर भाट कविता की। चंदबरदाई का काव्य पृथ्वीराज रासो या चंद रासा, विशेष उल्लेखनीय है, जिसकी प्रारम्भिक हस्तलिपि 12वीं शताब्दी की है। मनोरंजन का लोकप्रिय माध्यम ख़्याल है, जो एक नृत्य-नाटिका है और जिसके काव्य की विषय-वस्तु उत्सव, इतिहास या प्रणय प्रसंगों पर आधारित रहती है। राजस्थान में प्राचीन दुर्लभ वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में हैं, जिनमें बौद्ध शिलालेख, जैन मन्दिर, क़िले, शानदार रियासती महल और मस्जिद व गुम्बद शामिल हैं।

त्योहार

राजस्थान मेलों और उत्सवों की धरती है। होली, दीपावली, विजयदशमी, क्रिसमस जैसे प्रमुख राष्ट्रीय त्योहारों के अलावा अनेक देवी-देवताओं, संतों और लोकनायकों तथा नायिकाओं के जन्मदिन मनाए जाते हैं। यहाँ के महत्त्वपूर्ण मेले हैं तीज, गणगौर जयपुर, अजमेर शरीफ़ और गलियाकोट के वार्षिक उर्स, बेनेश्वर (डूंगरपुर) का जनजातीय कुंभ, श्री महावीर जी सवाई माधोपुर मेला, रामदेउरा (जैसलमेर), जंभेश्वर जी मेला (मुकाम-बीकानेर), कार्तिक पूर्णिमा और पशु-मेला (पुष्कर-अजमेर) और श्याम जी मेला (सीकर) आदि।

150px Sonchiriya - राजस्थान


गोडावण पक्षी

राज्य पक्षी

राजस्थान का राज्य पक्षी ‘गोडावण’ है, जो आकार में काफ़ी बड़ा तथा वजन में भारी होता है। गोडावण राजस्थान तथा सीमावर्ती पाकिस्तान के क्षेत्रों में पाया जाता है। यह एक दुर्लभतम पक्षी है। राज्य सरकार के वन विभाग ने गोडावण की रक्षार्थ ‘गोडावण संरक्षण प्रोजेक्ट’ की शुरूआत भी की है, जिससे इस पक्षी को लुप्त होने से बचाया जा सके और इसकी संख्या भी बढ़ सके। राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण उड़ने वाले पक्षियों में सबसे अधिक वजनी है। बड़े आकार के कारण यह शुतुरमुर्ग जैसा प्रतीत होता है। भारत में गोडावण जैसलमेर के मरू उद्यान व अजमेर के शोकलिया क्षेत्र में पाया जाता है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला होता है और सघन घास में रहना इसका स्वभाव है। यह ‘सोहन चिडिया’ तथा ‘शर्मिला पक्षी’ के उपनामों से भी प्रसिद्ध है।

150px Chinkara - राजस्थान

चिंकारा




राज्य पशु

राजस्थान का राज्य पशु चिंकारा है। यह एक छोटा हिरण है, जो दक्षिण एशिया में पाया जाता है। चिंकारा शर्मिला जीव है और मानव आबादी से दूर रहना ही पसंद करता है। यद्यपि यह अकेला रहने वाला जीव है, किंतु कभी-कभी यह प्राणी एक से चार के झुण्ड में भी दिखाई दे जाता है। ग्रीष्म ऋतु में इस प्राणी की खाल का रंग लाल-भूरा हो जाता है और पेट तथा अंदरूनी पैरों का रंग हल्का भूरा लिये हुये सफ़ेद होता है।

राजस्थानी कला

इतिहास के साधनों में शिलालेख, पुरालेख और साहित्य के समानान्तर कला भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इसके द्वारा हमें मानव की मानसिक प्रवृतियों का ज्ञान ही प्राप्त नहीं होता वरन् निर्मितियों में उनका कौशल भी दिखलाई देता है। यह कौशल तत्कालीन मानव के विज्ञान तथा तकनीक के साथ-साथ समाज, धर्म, आर्थिक और राजनीतिक विषयों का तथ्यात्मक विवरण प्रदान करने में इतिहास का स्रोत बन जाता है। इसमें स्थापत्य, मूर्ति, चित्र, मुद्रा, वस्त्राभूषण, शृंगार-प्रसाधन, घरेलू उपकरण इत्यादि जैसे कई विषय समाहित है जो पुन: विभिन्न भागों में विभक्त किए जा सकते हैं।

