राजस्थान की जनजातियाँ व उनकी संस्कृति

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राजस्थान की जनजातियाँ व उनकी संस्कृति




  • राजस्थान में सर्वाधिक जनसँख्या मीणा जनजाति है | इसके पश्चात क्रमश: भील, गरासिया और शहरिया है | राजस्थान में सबसे प्राचीन जनजाति भील है |
  • भारत सरकार में आदिम जनजाति समूह की सूची में शामिल राजस्थान की एकमात्र जनजाति की सूची मेंशामिल जनजाति शहरिया है | राजस्थान की जनजातियों की सर्वाधिक संख्या उदयपुर में और न्यूनतम बीकानेर है |
  • राजस्थान में जनजातियों की संख्या का सर्वाधिक अनुपात बॉसवाडा और न्यूनतम नागौर में है |
  • राज्य की कुल जनसँख्या में जनजाति का अनुपात 13.5% है |

भील-जनजाति

  • वनपुत्र- कर्नल जेम्स टॉड ने भीलो को वनपुत्र कहा है |
  • फाईरे-फाईरे- भीलो का रण घोष |
  • कू- भीलों के घर को कू कहा जाता है |
  • फला- भीलों के घरो के छोटा समूह फला और बड़ा समूह पाल कहलाता है |
  • गमेती – भीलों के गाँवों के मुखियां को गमेती कहा जाता है |
  • मावडी – भील महुआ पेड़ से कच्ची शराब बनाकर पीते है |
  • कायटा – भीलो द्वारा किया जाने वाला मृत्यु भोज कायटा कहलाता है |
  • टोटम – भीलों के कुलदेवता को टोटम कहा जाता है |
  • खोयतु- भील पुरुष कमर में खोयतु या डेपाडा पहनते है और ऊपर अंगरखी या बंड़ी पहनते है तथा सिर पर पोतिया बांधते है |
  • फालु- भील पुरुष का अंगोछा फालु कहलाता है |
  • भराडी – इस लोकदेवी का चित्र विवाह के समय दीवार पर बनाया जाता है |
  • चीरा बावसी – भीलों के झोपड़े हो कहते है |
  • छेड़ा फाड़ना – पति द्वारा पत्नी की ओडनी का पल्लू फाड़कर तलाक देना |
  • टापरा- भीलों के झोपड़े को कहते है |
  • डागला – भीलों का मचाननुमा छपरा, जिसके ऊपर अनाज या चारा सुखाते है |
  • ढालिया- भीलों के घरों के बहार का बरामदा |
  • चिमाता – पहाड़ी भागों में वनों को जलाकर की जाने वाली कृषि |
  • दजिया- मैदानी भागों में वनों की जलाकर की जाने वाली कृषि |
  • लोकाई – आदिवासियों का मृत्युभोज |
  • हाथीवेडो – पीपल या बांस के पेड़ को साक्षी मानकर विवाह करने की भीलों में प्रचलित प्रथा |
  • भगोरिया – भीलों का त्योहार, इस अवसर पर युवक जीवन साथी चुनते है |
  • पाखरिया – सैनिक के घोड़े को मारने वाला भील |
  • डाम देना – बीमार व्यक्ति को गर्म घातु से दागकर इलाज करना |
  • हमसीढो – भील स्त्री-पुरुषो द्वारा गाये जाने वाला सामूहिक गीत |

मीणा जनजाति

  • अर्थ – मीणा का शाब्दिक अर्थ है – मत्स्य या मीन (मछली) है |
  • मीणा पुराण – यह ग्रन्थ मुनि मगनसागर ने लिखा |
  • लीला-मोरिया संस्कार – मीणाओं में प्रचलित विवाह से संबंधित संस्कार |
  • जयपुर- मीणा जनजाति की सर्वाधिक जनसँख्या जयपुर जिले में है |
  • बुझ देवता – मीणाओं के कुल देवता |
  • झगड़ा राशी – युवती को भगाकर विवाह करने वाले पुरुष से पंचायत द्वारा वसूला गया मुआवजा |
  • बड़ालिया – माता-पिता द्वारा तय विवाह संबंधो में मध्यस्थता करने वाले फूफा या मामा को कहते है |
  • किकमारी – संकट के समय मुँह पर हथेली लगाते हुए जोर से चिल्लाना |
  • गेली- मीणा युवको के गेर खेलने की लकड़ी को कहते है |

