Reproductive Health
WHO के अनुसार जनन स्वास्थ्य का अर्थ है “जनन के सभी पहलुओं जैसे शारीरिक, भावात्मक, व्यवहारात्मक तथा सामाजिक आदि की सकुशलता स्थिति को ही जनन स्वास्थ्य कहते है “।
7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस तथा 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है।
जनन स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ
निम्नलिखित कारणों से जनन स्वास्थ समस्या उत्पन्न होती है:-
- बाल विवाह
- कम उम्र मे बार बार गर्भधारण
- प्रसर्वोत्तर देखभाल की कमी |
- जननांगो की अस्वच्छता के कारण |
- शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर का अधिक होना ।
- ऋतुस्ताव सम्बन्धी समस्याओं की समझ की कमी।
- जन्म नियन्त्रण उपायों जैसे गर्भ निरोधको सम्बन्धी अज्ञानता |
- यौन संचारित रोगो से सम्बन्धित जानकारी का अभाव तथा उपलब्ध भ्रांतियाँ |
कार्यनीतियाँ
- परिवार नियोजन कार्यक्रम |
- राष्ट्रीय जनसंख्या नीति।
- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM)।
- शहरी परिवार कल्याण योजनाएँ।
- व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम।
- जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम।
परिवार नियोजन कार्यक्रम
- भारत मे परिवार नियोजन का प्रारम्भ सन् 1951 में हुआ।
- जनन स्वास्थ्य के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु यह सर्वप्रथम व बड़ा प्रयास था।
- इस कार्यक्रम को प्रारम्भ कर भारत विश्व का पहला ऐसा देश बन गया जिसने राष्ट्रीय स्तर पर सम्पूर्ण जनन स्वास्थ्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस कार्यक्रम को प्रारम्भ किया।
- परिवार नियोजन का एकमात्र उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण था।
- सन् 1977-78 के पश्चात् ‘परिवार नियोजन’ का बदलकर ‘परिवार कल्याण कार्यक्रम ‘ कर दिया गया।
जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम
उद्देश्य–
- शिशु व गाँ के स्वास्थ्य की देखभाल।
- शिशु मृत्यु दर व मातृ मृत्यु दर मे कमी
- जनसंख्या स्थिरता / नियंत्रण।
जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम की कार्यनीतियाँ (Strategies of Reproductive and child Health Care Programme)
- विद्यालयो मे जनन अंगो से सम्बन्धित जानकारी व यौन शिक्षा को बढ़ावा देना, ताकि युवाओं को सही जानकारी मिल सके ।
- श्रव्य दृश्य या आडियो विजुअल माध्यमो तथा मुद्रित प्रचार सामग्री की सहायता से सरकारी व गैर सरकारी संगठनों द्वारा जनता के बीच जनन सम्बन्धी पहुलुओ के प्रति जागरूकता के उपाय किए जा रहे है।
- जनमानस को अनियन्त्रित जनसंख्या वृद्धि से होने वाली समस्याओं से अवगत कराना ।
- विवाहित जननक्षम जोडो तथा विवाह योग्य या इस आयु वर्ग के अन्य सभी लोगों को सभी उपलब्ध गर्भ निरोधक विकल्पों के बारे मे जानकारी तथा गर्भवती माँ की देखभाल, प्रसव के बाद माँ और शिशु की उचित देखभाल तथा स्तनपान के महत्व सम्बन्धी जानकारी उपलब्ध कराना ।
- आर. सी. एच की कार्ययोजनाओं में लिंग परीक्षण जैसे उल्लेधन या एम्बियोसेटेसिस आदि पर व्यापक प्रतिबन्ध शामिल हैं इत्यादि।