250px Amber Fort Jaipur 2 - राजस्थान

आमेर का क़िला, जयपुर

स्थापत्य कला

राजस्थान में प्राचीन काल से ही हिन्दू, बौद्ध, जैन तथा मध्यकाल से मुस्लिम धर्म के अनुयायियों द्वारा मंदिर, स्तम्भ, मठ, मस्जिद, मक़बरे, समाधियों और छतरियों का निर्माण किया जाता रहा है। इनमें कई भग्नावेश के रूप में तथा कुछ सही हालत में अभी भी विद्यमान है। इनमें कला की दृष्टि से सर्वाधिक प्राचीन देवालयों के भग्नावशेष हमें चित्तौड़ के उत्तर में नगरी नामक स्थान पर मिलते हैं। प्राप्त अवशेषों में वैष्णव, बौद्ध तथा जैन धर्म की तक्षण कला झलकती है। तीसरी सदी ईसा पूर्व से पांचवी शताब्दी तक स्थापत्य की विशेषताओं को बतलाने वाले उपकरणों में देवी-देवताओं, यक्ष-यक्षिणियों की कई मूर्तियां, बौद्ध, स्तूप, विशाल प्रस्तर खण्डों की चाहर दीवारी का एक बाड़ा, 36 फुट और नीचे से 14 फुल चौड़ दीवर कहा जाने वाला ‘गरुड़ स्तम्भ’ यहाँ भी देखा जा सकता है।

250px Jal Mahal Jaipur - राजस्थान


जल महल, जयपुर

1567 ई. में अकबर द्वारा चित्तौड़ आक्रमण के समय इस स्तम्भ का उपयोग सैनिक शिविर में प्रकाश करने के लिए किया गया था। गुप्तकाल के पश्चात् कालिका मन्दिर के रूप में विद्यमान चित्तौड़ का प्राचीन ‘सूर्य मन्दिर’ इसी ज़िले में छोटी सादड़ी का भ्रमरमाता का मन्दिर कोटा में, बाड़ौली का शिव मन्दिर तथा इनमें लगी मूर्तियाँ तत्कालीन कलाकारों की तक्षण कला के बोध के साथ जन-जीवन की अभिक्रियाओं का संकेत भी प्रदान करती हैं। चित्तौड़ ज़िले में स्थित मेनाल, डूंगरपुर ज़िले में अमझेरा, उदयपुर में डबोक के देवालय अवशेषों की शिव, पार्वती, विष्णु, महावीर, भैरव तथा नर्तकियों का शिल्प इनके निर्माण काल के सामाजिक-सांस्कृतिक विकास का क्रमिक इतिहास बतलाता है।

मुद्रा कला

राजस्थान के प्राचीन प्रदेश मेवाड़ में मज्झमिका (मध्यमिका) नामधारी चित्तौड़ के पास स्थित नगरी से प्राप्त ताम्रमुद्रा इस क्षेत्र को ‘शिवि जनपद’ घोषित करती है। तत्पश्चात् छठी-सातवीं शताब्दी की स्वर्ण मुद्रा प्राप्त हुई। जनरल कनिंघम को आगरा में मेवाड़ के संस्थापक शासक ‘गुहिल’ के सिक्के प्राप्त हुए तत्पश्चात ऐसे ही सिक्के औझाजी को भी मिले। इसके उर्ध्वपटल तथा अधोवट के चित्रण से मेवाड़ राजवंश के शैवधर्म के प्रति आस्था का पता चलता है।

300px Camel Cart Mount Abu - राजस्थान

ऊँट गाड़ी, माउंट आबू

अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमे फेसबुक (Facebook) पर ज्वाइन करे Click Now