गरासिया जनजाति

  • तीसरा स्थान – राज्य में तीसरी सबसे बड़ी जनसँख्या वाली जनजाति है |
  • आबूरोड क्षेत्र – गरासियों का मू स्थान है | गरासिये सिरोही व उदयपुर में रहते है |
  • ताणना विवाह – गणगौर मेले से लड़का लडकी को भगाकर ले जाता है | पत्पश्चात पंचों द्वारा निर्धारित दापा वर पक्ष चुकाता है |
  • मौरिबंधिया विवाह – ब्राहमण की उपस्थिति में चंवरी में फेरे लेकर किया जाने वाला विवाह |
  • खेवणा (नाता) विवाह – विवाहित स्त्री किसी पुरुष के साथ भाग जाती है और प्रेमी उसके पति को दण्ड राशी देता है |
  • पहरावना विवाह – ब्राह्मण की अनुपस्थिति की किया गया विवाह |
  • छेड़ा छुट- पति द्वारा दण्ड चुकाकर पत्नी की तलाक देने की प्रथा |
  • जीवित नाता – कोई पुरुष किसी भी स्त्री के पति को राशी देकर उससे विवाह कर सकता है |
  • घेर – गरासिया के घर को घेर और घरों के समूह को फालिया कहते है |
  • सहलोत- गरासिया के गाँव का मुखिया |
  • मोर- मोर को आदर्श पक्षी मानते है और सफेद पशुओं को पवित्र मानते है |
  • आखातीज- गरासिया ने नववश की शुरुआत इसी दिन से होती है |
  • सोहरी- गरासिया के अनाज भण्डार की कोठी |
  • हुरे- मृत गरासियों के स्मारक |
  • कान्धिया- मृत्यु के बाहरवें दिन रिश्तेदारों में मांस व मक्के की दलिया खिलाना |
  • भाखर बावसी- गरासियों की लोकप्रिय देवता |
  • मनखारों मेलों – आबुरोड के सियावा में गरासियों का सबसे बड़ा मेला |
  • झुलकी – गरासिया स्त्री व पुरुषो का कमीज जैसा वस्त्र |
  • हारी भावरी- गरासियों में प्रचलित सामूहिक कृषि पद्दति |




सहरिया जनजाति

  • निवास- सहरिया जनजाति बांरा जिले की शाहबाद व किशनगंज तहसीलों में रहती है |
  • धारी संस्कार- मृत्यु के तीसरे दिन अस्थियों व राख एकत्र कर पुर्जन्म का शकुन देखकर सीताबाडी में बाणगंगा में अस्थि विसर्जन करना |
  • सहरियों का कुंभ- सीताबाड़ी के मेले को कहते है |
  • कोतवाल – सहरियों के मुखिया को कहते है | इसकी बस्ती सहराना एवं गाँव शहरोल कहे जाते है |
  • टापरी – सहरियों का घास फूस का घर |
  • गोपना – जंगलों में पेड़ों पे सहरियों की मचाननुमा झोंपड़ी को गोपना/कोरुआ/टोपा कहते है |
  • कोडिया- सहरिया पुरुष कमर में पंछा व ऊपर सलूका पहनते है और सिर पर खपटा बांधते है |
  • रेजा- सहरिया स्त्रियाँ का विशेष वस्त्र |
  • गोदना- सहरिया महिलांए गोदना गुदवाती है किन्तु पुरुषों के लिए वर्जित है |
  • लेंगी- सहरिगों के गेर नृत्य को लेंगी कहते है | इसमें स्त्री-पुरुष साथ में नृत्य नहीं करते है |

डामोर जनजाति

  • निवास- अधिकाँश डामोर डूंगरपुर की सीमलवाडा पंचायत समिति क्षेत्र में निवास करते है |
  • मुखी- डामोर जनजाति का मुखिया
  • गहने- डामोर पुरुष भी स्त्रियों की भांति गहने पहनते है |
  • झेला बावसी का मेला – गुजरात का यह मेला दामोरों का मुख्य मेला है |
  • व्यवसाय- डामोरो का मुख्य व्यवसाय कृषि है |
  • एकाकी परिवार- डामोर जनजाति में संयुक्त परिवार नहीं होते है |

सांसी जनजाति

  • खानाबदोश – सांसी भरतपुर जिले की घुमक्कड़ जाति है |
  • विधवा विवाह- इसमें विधवा विवाह प्रतिबंधित है और अवैध सम्बन्धो के लिए कठोर दण्ड दिया जाता है |
  • खानपान- सांसी लोमड़ी व सांड का मांस और शाराब पंसद करते है |
  • कुकडी की रस्म- विवाह के अवसर पर सांसी युवती द्वारा दी गई चारित्रिक परीक्षा |

कथौडी जनजाति –

  • निवास- मुख्यत: हाडौती क्षेत्र में है |
  • भोपा- कथौडी समुदाय का मुखिया |
  • खोलरा- इनका घास-फूस के बना झोपड़ा |
  • फड़का- कथौडी महिलाओं की मराठी अंदाज की साडी |
  • प्रिय पेय- शराब इनका पेय पदार्थ है और स्त्रियाँ भी पुरुषो के साथ शराब पीती है |
  • आराध्य देव – कंसारी माता , भारी माता, डूंगर देव, वाध्यदेव, गागदेव |
  • वाध्य यन्त्र- तारपी, घोरिया, पखरी, भालीसर

कंजर जनजाति

  • निवास- मुख्तय: हाडौती क्षेत्र में है |
  • पटेल- कंजर जनजाति का मुखिया |
  • हाकम रजा का प्याला – इसे पीकर कंजर झूठी कसम नहीं खाते है |
  • मृत्यु संस्कार- इनमे मरते हुए व्यक्ति के मुँह में शराब की बुँदे डालने और शव को गाड़ने का रिवाज है |
  • पाती माँगना- चोरी,डकैती के लिए जाने से पूर्व देवता से आशीर्वाद लेना पाती मांगना कहलाता है |
  • चकरी नृत्य- कंजर बालाओं द्वारा किया जाने वाला तेज गति का नृत्य | इनमे धाकड़ नृत्य, घोड़ी नृत्य और लहरी नृत्य भी प्रसिद्ध है |
  • जोगनियाँ माता – इनकी कुलदेवी चित्तौडगढ़ की जोगनियाँ माता है |

 



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