उल्वनेधन (Amniocentisis)
- भ्रूण के चारो ओर एक भ्रूणकला एम्नियोन पाई जाती है तथा भ्रूण इस भ्रूणकला से ढकी व तरल से भरी एक गुहा में स्थित होता है। इस तरल मे कुछ भ्रूणीय कोशिकाएँ भी पाई जाती है।
- उल्वबेधन विधि मे एक सिरीज की मदद से तरल की कुछ मात्रा एम्नियोटिक गुहा से निकाल ली जाती है।
- इस तरल मे निलम्बित कोशिकाओं के गुणसूत्रों की जाँच से भ्रूण की किसी विकृति का पता लगाया जाता है। चूंकि यह जाँच गुणसूत्रो पर आधारित है अत: इससे भ्रूण के लिंग का पता भी लग जाता है।
- इस तकनीक का भ्रूणीय लिंग की जाँच तथा कन्या भ्रूण हत्या में प्रयोग किया गया |
- अतः अब इस विधि पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह परीक्षण प्राय: गर्भकाल के 16 वे से 10 वे सप्ताह में किया जाता है।
जनन व बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की उपलब्धियाँ
- शिशु मृत्युदर व मातृ मृत्यु दर में कमी हुई है।
- लोगो ने छोटे परिवार को अपनाना प्रारम्भ किया ।
- चिकित्सा सहायता प्राप्त प्रसवों की संख्या में वृद्धि हुई है।
- बध्य दम्पत्तियों की जाँच तथा उनके सन्तान पैदा करने के अवसर बढ़े है।
- यौन सम्बन्धित रोगों के बारे में लोगों की जागरुकता बढ़ी है।
जनसंख्या विस्फोट
परिभाषा:- अपेक्षाकृत कम समय में हुई जनसंख्या में तीव्र वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट कहते है।
हमारे देश की जनसंख्या स्वतंत्रता के समय लगभग 40 करोड थी तथा यह बढ़कर सन् 1981 में लगभग 70 करोड हो गई और 2011 में हुई जनगणना के अनुसार 2011 में भारत की जनसंख्या 121 करोड हो गई ।
विश्व भर मे भारत चीन के बाद जनसंख्या में दूसरे स्थान पर है ।
जनसंख्या विस्फोट के कारण
जनसंख्या विस्फोट के कारण निम्नलिखित है।
- मृत्युदर मे आयी निरंतर कमी ।
- मातृ मृत्युदर मे कमी ।
- शिशु मृत्युदर मे कमी ।
- जनन आयु वाले व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि।
जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणाम
- शिक्षा व्यवस्था की समस्या
- रोजगार की समस्या
- निर्धनता
- खाद्यान्न आपूर्ति की समस्या
- स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवा समस्या
जनसंख्या वृद्धि नियन्त्रण के उपाय
- जनसंख्या नियन्त्रण का सर्वाधिक प्रभावी तरीका गर्भ निरोधको का प्रचार प्रसार ।
- छोटे परिवार वाले दम्पतियों को प्रोत्साहन देना ।
- शिक्षा व्यवस्था
- परिवार कल्याण सम्बन्धि कार्यक्रम को बढ़ावा देना ।
गर्भ निरोधक
एक उत्तम गर्भ निरोधक मे निम्नलिखित गुण होने चाहिए।
- यह पूर्ण रूप से कारगर होना चाहिए ।
- यह प्रयोग मे सरल होना चाहिए।
- इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होना चाहिए ।
- यह आसानी से उपलब्ध होने वाला होना चाहिए।
गर्भ निरोधको के प्रकार
वर्तमान में बाजार में उपलब्ध गर्भनिरोधको को निम्न श्रेणियो मे वंगीकृत किया गया है।
- प्राकृतिक विधियाँ (Natural Methods)
- रोध रोधक (Barrier)
- अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices, IUD)