राणा कुम्भाकालीन (1433-1468 ई.) सिक्कों में ताम्र मुद्राएं तथा रजत मुद्रा का उल्लेख जनरल कनिंघम ने किया है। इन पर उत्कीर्ण विक्रम सम्वत् 1510, 1512, 1523 आदि तिथियों ‘श्री कुभंलमेरु महाराणा श्री कुभंकर्णस्य’, ‘श्री एकलिंगस्य प्रसादात’ और ‘श्री’ के वाक्यों सहित भाले और डमरु का बिन्दु चिह्न बना हुआ है। यह सिक्के वर्गाकृति के जिन्हें ‘टका’ पुकारा जाता था। यह प्रभाव सल्तनत कालीन मुद्रा व्यवस्था को प्रकट करता है जो कि मेवाड़ में राणा सांगा तक प्रचलित रही थी। सांगा के पश्चात् शनै: शनै: मुग़लकालीन मुद्रा की छाया हमें मेवाड़ और राजस्थान के तत्कालीन अन्यत्र राज्यों में दिखलाई देती है। सांगा कालीन (1509-1528 ई.) प्राप्त तीन मुद्राएं ताम्र तथा तीन पीतल की है। इनके उर्ध्वपटल पर नागरी अभिलेख तथा नागरी अंकों में तिथि तथा अधोपटल पर ‘सुल्तान विन सुल्तान’ का अभिलेख उत्कीर्ण किया हुआ मिलता है। प्रतीक चिह्नों में स्वस्तिक, सूर्य और चन्द्र प्रदर्शित किये गए हैं। इस प्रकार सांगा के उत्तराधिकारियों राणा रत्नसिंह द्वितीय, राणा विक्रमादित्य, बनवीर आदि की मुद्राओं के संलग्न मुग़ल-मुद्राओं का प्रचलन भी मेवाड़ में रहा था जो टका, रुप्य आदि कहलाती थी।

मूर्ति कला

250px Albert Hall Museum Jaipur - राजस्थान

एल्बर्ट हॉल संग्रहालय, जयपुर




राजस्थान में काले, सफ़ेद, भूरे तथा हल्के सलेटी, हरे, गुलाबी पत्थर से बनी मूर्तियों के अतिरिक्त पीतल या धातु की मूर्तियां भी प्राप्त होती हैं। गंगा नगर ज़िले के कालीबंगा तथा उदयपुर के निकट आहड़-सभ्यता की खुदाई में पकी हुई मिट्टी से बनाई हुई खिलौनाकृति की मूर्तियां भी मिलती हैं। किन्तु आदिकाल से शास्रोक्य मूर्ति कला की दृष्टि से ईसा पूर्व पहली से दूसरी शताब्दी के मध्य निर्मित जयपुर के लालसोट नाम स्थान पर ‘बनज़ारे की छतरी’ नाम से प्रसिद्ध चार वेदिका स्तम्भ मूर्तियों का लक्षण द्रष्टत्य है। पदमक के धर्मचक्र, मृग, मत्स, आदि के अंकन मरहुत तथा अमरावती की कला के समानुरुप हैं। राजस्थान में गुप्त शासकों के प्रभावस्वरूप गुप्त शैली में निर्मित मूर्तियों, आभानेरी, कामवन तथा कोटा में कई स्थलों पर उपलब्ध हुई हैं।

धातु मूर्ति कला

धातु मूर्ति कला को भी राजस्थान में प्रयाप्त प्रश्रय मिला। पूर्व मध्य, मध्य तथा उत्तरमध्य काल में जैन मूर्तियों का यहाँ बहुतायत में निर्माण हुआ। सिरोही ज़िले में वसूतगढ़ पिण्डवाड़ा नामक स्थान पर कई धातु प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं जिसमें शारदा की मूर्ति शिल्प की दृष्टि से द्रस्टव्य है। भरतपुर, जैसलमेर, उदयपुर के ज़िले इस तरह के उदाहरण से परिपूर्ण है। अठाहरवीं शताब्दी से मूर्तिकला ने शनै: शनै: एक उद्योग का रूप लेना शुरू कर दिया था। अत: इनमें कलात्मक शैलियों के स्थान पर व्यावसायीकृत स्वरूप झलकने लगा। इसी काल में चित्रकला के प्रति लोगों का रुझान दिखलाई देता है।

