राजस्थान दक्षिणी पूर्वी पठार
राजस्थान दक्षिणी पूर्वी पठार:-
यह मालवा के पठार का ही एक भाग है तथा चम्बल नदी के सहारे पूर्वी भाग में विस्तृत है। पठारी क्षेत्र राज्य का लगभग 9.3% भाग आता है लेकिन दक्षिण पूर्वी पठारी प्रदेश 7% के लगभग ही है। जिसमे 11% जनसंख्या निवास करती है।
- क्षेत्र – कोटा,बूंदी,झालावाड़,बांरा तथा बांसवाड़ा,चित्तोडगढ व भीलवाड़ा के कुछ क्षेत्र।
- वर्षा – 80 सेमी से 120 सेमी। राज्य का सर्वाधिक वार्षिक वर्षा वाला क्षेत्र।
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- मिटटी – काली उपजाऊ मिटटी, जिसका निर्माण प्रारम्भिक ज्वालामुखी चट्टानों से हुआ है। इसके अलावा लाल ओर कछारी मिटटी भी पाई जाती है। धरातल पथरीला व चट्टानी है।
- जलवायु – अति आर्द्र प्रदेश।
- फसले – कपास, गन्ना, अफीम, तम्बाकू, धनिया, मेथी अधिक मात्रा में।
- वनस्पति – लम्बी घास, झाड़ियाँ, बांस, खेर, गूलर, सालर, धोक, ढाक, सागवान आदि।
- यह सम्पूर्ण प्रदेश चम्बल और उसकी सहायक काली सिंध, परवन और पार्वती नदियों द्वारा प्रवाहित है। इसका ढाल दक्षिण से उत्तर पूर्व की ओर है। यह पठारी भाग अरावली ओर विध्याचल पर्वत के बीच संक्रांति प्रदेश (TRANSITIONAL BELT) है।
- डांग क्षेत्र – चम्बल बेसिन में स्थित खड्ड एवं उबड़-खाबड़ भूमि युक्त अनुपजाऊ क्षेत्र। डाकुओ का आश्रय स्थल। करोली, सवाई माधोपुर।
- खादर – चम्बल बेसिन में 5 से 30 मी. गहरी खड्डे युक्त बीहड़ भूमि को स्थानीय भाषा में ‘खादर’ कहते है।
- सापेक्षिक दृष्टी से राजस्थान का दक्षिणी पूर्वी पठारी प्रदेश अस्पष्ट अधर प्रवाह का क्षेत्र के अंतर्गत है।
- दक्षिणी पूर्वी राजस्थान के दक्कन लावा पठार क्षेत्र में भेंसरोडगढ़ (चित्तोडगढ) से बिजोलिया (भीलवाड़ा) ताल का भूभाग उपरमाल नाम से जाना जाता है।
- विध्यन कगार भूमि व दक्कन लावा पठार इसी भौतिक क्षेत्र में आते है
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