विजयदुर्ग
विजयदुर्ग महाराष्ट्र राज्य के मुम्बई शहर से 235 किमी दक्षिण में स्थित पश्चिमी समुद्र तटवर्ती दुर्गों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। विजयदुर्ग नामक जल दुर्ग, जिसे घेरिया भी कहा जाता था। वघोतन (भूतपूर्व कुंडलिका) नदी के मुहाने के दक्षिणी छोर पर अरब सागरके नज़दीक बना है। यह मराठा इतिहास के अनेक प्रसंगों के घटनास्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
शिलहर वंश (12वीं शताब्दी के अंत से 13वीं शताब्दी की शुरुआत) के समय भी किलेबंदियों का अस्तित्व था, किंतु विजयदुर्ग की वर्तमान संरचना का समय 16वीं शताब्दी के बीजापुरशासकों का है। 1654 ई. में शिवाजी ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। क़िलेबन्दी की तीन पंक्तियों, सुदृढ़ परकोटे और 27 बुर्ज़ों पर 300 तोपों सहित विजयदुर्ग पश्चिमी तट का सर्वाधिक सुदृढ़ दुर्ग था।
इतिहास
विजयदुर्ग का इतिहास (1742 -1756 ई.) सशक्त नौसेनिक आंग्रे परिवार भाइयों तुलाजी और मानाजी जो दोनों मराठा बेड़ों के सेनापति थे, के बीच गहरे विद्वेष से जुड़ा है। तुलाजी आंग्रे एक दक्ष समुद्री योद्धा था और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मार्ग का कांटा था। उसने अंग्रेज़ों को पश्चिमी तट पर प्रभुत्व स्थापित करने से लगातार रोके रखा था। अंग्रेज़ों ने उस समय की प्रचलित चाल के अनुसार, पेशवा बालाजी बाजीराव के आदेश पर मानाजी का समर्थन करते हुए स्थिति का लाभ उठाया।
एड़मिरल वॉटसन के नेतृत्व में एक संयुक्त नौसेन्य दल दक्षिण की ओर बढ़ा, जिसका मुख्य उद्देश्य मराठा समुद्री शाक्ति को समाप्त कर भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर अंग्रेज़ों की शाक्ति को स्थापित करना था। विजयदुर्ग मराठा बेड़ों का अड्डा था जो एक बन्दरगाह पर नियंत्रण करता था। 11 फरवरी, 1756 को मानाजी तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के संयुक्त बेड़ों ने तुलाजी आंग्रे को विजयदुर्ग के सामने के मैदान में पराजित कर दिया। इस लड़ाई के दौरान एक मात्र से ‘रेस्टोरेशन’ नामक जहाज़ में आग लग गई। यह आग नज़दीक के मराठा जहाजों में भी गई, जिससे तुलाजी की शक्ति कम हो गई तथा अंत में उनकी हार हुई। एक ही दिन में भारत के पश्चिमी तट का सामुद्रिक प्रभुत्व बदल गया।
हारने का कारण
मराठे इस दुर्घटना से कभी उबर नहीं पाए। तुलाजी के हारने का आंशिक कारण यह था कि एडमिरल वॉटसन और मानाजी की सेनाओं को विजयदुर्ग की उस समय अभेद्य मानी जाने वाली दीवारों के पीछे से मुक़ाबला कर परास्त करने की उनकी रणनीति विफल हो गई।
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