250px Gadisagar Lake Jaisalmer 2 - राजस्थान


गडसीसर सरोवर, जैसलमेर

चित्रकला

राजस्थान में यों तो अति प्राचीन काल से चित्रकला के प्रति लोगों में रुचि रही थी। मुकन्दरा की पहाड़ियों व अरावली पर्वत श्रेणियों में कुछ शैल चित्रों की खोज इसका प्रमाण है। कोटा के दक्षिण में चम्बल के किनारे, माधोपुर की चट्टानों से, आलनिया नदी से प्राप्त शैल चित्रों का जो ब्योरा मिलता है उससे लगता है कि यह चित्र बगैर किसी प्रशिक्षण के मानव द्वारा वातावरण प्रभावित, स्वाभाविक इच्छा से बनाए गए थे। इनमें मानव एवं जावनरों की आकृतियों का आधिक्य है। कुछ चित्र शिकार के कुछ यन्त्र-तन्त्र के रूप में ज्यामितिक आकार के लिए पूजा और टोना टोटका की दृष्टि से अंकित हैं। कोटा के जलवाड़ा गाँव के पास विलास नदी के कन्या दाह ताल से बैला, हाथी, घोड़ा सहित घुड़सवार एवं हाथी सवार के चित्र मिलें हैं। यह चित्र उस आदिम परम्परा को प्रकट करते हैं आज भी राजस्थान में ‘मांडला’ नामक लोक कला के रूप में घर की दीवारों तथा आंगन में बने हुए देखे जा सकते हैं। इस प्रकार इनमें आदिम लोक कला के दर्शन सहित तत्कालीन मानव की आन्तरिक भावनाओं की अभिव्यक्ति सहज प्राप्त होती है।

250px Jaisalmer Desert 2 - राजस्थान

ऊँट सवारी, जैसलमेर

कालीबंगा और आहर की खुदाई से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों पर किया गया अलंकरण भी प्राचीनतम मानव की लोक कला का परिचय प्रदान करता है। ज्यामितिक आकारों में चौकोर, गोल, जालीदाल, घुमावदार, त्रिकोण तथा समानान्तर रेखाओं के अतिरिक्त काली व सफ़ेद रेखाओं से फूल-पत्ती, पक्षी, खजूर, चौपड़ आदि का चित्रण बर्तनों पर पाया जाता है। उत्खनित-सभ्यता के पश्चात् मिट्टी पर किए जाने वाले लोक अलंकरण कुम्भकारों की कला में निरंतर प्राप्त होते रहते हैं किन्तु चित्रकला का चिह्न ग्याहरवी शदी के पूर्व नहीं हुआ है। सर्वप्रथम वि.सं. 1117/1080 ई. के दो सचित्र ग्रंथ जैसलमेर के जैन भण्डार से प्राप्त होते हैं। औघनिर्युक्ति और दसवैकालिक सूत्रचूर्णी नामक यह हस्तलिखित ग्रन्थ जैन दर्शन से सम्बन्धित है। इसी प्रकार ताड़ एवं भोज पत्र के ग्रंथों को सुरक्षित रखने के लिए बनाये गए लकड़ी के पुस्तक आवरण पर की गई चित्रकारी भी हमें तत्कालीन काल के दृष्टान्त प्रदान करती है।

धातु एवं काष्ठ कला

इसके अन्तर्गत तोप, बन्दूक, तलवार, म्यान, छुरी, कटारी, आदि अस्त्र-शस्त्र भी इतिहास के स्रोत हैं। इनकी बनावट इन पर की गई खुदाई की कला के साथ-साथ इन पर प्राप्त सन् एवं अभिलेख हमें राजनीतिक सूचनाएँ प्रदान करते हैं। ऐसी ही तोप का उदाहरण हमें जोधपुर दुर्ग में देखने को मिला जबकि राजस्थान के संग्रहालयों में अभिलेख वाली कई तलवारें प्रदर्शनार्थ भी रखी हुई हैं। पालकी, काठियाँ, बैलगाड़ी, रथ, लकड़ी की टेबल, कुर्सियाँ, कलमदान, सन्दूक आदि भी मनुष्य की अभिवृत्तियों का दिग्दर्शन कराने के साथ तत्कालीन कलाकारों के श्रम और दशाओं का ब्यौरा प्रस्तुत करने में हमारे लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत सामग्री है।