- गोलिया (Pills)
- शल्य क्रिया विधिया / बन्ध्याकरण (Surgical Methods of Sterilisation)
प्राकृतिक विधियाँ
यह प्रक्रिया अंड तथा शुक्राणु के मिलने से रोकने के सिद्धांत पर कार्य करती है। इसमें निषेचन को रोका जाता है।
यह निम्न तरीको से की जाती है।
- बाहरी रस्खलन विधि:- इस प्रक्रिया मे मैथुन के दौरान पुरुष वीर्य रस्खलन से पहले ही शीश्न को मादा के शरीर से बाहर निकाल लेता है।
- आवधिक संयम:– इसमे एक दम्पत्ति मासिक चक्र के 10 वे से 17 वे दिन के बीच मे मैथुन नहीं करते क्योंकि इस दौरान गर्भधारण के बहुत अधिक अवसर होते है ।
- स्तनपान अवस्था चक्र:– प्रसव पश्चात माँ जब तक शिशु को स्तनपान कराती है तब तक ऋतुस्ताव चक्र या अण्डोत्सर्ग आरम्भ नहीं होता। यह विधि लगभग 6 माह तक कारगर मानी गयी है, प्रसव पश्चात।
रोधक विधियाँ
इस विधि में किसी भौतिक अवरोधक का प्रयोग करके नर तथा मादा युग्मंक को मिलने से रोक दिया जाता है।
जैसे:- Condom Cerical caps, Diaphram आदि।
अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ
अन्तः गर्भाशयी युक्ति को गर्भाशय मे जोड़ा जाता है, जो किसी प्रशिक्षित डाक्टर या नर्स के द्वारा लगवाया जाता है।
यह युक्ति निम्नलिखित प्रकार की होती है।
- औषधिरहित अंत: गर्भाशय युक्तियाँ
- ताँबा मोचक IUN युक्तियाँ
- हॉर्मोन मोचक IUN
गोलिया
गर्भ निरोधक गोलियाँ:-
यह एक विशेष प्रकार की गोलियाँ होती है जिसमें एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरान का संगठन होता है। यह गोलियाँ प्रायः मादा द्वारा 21 दिनों तक लगातार ली जाती है तथा शेष 7 दिनों तक अंतराल रखा जाता है। इन गोलियो को लगातार बिना भूले रोज ही खाना होता है। यह गोलियाँ एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन को शरीर में बढ़ा देती है जिससे आर्तव चक्र प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है।
उदाहरण → सहेली, माला-डी |
शल्यक्रिया विधि
यह विधि उन लोगो मे करायी जाती है, जो भविष्य में बच्चा नहीं चाहते है। इस विधि को बन्ध्याकरण भी कहते हैं। यह विधि परिवार नियोजन की स्थायी विधि है।
बन्ध्याकरण प्रक्रिया को पुरुषों में शुक्रवाहक उच्छेदन तथा महिलाओं के लिए डिम्बवाहिनी नलिका उच्छेदन कहा जाता है।
सगर्भता का चिकित्सीय समापन (M.T.P)
गर्भावस्था पूरी होने से पहले ही दम्पत्ति की इच्छा से गर्भ को खत्म करने की प्रक्रिया को चिकित्सीय सगर्भता समापन या प्रेरित गर्भपात कहा जाता है । सगर्भता चिकित्सीय समापन को भारत सरकार ने विशेष परिस्थितियों में ही वैध माना है, जैसे-
- स्त्री की इच्छा से सगर्भता।
- गर्भ निरोधक साधनों के असफल होने के कारण सगर्भता।
- अनचाहा गर्भधारण।
- बलात्कार।
भारत सरकार ने MTP के दुरुपयोग को रोकने के लिए सन् 1971 में MTP को कानूनी स्वीकृति प्रदान कर दी थी। इसी कारण लिंग परीक्षण पर रोक लगा दिया गया और कन्या भ्रूण हत्या पर भी नियम बनाया |
प्रथम तिमाही तक गर्भपात कराना सुरक्षित रहता है।
यौन संचारित या लैंगिक संचारित रोग