लोककला

300px Kathputli Jaisalmer 1 - राजस्थान

जैसलमेर के बाज़ार में कठपुतलियाँ

अन्तत: लोककला के अन्तर्गत वाद्य यंत्र, लोक संगीत और नाट्य का हवाला देना भी आवश्यक है। यह सभी सांस्कृतिक इतिहास की अमूल्य धरोहरें हैं जो इतिहास का अमूल्य अंग हैं। बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध तक राजस्थान में लोगों का मनोरंजन का साधन लोक नाट्य व नृत्य रहे थे। रास-लीला जैसे नाट्यों के अतिरिक्त प्रदेश में ख्याल, रम्मत, रासधारी, नृत्य, भवाई, ढाला-मारु, तुर्रा-कलंगी या माच तथा आदिवासी गवरी या गौरी नृत्य नाट्य, घूमर, अग्नि नृत्य, कोटा का चकरी नृत्य, डीडवाणा पोकरण के तेराताली नृत्य, मारवाड़ की कच्ची घोड़ी का नृत्य, पाबूजी की फड़ तथा कठपुतली प्रदर्शन के नाम उल्लेखनीय हैं। पाबूजी की फड़ चित्रांकित पर्दे के सहारे प्रदर्शनात्मक विधि द्वारा गाया जाने वाला गेय-नाट्य है। लोक वाद्यों में नगाड़ा ढ़ोल-ढ़ोलक, मादल, रावण हत्था, पूंगी, बसली, सारंगी, तदूरा, तासा, थाली, झाँझ पत्तर तथा खड़ताल आदि हैं।

कठपुतली

राजस्थान की कठपुतली काफ़ी प्रसिद्ध है। यहाँ धागे से बांधकर कठपुतली नचाई जाती है। लकड़ी और कपड़े से बनीं और मध्यकालीन राजस्थानी पोशाक पहने इन कठपुतलियों द्वारा इतिहास के प्रेम प्रसंग दर्शाए जाते हैं। अमरसिंह राठौर का चरित्र काफ़ी लोकप्रिय है, क्योंकि इसमें युद्ध और नृत्य दिखाने की भरपूर संभावनाएँ हैं। इसके साथ एक सीटी-जिसे बोली कहते हैं- जिसे तेज धुन बजाई जाती है।

पर्यटन स्थल




राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके में भ्रमण करना है तो ऊँट सफारी से क़तई अछूते न रहें। रेगिस्तान के इस जहाज पर हिचकोले ले-लेकर की गई यात्रा आप क़तई भुला नहीं पाएंगे क्योंकि रेगिस्तान का मजा उसके महारथी की पीठ पर बैठकर कुछ अलग ही आता है। राज्य में पर्यटन के प्रमुख केंद्र हैं:

  • जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर, माउंट आबू, अजमेर, जैसलमेर, पाली, चित्तौड़गढ़
  • अलवर में सरिस्का बाघ विहार
  • भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी विहार, डीग महल
  • कौलवी राजस्थान के झालावाड़ ज़िले के निकट एक ग्राम के रूप में विद्यमान है,जो बौद्ध विहार के लिए प्रसिद्ध है।
  • केशवरायपाटन यह प्राचीन नगर राजस्थान के कोटा शहर से 22 किमी. दूर चम्बल नदी के तट पर अवस्थित है।
Magnify clip - राजस्थानdownload - राजस्थान

हिमालय से माउंट आबू का विहंगम दृश्य

अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमे फेसबुक (Facebook) पर ज्वाइन करे Click Now




राजस्थान के सभी दुर्ग 




Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

नवीन जिलों का गठन (राजस्थान) | Formation Of New Districts Rajasthan राजस्थान में स्त्री के आभूषण (women’s jewelery in rajasthan) Best Places to visit in Rajasthan (राजस्थान में घूमने के लिए बेहतरीन जगह) हिमाचल प्रदेश में घूमने की जगह {places to visit in himachal pradesh} उत्तराखंड में घूमने की जगह (places to visit in uttarakhand) भारत में राष्ट्रीय राजमार्ग की सूची Human heart (मनुष्य हृदय) लीवर खराब होने के लक्षण (symptoms of liver damage) दौड़ने के लिए कुछ टिप्स विश्व का सबसे छोटा महासागर हिंदी नोट्स राजस्थान के राज्यपालों की सूची Biology MCQ in Hindi जीव विज्ञान नोट्स हिंदी में कक्षा 12 वीं कक्षा 12 जीव विज्ञान वस्तुनिष्ठ प्रश्न हिंदी में अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण Class 12 Chemistry MCQ in Hindi Biology MCQ in Hindi जीव विज्ञान नोट्स हिंदी में कक्षा 12 वीं भारत देश के बारे में सामान्य जानकारी राजस्थान की खारे पानी की झील राजस्थान का एकीकरण राजस्थान में मीठे पानी की झीलें