वे रोग जो सम्भोग के समय यौन सम्बन्धो द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचारित होते हैं, उन्हें यौन संचारित या लैंगिक संचारित रोग कहा जाता है। इन्हें यौन रोग या गुप्त रोग भी कहा जाता है।
जीवाणु द्वारा (STD):-
(1) सूजाक: यह रोग जीवाणुओं द्वारा होता है। सूजाक रोग नाइसेरिया गोनोरिया नामक जीवाणु से होता है ।
लक्षण:- मूत्र त्याग के समय जलन |
(2) सिफलिस :– सिफलिस यौन संचारित रोग होता है। सिफलिस रोग ट्रेपोनेमा पेलीडम जीवाणु द्वारा होता है।
लक्षण:- जननांगो पर घाव होना ।
विषाणु द्वारा (STD) :-
(1) एड्स :- एड्स विषाणुओ द्वारा होता है। एड्स रोग प्रतिरक्षा तंत्र को कम कर देता है।
एड्स HIV नामक विषाणु से होता है।
लक्षण = निरन्तर ज्वर, मांसपेशियो मे दर्द ।
(2) हैपेटाइटिस – B:– यह भी एक विषाणु जनित रोग है।
यह रोग HBV नामक विषाणु द्वारा होता है।
लक्षण:- पेट दर्द, जी मचलना आदि।
(3) जेनीटल वार्ट :– यह रोग Human popiloma virus द्वारा होता है।
लक्षण→ पुरुषों के शिश्न व स्त्रियों के लेविया योनि व गर्भाशय मे मस्से बन जाना |
बन्ध्यता (Infertility)
यदि कोई दम्पत्ति गर्भ धारण नहीं कर पाता है, तो उसे बन्ध्यता या बाँझपन कहा जाता है।
कुछ विशेष तकनीकी जैसे सहायक जनक प्रौद्योगिकीयाँ द्वारा बन्ध्यता को सही किया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित विधियो का उपयोग किया जाता है-
(1) परखनली शिशु (In Vitro fertilisation)- इस विधि मे शुक्राणु और अण्डाणु के मध्य निषेचन की क्रिया शरीर के भीतर जैसी ही परिस्थितियों में ही शरीर से बाहर Test Tube में करायी जाती है।
इस विधि में पत्नी या दाता स्त्री के अण्डाणु तथा पति व दाता पुरुष के शुक्राणु को प्रयोगशाला में ले जाकर निषेचन कराया जाता है, जिससे जाइगोट या युग्मनज का स्थानांतरण पत्नी में कर दिया जाता है।
(2) युग्मक अन्त: फैलोपियन स्थानांतरण (GIFT)– यह उन महिलाओं के लिए अधिक उपयोगी होता है, जिनमें अण्डाणु का निर्माण नहीं होता है, लेकिन निषेचन तथा भ्रूण के बदलाव में सक्षम होती है।
इसमें दाता स्त्री के अण्डाणु को स्त्री के अण्डवाहिनी मे स्थानांतरित कर दिया जाता है।
(3) अन्तः कोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण – इसे शुक्राणु को सीधे अण्डाणु के अन्दर प्रवेश करा दिया जाता है।
(4) कृत्रिम वीर्यसेचन– यह विधि उन नरों में उपयोग की जाती है, जो प्राकृतिक रूप से स्त्री की योनि मे वीर्य नहीं पहुँचा पाते या जिनके वीर्य में शुक्राणु नहीं होते।
इस विधि में पति या स्वस्थ दाता के वीर्य को स्त्री के योनि या गर्भाशय में प्रवेश करा दिया जाता है।
(5) सरोगेट माँ- कुछ स्त्रीयो मे अण्डाणु का निषेचन होता है, किन्तु कुछ कारण वश भ्रूण का परिवर्धन नहीं हो पाता तो उस अवस्था में स्त्री के अण्डाणु व उसके पति के शुक्राणु का कृत्रिम रूप से निषेचन कराया जाता है तथा भ्रूण को 32 कोशिकीय अवस्था में किसी दूसरी इच्छुक स्त्री के गर्भाशय मे रोपित किया जाता है। इस स्त्री को सरोगेट माँ कहते है।
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